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Saturday 30 April 2022

मुक्तिनाथ क्षेत्र(धरती का स्वर्ग) नेपाल यात्रा भाग 19 नीलम भागीMuktinath--A piece of heaven on earth Nepal Tour 19 Neelam Bhagi

     


 अचानक मेरे मन में प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि बर्फीले मुक्तिकुंड और मुक्तिधाराओं के पवित्र जल में स्नान करने के बाद महिलाएं कपड़े कहां बदलती होगी? देखा पास में ही महिलाओं और पुरुषों के कपड़े बदलने के कमरे बने हुए थे। यहां तक कि बाहर कपड़े सूखाने के लिए रस्सियां भी बंधीं हुई थी।



इतनी ऊंचाई पर इस व्यवस्था के लिए साधूवाद। बाहर दानपेटी रखी है। और रसीद बुक लिए एक व्यक्ति बैठा है। आप अपनी श्रद्धा से जो भी पेटी में डालोगे, वह आपको उसकी रसीद देता है। मैं अब यहां से चल रहीं हूं और मेरे मन में मुक्तिक्षेत्र के बारे में अब तक का पढ़ा सुना भी चल रहा है। 

पुराणों के अनुसार हमारी पृथ्वी 7 भागों और 4 क्षेत्रों में बंटी हुई है। इन चार क्षेत्रों मे प्रमुख क्षेत्र है मुक्तिक्षेत्र। ऐसी कथा है कि शालिग्राम पर्वत और दामोदर कुंड के बीच ब्रह्मा जी ने मुक्तिक्षेत्र में यज्ञ किया था। इस यज्ञ के प्रभाव से अग्नि ज्वाला के रुप में और नारायण जल रुप में उत्पन्न हुए थे। बाबा मुक्तिनाथ और मुक्तिक्षेत्र की पूजा अर्चना वैदिक काल एवं पौराणिक काल से चली आ रही हैं। उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, स्कंदपुराण, वराह पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण सहित लगभग सभी पुराणों में मुक्तिक्षेत्र(जिस क्षेत्र में मुक्तिनाथ स्थित है उसे मुक्ति क्षेत्र के नाम से जाना जाता है ) व शालग्राम की पूजा विधि का वर्णन मिलता है। 

धाम के दामोदर कुण्ड जलधारा और गण्डकी नदी के संगम को काकवेणी कहते हैं। इस जगह तर्पण करने से 21 पीढ़ियों का उद्धार होता है।


  रामायण के रचियता महर्षि वाल्मिकी का आश्रम भी गण्डकी नदी के किनारे स्थित था। यहीं पर सीता जी ने लवकुश को जन्म दिया था। आज से 300 साल पहले अयोध्या में जन्में अद्भुत बालक स्वामी नारायण ने भी मुक्तिक्षेत्र और काकवेणी के मध्य एक शिला पर कठोर तप करके सिद्धि प्राप्त की थी। मुक्तिक्षेत्र हिन्दूओं और बौद्धों का महान एवं प्राचीन आस्था का केन्द्र है।


महादेव मंदिर और चार धाम, यह प्रवेश द्वार के बाईं ओर स्थित है। यह चार छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। 



विष्णु पादुक मंदिर भगवान विष्णु के चरण कमल, मुख्य मुक्तिनाथ मंदिर के दाईं ओर मंदिर है। इसमें भगवान विष्णु के पैरों की छाप के साथ नीलकंठ वर्णी(शवमी नारायण) की छवि भी शामिल हैं। जो एक बाल योगी हैं। वे ध्यान में एक पावं पर खड़ें हैं। 2003 में उनके अनुयायियों ने मुक्तिक्षेत्र में उनके लिए स्मारक बनाया जिसे विष्णु पादुका मंदिर(स्वामी नारायण स्मारका) कहा जाता है।  

  यज्ञशाला साम्बा गोम्पा, ज्वालामाई मंदिर, पताल गंगा, नरसिंह गोंपा आदि। यहां के मुख्य आर्कषण हैं। 


