दीदी बी.एड. के बाद गर्ल्स इंटरकॉलिज में लेक्चरर बन गई और दादी स्वर्ग सिधार गई। अम्मा अब घर से बाहर बिना घूंघट के सिर पर पल्लू रख कर जाने लगीं। सिर का पल्लू उनका आज 92 साल की उम्र में भी कायम है।आज 92 साल की उम्र में भी अम्मा सिर पर पल्लू रखकर ही गेट से बाहर खड़ी होती है।
अम्मा की पढ़ाई छूटी थी, शायद इसलिए वो बेटियों को पढ़ाने में जी जान से लगी रहतीं थीं। दीदी की शादी दिल्ली में हो गई और उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पी.एच.डी की। दीदी को रिवाज के अनुसार पहली डिलीवरी के लिए मैके बुलाया गया। उनकी बेटी का जन्म हुआ और लोहड़ी का त्यौहार उन्हीं दिनो आया था। लोहड़ी का त्यौहार बेटे के जन्म पर या बहू आने पर मनाया जाता है। वैसे हर बार धूनी जला कर, तिलचौली अग्नि को अर्पित करते हैं। अम्मा ने उसकी पहली लोहड़ी मनाई और उसको अर्पणा कहा। पड़ोसने आईं और उन्होंने दबी जबान से अम्मा से कहा,’’ बहन जी बेटी की लोहड़ी कौन डालता है!!’जवाब में अम्मा ने सबको पार्वती की शंकर जी के लिए तपस्या की कहानी सुना दी कि कैसे उनका नाम अर्पणा पढ़ा! नैना से उत्पन्न हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री उमा ने शिव को वर के रुप में प्राप्त करने के लिए दुसाध्य तप किया था। पहले फल शाक पर रहीं, और खुले आकाश में वर्षा आदि ऋतुओं की परवाह नहीं की। फिर पेड़ से गिरे बेलपत्रों को आहार बनाया। विकट कष्ट सहे और पत्तों को भी खाना बंद कर दिया यानि निराहार रहीं।
अम्मा की पढ़ाई छूटी थी, शायद इसलिए वो बेटियों को पढ़ाने में जी जान से लगी रहतीं थीं। दीदी की शादी दिल्ली में हो गई और उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पी.एच.डी की। दीदी को रिवाज के अनुसार पहली डिलीवरी के लिए मैके बुलाया गया। उनकी बेटी का जन्म हुआ और लोहड़ी का त्यौहार उन्हीं दिनो आया था। लोहड़ी का त्यौहार बेटे के जन्म पर या बहू आने पर मनाया जाता है। वैसे हर बार धूनी जला कर, तिलचौली अग्नि को अर्पित करते हैं। अम्मा ने उसकी पहली लोहड़ी मनाई और उसको अर्पणा कहा। पड़ोसने आईं और उन्होंने दबी जबान से अम्मा से कहा,’’ बहन जी बेटी की लोहड़ी कौन डालता है!!’जवाब में अम्मा ने सबको पार्वती की शंकर जी के लिए तपस्या की कहानी सुना दी कि कैसे उनका नाम अर्पणा पढ़ा! नैना से उत्पन्न हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री उमा ने शिव को वर के रुप में प्राप्त करने के लिए दुसाध्य तप किया था। पहले फल शाक पर रहीं, और खुले आकाश में वर्षा आदि ऋतुओं की परवाह नहीं की। फिर पेड़ से गिरे बेलपत्रों को आहार बनाया। विकट कष्ट सहे और पत्तों को भी खाना बंद कर दिया यानि निराहार रहीं।
पुनि परिहरेउ सुखानेउ परना। उमा नाम तब भयउ अपरना।।
उमहि नाम तब भयउ अर्पणा।
और अर्पणा को गोद में लेकर बोलीं,’’ आर्शीवाद दो। ये ज्ञान के लिए तप करे।’’अर्पणा हार्वड पढ़ने गई तो अम्मा बहुत खुश। वहां ऑनर मिला तो अम्मा ने दादी को याद किया। अर्पणा की बेटी रेया को सिंगापुर में हिंदी पढ़ाने ट्यूटर आती है। हम जाते हैं या वो जब भारत आती है तो अर्पणा ने कह रक्खा है कि सब रेया से हिंदी में बात करेंगें और नानी दादी की सुनी हुई कहानियां ही सुनायेंगे। हम वैसा ही करते हैं। मेरी शादी बी.एड की परीक्षा से पहले हुई। बाद में मैंने कैमिस्ट्री एम.एससी में एडमिशन लिया। बेटे के जन्म से दो दिन पहले तक मैंने क्लास अटैण्ड की, छ घण्टे प्रैक्टिकल किया। पर मेरी एम.एससी पूरी नहीं हुई। बेटी के जन्म से पहले मैं कपूरथला मामा के घर रहने गई। चारो मामा में छोेटे मामा श्री निरंजन दास जोशी ही बचे थे जो विधुर थे। मंदिर वाले मुख्य नाना के घर में बेटे बहुओं के साथ रहते थे। बैंक मैनेजर पद से रिटायर थे और घर के प्राचीन राधा कृष्ण के मंदिर की सेवा में थे। और गऊशाला का काम देखते थे। सामने दूसरे घर में सबसे बड़ी मामी परिवार के साथ रहती थी। दूसरी मामी थोड़ी दूरी पर पास ही रहती थीं। मेरे मामा तीनो समय खाने से पहले और दूध पीने से पहले पूछते,’’नीलम ने खाना खा लिया।’’भाभी के हां कहने पर वे मुंह में कौर डालतें और दूध पीते थे। इसलिए मैं दिन भर जिस मर्जी मामा परिवार में जाउं, खाना सोना छोटे मामा के घर ही करती थी। अगर मैंने कहीं और खाना खा लिया तो मुझे मामा को रिर्पोटिंग करनी पड़ती थी। नही तो वे खाना नहीं खाते थे। चाय वो पीते नहीं थे इसलिये चाय मैं कहीं भी पी लेती थी। क्रमशः