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Tuesday, 16 August 2016

मैंगलौर से कूर्ग यानि दक्षिण के कश्मीर, भारत के स्कॉटलैंड जा रही हूँ Coorg Yatra Part 3 कूर्ग यात्रा Neelam Bhagi





 मैंगलौर से कूर्ग के रास्ते ने तो विस्मय विमुग्ध कर दिया!!!    कूर्ग यात्रा भाग 3
                                                                                                                  नीलम भागी
 आगे की सीट पर बैठने से ये सुविधा रहती है कि मैं अपने सामने और अपने बाँयीं ओर बिना गर्दन दुखाये देख सकती हूँ। इसलिये मैं तो दिनेश के बराबर की सीट पर बैठ गई। दिनेश ने भी सीट बैल्ट नहीं बांधी थी, इसलिये मैंने भी नहीं बांधी। पर मुझे तो आदत है बांधने की, फिर मैंने बैल्ट बांधते हुए दिनेश से पूछा,’’यहाँ सीट बैल्ट बांधना जरुरी नहीं है?’’वह बोला,’’मर्जी’’ पर उसने भी बांध ली। गाड़ी साफ सुथरे मंगलौर शहर से गुजरने लगी। सड़क का रास्ता मुझे हमेशा से प्रिय है, कारण इससे उस शहर का परिचय हो जाता है। मैं इश्तहारों और दुकानों के र्बोड देख रही थी। पर ये क्या! उस पर तो केवल कन्नड़ या कहीं कहीं पर अंग्रेजी लिखी हुई थी। बाॅलीवुड के सितारे प्रचार के बड़े बड़े पोस्टर पर चिपके हुए थे पर किसलिये? ये तो पढ़ने से ही पता चलेगा न। लेकिन पढ़ेंगे आप तब न, जब आप को इंग्लिश या कन्नड़ आती होगी। मैंने दिनेश से हिन्दी में पूछा,’’यहाँ लोग हिन्दी सिनेमा देखते हैं?’’ उसका जवाब था,’’हाँ, बरोबर।’’अब मुझे अपना प्रश्न बेवकूफी भरा लगा क्योंकि बाॅलीवुड के सितारों की पहचान तो हिन्दी सिनेमा के कारण है। अब मुझे बाॅलीवुड के सितारों से मोह हो गया क्योंकि वे सिनेमा द्वारा हिन्दी के प्रचार में बिना किसी सरकारी अनुदान के वे लगे हुए हैं। मैं नेत्रावती नदी, हस्सन, सूलिया और मेडिकरी ये चार नाम पढ़ पाई क्योंकि इनके  कन्नड के साथ अंग्रेजी में भी लिखा था। रास्ते में आने वाले बाजार सामान से अटे पड़े थे। जिस पर फूल, ताजे फल सब्जियों की दुकाने बाजारों की सुन्दरता और संपन्नता को चार चाँद लगा रहीं थी। महिलायें सलवार कमीज या साड़ी में नज़र आई। मैनुअल रिक्शा और भिखारी तो कहीं देखने को भी नहीं मिला। रास्ते की खूबसूरती तो बढ़ती ही जा रही थी। मैंने दिनेश से पूछा,’’अब और कितनी दूर जाना है?’’ वो बोला,’’एयरर्पोट से तो कूर्ग 135 किमी. दूर है। लेकिन आपने जहाँ जाना है वो 170 किमी. दूर है।’’ कूर्ग सुनते ही मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि मैं दक्षिण भारत के कश्मीर, ब्रह्मगिरी की पहाड़ियों में लिपटे भारत के स्काॅटलैण्ड की यात्रा पर हूँ। यहाँ आने के लिये उत्तर भारत से रेल द्वारा मैसूर और मंगलौर स्टेशन करीब हैं। जहाँ से मडिकेरी के लिये बसे मिलती हैं चार या लगभग चार साढ़े  घण्टे में मडिकेरी पहुँचा जा सकता है। साफ सुथरी बढ़िया सड़क पर गाड़ी दौड़ रही थी। फुटपाथ पर कहीं अतिक्रमण नहीं था। सेंटर वर्जेज भी पौधों से भरी हुई थी। जहाँ जरुरत थी वहाँ पैदल चलने वालों के लिये सड़क पार करने के लिये पुल था यानि कहीं भी ट्रैफिक बाधित नहीं हो रहा था। रास्ते की सुन्दरता देख कर अभी से लगने लगा था कि कूर्ग के बारे में जो सुना पढ़ा है, वैसा ही देखने को मिलेगा। रास्ते में  जहां भी गाँव या कस्बा आता तो हरियाली से घिरे हुए, चटक रंगो वाले, ढलवा लाल छतों वाले घर दिखते। अब ट्रैफिक वन वे हो गया। इन घरों को देख कर दो बातों ने मुझे बहुत प्रभावित किया। पहली इतनी हरियाली होने के बावजूद भी उन्होंने अपने घर के आसपास अपनी पसंद के पेड़ पौधे लगा रक्खे थे, दूसरा घरों पर सोलर पैनल लगे हुए थे। लाल लाल बहुत बड़े साइज़ की ईंटे थी। सड़क के दोनों ओर जहाँ भी नज़र जाती, नारियल सुपारी कत्था के पेड़ दिखते। कहीं कहीं कई पेड़ो पर कट के निशान और तने पर पाॅलिथिन बंधी देख कर मुझे बढ़ी हैरानी हुईं। दिनेश ने बताया कि ये रबर के पेड़ है। फुटपाथ पर जहाँ भी मिट्टी दिखी लाल ही दिखी। बीच बीच में बारिश भी हो जाती जो रास्ते की खूबसूरती को और भी बढ़ा देती। कोई भी हरे रंग का शेड नहीं बचा था, जो हमारे रास्ते की वनस्पतियों में न आया हो। जहाँ धूप पड़ती थी वो शेड और भी सुन्दर लगता था। अचानक हम क्या देखते हैं दूर पेड़ों से ढकी पहाड़ियों में से धुंध ऊपर की ओर जा रही है। तब कहीं पढ़ा याद आया कि मडिकेरी मिस्टी हिल्स यानि धुंधली पहाड़ियों के लिये मशहूर है। गाड़ी का ए.सी. तो हमने कब से बंद करके, खिड़कियाँ खोल रक्खी थीं। हवा ऐसी कि तारीफ़ के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं। शाम होते ही एक अजीब सी आवाज़ हमारे साथ चली। मडिकेरी आबादी में आते ही ये आवाज गायब हो गई। कूर्ग के लिये आगे बढ़ते ही आवाज फिर शुरु हो गई। शायद वो आवाज जंगल में पाये जाने वाले कीट पतंगों की थी। 
क्रमशः