पत्थरों से चिन कर इतनी ऊंचाई पर मुक्तिक्ष्ेात्र में दो मंजिल छोटे घर बने हैं। 




   जाते समय तो मेरे मन में सिर्फ मुक्तिनाथ बाबा के दर्शनों की अभिलाषा थी, जिसके लिए मैं जी जान से लगी हुई थी। पर अब तो मुझे आस पास सब बहुत आकर्षित कर रहा है। सीढ़ियों के बीच में पाइप लगे हैं जो सहारे के लिए डण्डी का काम करते हैं। पाइप के बाईं ओर से चढ़ते हैं दाईं ओर से उतरते हैं। पर इधर उधर जा सकते हैं। चार महिलाएं आ रहीं थीं जिनमें से दो लड़कियों ने बोरियों में कुछ ले रखा था। मैंने उनके पास जाकर कहा,’’मेरे लिए तो अपने आप को ढोना बहुत मुश्किल था और आप सामान लेकर चढ़ रही हो!!’’ बरसाना लक्ष्मी थापा, बसुधा लक्ष्मी थापा, पार्वती थापा हंसते हुए कोरस में बोलीं,’’ये हमारे खेत के आलू हैं। हम काठमांडू से बाबा मुक्तिनाथ के लिए लाएं हैं।’’ और आलू सिर पर रख कर सीढ़ियां चढ़ने लगीं।


अचानक एक आदमी पर नजर पड़ी, वह मेरी तरह जाते हुए बैठा था उसे मैंने अपना बचा हुआ चीनी का कप दे कर कहा,’’इसे खा लो।’’और उतरने लगी। सीढ़ियों के दोनो ओर पत्थर के टुकड़े पड़े थे। जैसे हम सात ठिकरे रख कर उस पर गेंद से निशाना मार कर उन्हें गिराते थे। ऐसे ही यहां कुछ श्रद्धालु एक के ऊपर एक कई पत्थर रखकर आंखें बंद करके प्रार्थना करते और चढ़ाई करने लगते। मैंने एक श्रद्धालू से पूछा,’’कुछ लोग ऐसा क्यों करते हैं?’’ उन्होंने बताया कि ऐसा मानते हैं जितनी मंजिल का अपना घर चाहिए। उतने ही आप एक के ऊपर एक पत्थर रख कर बाबा मुक्तिनाथ से सच्चे मन से प्रार्थना करो तो बाबा जरुर सुनते हैं और अपना घर बन जाता है और धीरे धीरे उतनी मंजिलें भी बन जाती हैं। अब मैं सीढ़ियां उतरते हुए लोगों की इच्छाएं भी समझ रही थी। ज्यादातर ने 2,3, मंजिले घर की ही कामना की है।

अब मेरे स्वर्ग का साथी कुत्ता जी भी आ गया। मैंने उसे बिस्किट दिए और रैपर अपनी जेब में रख लिया। इतने पवित्र मुक्तिक्षेत्र में मैं कैसे कचरा फैला सकती हूं भला! तिब्बती शैली से बने मुक्तिनाथ द्वार से बाहर आती हूं।

   यहां बाजार में दुर्लभ शालिग्राम खरीद सकते हैं। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गंडकी के तट पर पाया जाता है। अब मैं होटल को चल देती हूं। क्रमशः         


      


Friday 29 April 2022

मुक्ति-नारायण क्षेत्रम, मुक्तिकुंड, 108 मुक्तिधाराएं नेपाल यात्रा भाग 18 नीलम भागी




दर्शनों की लाइन में लगी हूं। यहां लिखा है तस्वीर लेना सख्त मना है। जहां भी ऐसा लिखा होता है, मैं वहां नियम का उल्लंघन कभी नहीं करती। मोबाइल पर्स में रखकर यहां फोटो खींचने और सेल्फी लेने से अब मुक्त हूं। यहां की सुन्दरता, श्रद्धालुओं के चेहरे से टपकती श्रद्धा को आंखों के कैमरे से दिल में उतारती हूं। नहीं लिख पा रहीं हूं कि कैसा माहौल है !! असीम मानसिक शांति मिल रही है। आवाज़ है तो केवल मुक्तिधारा के पवित्र पानी की और भक्तों द्वारा बजाए जा रहे घण्टों की। मंदिर का स्वरुप ऐतिहासिक है। 14 फीट ऊंचा और 8 फीट चौड़ा यह मंदिर पगौड़ा शैली में बनाया गया है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले सामने दो मुक्ति कुंड हैं देवी लक्ष्मी और सरस्वती कुंड। इसमें गंडकी और दामोदर कुंड की जलधारा आती है। ऐसा विश्वास है कि जो इसमें डुबकी लगाता है। वह नकारात्मक गतिविधियों से मुक्त होगा। बर्फीला ठंडा पानी है आस्था में ठंड का क्या काम भला! डुबकियां लगाई जा रहीं हैं। ’’मुक्तिनाथ’’ नाम के महत्व का एक धार्मिक अर्थ है। यह दो शब्दों का मेल है। ’’मुक्ति’’ मोक्ष या निर्वाण का प्रतीक है और नाथ शब्द स्वामी या भगवान का प्रतीक है।



दो मुक्ति कुंड के सामने मुक्तिनाथ मंदिर की शक्ति को गंडकी चंडी और भैरव को चक्रपाणी के रुप में संबोधित किया जाता है। माना जाता है कि सति का सिर यहां गिरा था। यह शक्तिपीठ है। दीपक, धूप अगरबत्ती आदि सब प्रवेश के बाहर स्थान पर जलाई जाती है इसलिए यहां धुआं सा है। अंदर तो सिर्फ भगवान की छवि आंखों से दिल में उतारनी है इसलिए नम्बर जल्दी आता है। लाइन के चलने से अब मैं मुक्ति-नारायण क्षेत्रम में आ गई हूं। मेरे बाएं हाथ पर अग्निकुंड है




और सामने श्री मुक्तिनाथ का निवास स्थान है ’’मुक्ति’’लक्ष्मी और सरस्वती और गरुण के साथ सामने हैं। मुक्तिनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की सोने की मूर्ति है।

 मैं हाथ जोड़े दर्शन करती हूं। मेरे तिलक लगता है और बाहर आती हूं। भगवान विष्णु, मूर्ति  देवी श्री देवी और भू देवी को जीवन मुक्ति देने वाला माना जाता है। इसलिए इसे मुक्तिनाथ कहते हैं।

अब मुझे कोई लैटिट्यूड और ऑक्सीजन की तकलीफ़ नहीं है। सुबह ब्लड प्रैशर की गोली खाना भी भूल गई थी क्योंकि मुझे तो लग रहा था कि मैं नहीं जा पाउंगी। मंदिर का कोना कोना घूम रहीं हूं और मुझे अपनी 94 साल की अम्मा याद आने लगीं। जो जाते ही मुझसे पशुपति नाथ के दर्शनों के बारे में पूछेंगी क्योंकि श्री मुक्तिनाथ मेरा जाना तो उनके सपने में भी नहीं होगा। ऐसा इसलिए कि मैं माता वैष्णों देवी दर्शनों के लिए गई तो बिना दर्शन किए कटरे से लौट आई क्योंकि मौसम खराब होने से उस दिन हैलीकॉप्टर सेवा बंद थी। घोड़े पर मुझे डर लगता है। 

शिवखोड़ी गई तो आगे मैं पैदल चढ़ाई से डर गई। जहां से घोड़े 500रु में मिलते हैं वहां से लौट आई क्योंकि घोड़े पर बैठने से डरती हूं। आज मैं दुनिया के सबसे ऊंचे भगवान विष्णु के मंदिर सड़क के रास्ते बस द्वारा आईं हूं। इस खुशी ने मेरे अंदर दुगुनी उर्जा का संचार कर दिया। मेरे ऊपर मुक्तिनाथ ने इतनी कृपा की है इसलिए मैं अपने ऊपर कोई प्रयोग नहीं कर रही थी।        

 मंदिर के पीछे 108 मुक्ति धाराएं गौमुखों से लगातार बहतीं हैंं। दामोदर कुंड से गंडकी उद्गम का जल गौमुख से लगातार बहता है। मुक्ति यानि मोक्ष, धारा मतलब वेग। इस ठंडे जलधारा में स्नान करना बहुत साहस का काम है। मैंने तो हथेली में जल लेकर अपने पर छिड़क लिया। ये देख कर बहुत अच्छा लगा कि मुक्ति धाराओं के नीचे फर्श ऐसा है कि कोई फिसल नहीं सकता। इसके लिए मंदिर प्रशासन को साधूवाद। यहां श्रद्धालू भागते हुए स्नान करते हैं लेकिन प्रत्येक बेहद ठंडी धारा से होकर गुजरते हैं। वीडियो देख सकते हैं।  






https://youtu.be/ylwr_DXjfZw

  108 पानी की धारा यह संख्या हिन्दू दर्शन में बहुत महत्व रखती है। एक उदाहरण के रुप में ज्योतिष में 12 राशियां और 9 ग्रह जो कुल 108 का संयोजन देते हैं। 108 जलस्रोतों के इस पवित्र जल से स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।


 ऋषिकेश से आए हेमंत तिवारी ने यहां स्नान किया। मैंने उनसे पूछा,’’आपको 108 मुक्तिधाराओं के नीचे स्नान करने पर कैसा लगा?’’ उन्होंने जवाब दिया कि उस अनुभूति को बयान करने के लिए शब्द नहीं हैं। 

 तिब्बती बौद्ध परंपरा में कहा गया है कि गुरु रिनपोछे, जिन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक पह्मसंभव के नाम से भी जाना जाता है ने तिब्बत जाते समय मुक्तिनाथ में ध्यान लगाया था।

हिन्दू और बौद्ध दोनों की आस्था है मुक्तिनाथ धाम में यह धाम यह दिखाने का एक आदर्श उदाहरण है कैसे दो धर्म एक ही पवित्र स्थान को आपसी सम्मान और समझ के साथ साझा कर सकते हैं। क्रमशः

 


Thursday 28 April 2022

मुक्तिनाथ की यात्रा ने मेरी जिंदगी बदली! नेपाल यात्रा 17 नीलम भागी Muktinath changed my life and attitude.

           मैं एक साधारण महिला हूँ। हठ योग के कारण अपने शरीर से जबरदस्ती नहीं कर रही थी। बस दर्शन करना चाहती हूं वो भी स्वास्थ को ध्यान में रखते हुए। अचानक मन में प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि मेरे सहयात्री सब सुबह जा चुके हैं। चाय बिस्किट रखे थे। मैं तो वही खाकर चली हूं। क्योंकि मुझे रुम में आवाजें आ रहीं थीं कि वे कह रहे थे कि हम तो नाश्ता बाबा मुक्तिनाथ के दर्शन के बाद करेंगे। शाम को भी मैं ठंड से कांपती हुई लिहाफ में दुबकी हुई थी। ये फोटोग्राफी कर रहे थे। इसका कारण शायद मेरी सोच है, मैं मान कर ही आई हूं कि मुक्तिनाथ धाम बहुत मुश्किल है कैसे जाउंगी! इसलिए सारी कठिनाइयां मुझ पर सवार हो गईं हैं। हमारे प्रत्येक तीर्थ से संबंधित पौराणिक कथाएं हैं जिन्हें हम बच्चों को सुनाते हैं तो वे र्काटून छोड़ कर बड़े मन से सुनते हैं। अब मैं मन में मुक्तिनाथ की कथा दोहराने लगी।     

जालंधर दैत्य की पत्नी वृंदा अत्यंत पतिव्रता थी। उसी के पतिव्रत धर्म से जालंधर शक्तिशाली बन गया। उसको मारना और पराजित करना बहुत मुश्किल हो गया था। अब उसे अपने बल का बहुत अभिमान हो गया। वह देवताओं की स्त्रियों को भी सताने लगा। एक दिन जालंधर शिव का रुप लेकर देवी पार्वती के समीप गया परंतु उन्होंने योगबल से तुरंत उसे पहचान लिया और वहां से अर्न्तघ्यान हो गईं। अब पार्वती क्रोधित हो गई और शिवजी को जालंधर से युद्ध करना पड़ा। वृंदा के सतीत्व से महादेव का हर प्रहार जालंधर पर निष्फल जाता। जालंधर के नाश के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना जरुरी था। भगवान विष्णु जालंधर का वेश धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जालंधर का वध कर दिया। जब वृंदा को सच्चाई का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को कीड़े मकोड़े बनकर जीवन व्यतीत करने का श्राप दिया। विष्णु ने श्राप स्वीकार किया। कालांतर में शालिग्राम पत्थर जीवाश्म है। इसी शालिग्राम में भगवान विष्णु वास करते हैं। इन्हें विष्णु का प्रतीक मान कर इसकी पूजा करते हैं। ये केवल गंडकी नदी में मिलता है। जो विष्णुजी के मंदिर की स्थापना के लिए आवश्यक है। मुक्तिक्षेत्र में विष्णु जी वृंदा के श्राप से मुक्त हुए थे। यह वह स्थान है जहां मोक्ष की प्राप्ति होती है।

    मुक्तिनाथ परिसर के दक्षिणी कोने में, मेबर लखांग गोम्पा नाम की जगह है। जिसे सालमेम्बर डोलम्बार गोम्पा या ज्वाला माई मंदिर भी कहा जाता है। इस र्बोड को ही देख कर मैं खुश होने लगी। यहां प्राकृतिक गैस से लगातार अग्नि जल रही है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि यह वो जगह है जहां ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था। इस अग्नि के साथ जल की धारा भी बह रही है। आग और पानी का यह संयोग बहुत ही दुर्लभ है। इसलिए इस जगह को त्रिशक्ति और पंचतत्व का प्रतीक माना गया है।

   और अंतिम सीढ़ी पार करते ही सामने रखे बैंच पर बैठ कर पहले मैं बाबा मुक्तिनाथ को धन्यवाद देते हुए खूब रोई कि मुझे आपके दर्शन भी होंगे और दित्या से भी मिलूंगी। यहां तो चारों ओर इतना खुशनुमा माहौल है कि मैं लिखने में असमर्थ हूं। सबके मन में उल्लास क्यों न हो! मस्टैंग जिले में, नेपाल के पश्चिम मध्य भाग में, जोमसोम से 25 किमी उत्तर पूर्व में,   दुनिया के सबसे बड़े थोरुंग-ला दर्रे में से 3800 मी की ऊंचाई पर स्थित मंदिर जिसकेे दक्षिण में बर्फ से ढकी अन्नपूर्णा पर्वत की सुंदरता मन मोहती है और उत्तर में तिब्बती पठार का खूबसूरत दृश्य है। वहां हम बाबा मुक्तिनाथ के दर्शन कर रहें हैैं और परिसर में पेड़ पौधे हैं। 




    मेरी तो मनस्थिति एक दम बदल गई। कुछ ही समय में मैं एकदम नार्मल! पहले मैं दर्शनों की लाइन में लगी फिर वहां से हट कर आसपास घूमने लगी फिर लाइन में लगी। वहां बड़ी धुंध सी थी। जो अनजान मेरी स्लोमोशन देखते हुए आए थे, वे दर्शन कर चुके थे अब हम सेल्फी ले रहे थे। वे दर्शन करके खुश थे, मुझे भी दर्शन होंगे मैं इसलिए खुश थी। क्रमशः 






Tuesday 26 April 2022

बाबा मुक्तिनाथ की पैदल चढ़ाई Tough Climb to Muktinath नेपाल यात्रा भाग 16 नीलम भागी Muktinath Nepal Tour Part 16 Neelam Bhagi

पहले सोचा वापिस लौट जाऊं, उसी समय खिली हुई धूप निकली और मैं धूप के लालच में पहली सीढ़ी पर बैठ गई। यहां मेरी बस का कोई सहयात्री नहीं था। मेरे साथ सिर्फ मेरी सोच थी। सोचने लगी कि कल होटल कितना दूर लग रहा था और गुस्सा आ रहा था आज मुक्तिनाथ द्वार के कितना पास है! कुछ लोग चार कन्धों पर सवार होकर दर्शनों के लिए जा रहे थे। उसी समय विचार आया कि ये चारों कम से कम दिन में एक बार तो श्रद्धालू का भार उठा कर इतनी ऊंचाई पर चढते उतरते होंगे। मुझे तो सिर्फ अपने आप को ले जाना है। यहां तीन सीढ़ियां और चौथी सीढ़ी इतनी चौड़ी कि उस पर पालकी को रख कर चारों रैस्ट कर लेते हैं। और मुझे हैरानी इस बात पर हो रही थी कि रैस्ट के समय पालकी पर लेटा व्यक्ति उठ कर आस पास के नज़ारों का भी आनन्द नहीं लेता है।



मैं उठ कर खड़ी हो गई और मन में बाबा मुक्तिनाथ से प्रार्थना की,’’बाबा मैंने मेरी बेटी उत्कर्षिनी की छोटी बेटी दित्या  का अमेरिका में जन्म होने के कारण मैंने उसको देखा भी नहीं है, अगर मुझे कुछ हो गया तो वो मुझे तस्वीर में ही देखेगी और मैं आपके दर्शनों के बिना भी नहीं जाना चाहती। जहां तक मुझसे आया जायेगा आऊंगी, उसके बाद लौट जाउंगी।

कम से कम मन में ये तो मलाल नहीं रहेगा कि मैंने कोशिश नहीं की है।" आज मुझे अपने ओवरवेट होने का बहुत मलाल था। मैं चढ़ने लगी। दर्शन करके लौटने वाली हैदराबाद की रोजा मुझसे बोली,’’बस, जाने में आपको तकलीफ़ होगा। दर्शनों के बाद मन खुशी से भर जायेगा और ये दूरी कुछ नहीं लगेगी।"🙏 और मेरी तस्वीर खींच दी।


अब मैं दुगने जोश से धीरे धीरे चल दी। जब नहीं चला जाता तो बैठ जाती। सोच का कितना असर होता है! जहां चढ़ना ही इतना कठिन लग रहा था वहीं कुछ श्रद्धालु कभी नाचते हुए चढ़ रहे हैं या नाच रहे हैं। उनका कहना था कि जब थकान हो तब नाचो तो थकना गायब हो जाती है फिर चढ़ने लगो। जब ये श्रद्धा में नाचना चढ़ना दोनों कर रहें हैं तो मैं भी चढ़ सकती हूं। और चढ़ने लगी। 

             देखा सामने से नाज़िर आ रहा है। मेरे पास आते ही बोला,’’मैं तो लौट भी आया, आप अभी तक यहीं हो! मैं हंस दी। वो बोला,’’ऐसे ही चढ़ती जाओ, पहुंचोगी जरुर।’’और चला गया। इतनी व्यवस्था करते हुए वह मुक्तिनाथ भी होकर आ गया।


अब मैं काफी सीढ़ियां चढ़ गई। अचानक मुझे लगा कि अब मैं नहीं चढ़ पाऊंगी, एक कुत्ता मेरे साथ आकर चलने लगा। मैंने नीचे ऊपर सीढ़ियों पर देखा कोई और कुत्ता नहीं है। मैं रुकती ये रुक जाता, मैं चलती ये चलने लगता। पता नहीं कहां से एक कथा इस समय दिमाग में आ गई कि महाराज युधिष्ठिर जब स्वर्ग जा रहे थे तो उनके साथ एक कुत्ता भी गया था। मैंने पानी पिया और बिस्कुट का पैकेट खोलने लगी फिर रुक गई और कुत्ते से बोली,’’देख कुत्ते तूु मेरा यहां इंतजार कर, अगर मैं स्वर्ग से लौट आई तो इस पैकेट से तूु पार्टी करना।’’


मुंह में चीनी डाली और पानी पिया और चल दी। कुछ समय बाद पीछे मुढ़ कर देखा कुत्ता जी साइड में धूप में बैठा हुआ था और आखिरी सीढ़ी तक श्रद्धालु थे यानि  हजारों लोग तो आते ही होंगे और मैं इसे अपनी स्वर्ग यात्रा मान रहीं हूं। मेरी आंखों के आगे दित्या की तस्वीरें आने लगीं।

           थोड़ा बैठती, चीनी खाती, पानी पीती और गहरे सांस लेती फिर चढ़ने लगती। अब मैं लाल गेट से कुछ दूरी पर थी यानि पहुंचने वाली थी। मुंह से और नाक से गहरे सांस लेती मैं पहुंच गई। नीचे देखती हूं तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा! हाय! मैं पहली सीढ़ी से लौटने वाली यहां तक आ गई!



अपने आप अपनी खुशी मना कर जैसे ही छोटे दरवाजे़ से अंदर आती हूं तो सीढ़ियां ही नज़र आ रहीं हैं जो ज्यादा नहीं हैं पर यहां पहुंचने पर सब उल्लास से बाबा मुक्तिनाथ के जयकारे लगाते हैं। और अब बहुत तेजी से सीढ़ी चढ़ते हैं। लेकिन यहां से चढ़ना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा है। नथुने फुला फुला के सांस ले रही हूं। लौटने वाले मेरा बहुत उत्साहवर्धन कर रहे हैं। क्रमशः    




Monday 25 April 2022

मुक्तिनाथ में रुकना Overnight Stay at Muktinath नेपाल यात्रा भाग 15 नीलम भागी Muktinath Nepal Yatra Part 15



     पैदल चल तो मैं पड़ी पर थोड़ा चलने पर ही थकने लगती फिर रुकती और चलती। जब से मैंने नीलकंठ की पैदल यात्रा की है तब से मुझे चलने में कोई परेशानी नहीं होती है। अच्छा हुआ कि उस समय मेरे दिमाग में यह नहीं आया कि लैटिट्यूड और ऑक्सीजन की कमी से ऐसा हो रहा है। अगर ऐसा होता तो सब सिम्ट्म्स मेरे में आ जाते। बस यही दिमाग में आ रहा था कि होटल बहुत दूर है। रास्ते के दोनों ओर होटल ही होटल थे पर मोनालिसा नहीं था। मेरे से पीछे वाले भी आगे निकल गए। दोनों छोटी गाड़ियां सबको ढो रही रहीं थी। खैर होटल पहुंच गई। रुम लेते समय कुछ लोगों की वजह से बदग़मनी सी मच जाती थी वैसा ही नज़ारा है। सबसे आखिर में मैंने चाबी ली। रुम में दो खिड़कियां और दोनों बैड अलग थे मैंने शुक्र किया। मैंने खिड़की की ओर का बैड लिया। ये सोच कर की मैम कोस्टल एरिया की, और 70+ हैं दीवार के साथ का उनके लिए छोड़ा। मुझे बहुत ठंड लग रही थी। अपने गर्म कपड़ों शॉल समेत मैं कंबल ओढ़ के लेट गई पर ठंड लगे जा रही थी, साथ ही प्यास भी लग रही थी। देखा मेरे पास पानी भी नहीं था। इस टूर में पानी की एक लीटर की बोतले थीं, जितना मर्जी लो। मेरी आदत है न खाना जूठा छोड़तीं हूं न ही पानी की एक बूंद भी बरर्बाद करती हूं। एक बोतल खत्म होंने पर ही दूसरी लेती हूं। रास्ते में पानी भी कम पी रही थी, ये सोच कर की पता नहीं इस खतरनाक रास्ते पर कब वाशरुम मिलें। मुक्तिनाथ पहुंचने की खुशी में, मैं पानी की बोतल उठाना भूल गई। इतने में मैम आई, उनके हाथ में दो घूंट पी हुई पानी की बोतल थी और उनका अंग्रेजी में टेप चालू कि जब वे कश्मीर गईं थीं तो उनसे लोग बहुत इम्प्रेस हुए थे। उन्हें गिफ्ट में टोपी, दस्ताने, जुराबें ऊनी दीं थीं। वे यहाँ लाना भूल गईं। होटल के रास्ते में और बाहर बहुत सुन्दर हाथ से बुना सब कुछ बहुत कम दामों में बिक रहा था। मेरा मन हुआ कि बोलूं बाहर से खरीद लो। पर मैंने सोच रखा था कि रुम के अन्दर सिर्फ जरुरी बात और बाहर जाते ही इनके पास भी नहीं खड़े होना है। मैंने पूछा,’’क्या बाहर पानी रखा है, मैं लाना भूल गई। बड़ी प्यास लगी है।’’ सुनते ही वो तुरंत बाहर गई दो पानी की बोतल लाई और अपने बैग में रख लीं। मैं हैरान! हमारे यहां तो भंडारे छबीलें लगाते हैं और ये! मैं बाहर गई। नाज़िर दिखा मैंने पूछा,’’पानी कहाँ रखा है? उसने कहा कि यहां जो रखा था वो खत्म हो गया। गाड़ी से लाता हूं और तुरंत पेटी लाकर रखी उसने मुझे दो बोतल पकड़ा दीं और कहा बाकि बोतलें बस में रखीं हैं। मैंने रिसेप्शन पर कहा कि दो रजाई और दे दो। रजाई देने आया तो उसे कहा कि एक मैम पर फैला दो और दूसरी मेरे पर। मैंने बादाम और छुआरे आप भी लिए इसे भी दिए। अब कुछ ठंड लगनी कम हुई। बाहर गुप्ता जी को बुखार लगने लगा। सब उनके उपचार में लगे हुए थे। हमारा रुम किचन के पास था, सब आवाजें आ रहीं थी। इधर मैम का अंग्रेजी टेप चालू था कि रोगी क्यों आतें हैं? नर्सिंग होम में जाकर मरें। हर वाक्य में उसने वाहियात गालियां भी पिरों रखीं थीं। मेरे अंदर तो मोबाइल देखने की भी हिम्मत नहीं थी। सबके खाने के बाद मैं खाना खाने गई। और आते ही सो गई। सुबह मुझे पहले से ठीक लग रहा था। मैम हमेशा की तरह पहले तैयार होकर बाहर थीं। मैंने खिड़की से बाहर देखा, नीचे पत्तियां झड़े हुए वनस्पतियां हैं कहीं कहीं बर्फ है और ऊपर देखने पर सूरज की रोशनी से चमकती पहाड़ों की चोटियां हैं।





मन एकदम खुश हो गया। मुक्ति क्षेत्र में आई हूं जो होगा देखा जायेगा। कमरे में नहीं बैठूंगीं, जितनी देर भी यहाँ रहूंगी, इस क्षेत्र के प्राकृतिक सौन्दर्य को अपने दिमाग की मैमोरी में फीड करुंगी। गर्म कपड़ों से लैस होकर, सर्दी से पूरी मोर्चाबंदी करके नाश्ता किया एक पेपर कप में चीनी भर कर कुर्ते की जेब में रखी और एक मीठे बिस्किट का पैकेट और पानी की बोतल ली और चल दी। बाहर आकर नाज़िर से पूछा,’’कोई गाड़ी है तो सीढ़ियों तक पहुंचा दे। सुनकर वह हंसते हुए बोला,’’वो देखिए पास में तो सीढ़ियां है।’’



मैं आस पास की दुकानों को देखती हुई, मुक्तिबाबा के द्वार पर पहुंच गई। ऊपर देखती हूं तो बाबा तक जाने के लिए सीढ़ियों का अंत नहीं दिख रहा है। पहाड़ों से सूरज झांक रहा है। मेरा गला भर गया। मैंने मन में बाबा से प्रार्थना की,’’बाबा मैं खतरनाक सड़क के रास्ते बस से आपके दर्शन करने आईं हूं। क्या मैं ऐसे ही लौट जाऊं?’’क्रमशः