मैं लेटी हुई थी। इतने में चार बैच लगाए महिलाएं आईं। मेरे चारों ओर बर्थ खाली देख कर पूछने लगीं यहां कोई बैठा तो नहीं है। मेरे न करते ही वहां बैठ गईं और बोलीं,’’हमारा डिब्बा तो बहुत ही ठंडा है। यहां का टैंपरेचर ठीक है। अब वे खूब ठहाके लगा कर बतियाने लगी। बातों से ऐसे लग रहा था जैसे स्कूल कॉलिज की छात्राएं हों। मैं भी उनकी बातों का आनन्द उठा रही थी। इतने में एक ने मुझसे पूछा,’’आपको कहां जाना है?’’ मैंने जवाब दिया,’’आपके साथ।’’वे बोलीं,’’नेपाल टूर! आपने बैच क्यों नहीं लगाया?’’मैं बोली,’’लेना भूल गई।’’ अब उन्होंने अपना परिचय दिया सुनिता अग्रवाल (दिल्ली), रेखा सिंघानियां (कानपुर), अनिता अग्रवाल (गुरुग्राम) और रेखा गुप्ता (कानपुर) पांचवी सहेली इनकी किसी कारणवश नहीं आई। बचपन की सहेलियां हैं साथ ही पढ़ी खेलीं हैं। इनमें कोई दादी भी है सास भी है पर इस समय ये सखियां हैं। बराबर से अधीर और जयंती जी के कुछ खाने पर शब्द सुनकर, यहीं से रेखा गुप्ता ने आवाज लगाई,’’भाभी मैं गोरखपुर से बैठी हूं। कानपुर से दिल्ली क्या करने आती? इसलिए गोरखपुर से चढ़ी। खूब खाना लाईं हूं। आपके लिए लाती हूं न।’’ उसी समय जयंती जी उठ कर आकर बोलीं,’’मेरा आज व्रत है। खाना एक समय वीरगंज में ही खाउंगी। नागपुर से आते समय मिठाई वगैरह साथ लाये थे वो खा लिया है।’’ गाड़ी में खाना हमारा था। बाकि नाश्ता दो समय का खाना और पानी, किराया भाड़ा, मंदिरों की टिकट, ट्रॉली टिकट आदि सब कुछ पैकेज़ में था। अब वे फिर दीनदुनिया से बेख़बर बतियाना शुरु हो गई। गुप्ता जी आए और मुझे बैच देकर, सबसे बोेले कि एक स्टेशन के बाद रक्सौल आने वाला है। इन सखियों के आने से बड़ी जल्दी रक्सौल आ गया। मैंने भी बैच लगा लिया। बहुत सुन्दर स्टेशन, रंग बिरंगी टाइल्स लगी हुई। पर उसमें लगेज़ के व्हील्स चलने में मजेदारी नहीं थी। कार्यक्रम मे लिखा था कि रक्सौल से टांगे में बैठ कर वीरगंज जायेंगे। मैं बहुत खुश थी कि टांगे पर बैठूंगी। पर वहां टांगे नहीं थे। टैंपुओं की लाइन लगी थी। उसमें सब बैठ गए। अंधेरा हो चुका था। अब सब होटल की ओर चल दिए। यहां खाना खाकर रात 11 बजे पोखरा के लिए निकलना था। बॉडर पर मेरा टैंपू पहला था।
सिक्योरटी ने पूछा,’’कहां जा रहे हो? मैं बोली,’’मुक्तिनाथ।’’वह बोला,’’जाओ।’’ सब वहां से निकले। बॉर्डर के दोनों और मनी एक्सचेंज करने वालों के स्टॉल लगे हुए थे।
और एक किमी दूर होटल पर रुके। एक रुम में दो के हिसाब से उन्होंने कमरे खोल दिए। मैं देखने लगी और कौन सी सिंगल महिला है। गुप्ता जी ने एक महिला की ओर इशारा किया। मैंने कहा,’’इन्हे मेरे साथ कर दो।’’इतनी देर में ग्राउण्ड फ्लोर के रुम खत्म और हम पहली मंजिल में गए, हमें रुम दिया। मैंने लगेज़ रखा कि कल से उन्हीं कपड़ों में हूं, उनसे पूछती हूं कि पहले उन्हें र्फैश होना है तो वे हो लें। फिर खाना खाकर सो लेगें, रात को फिर सफ़र करना है। वह 70 + मैम आई। और अंग्रेजी बोल बोल कर चिल्लाने लगीं कि उन्हें ये रुम पसंद नहीं है। इतने में ये फ्लोर भी भर गया। अब सेकेंड फ्लोर पर रुम मिला। दोनो बैड अलग थे। मैं रुम में जाते ही एक बैड पर लेट गई। ये सोच कर कि इनके बाद मैं बाथरुम इस्तेमाल करुंगी। मुंह से उनका अंग्रेजी में सबको कोसना चालू था और हाथों से सामान निकालना। क्रमशः
4 comments:
बहन सुश्री नीलम भागीजी को अलौकिक यात्रा वृतांत के लिए साधुवाद नमन तथा अभिनंदन ।मेरा निवेदन है कि आप यात्रा वर्णन में तिथि भी अंकित करें तथा यात्रा में आने वाले खर्च यथा रेल किराया, थ्री व्हीलर ,बसों का किराया, खाने का मूल्य& होटल का किराया भी सूचित कर दिया करें, ताकि यदि कोई स्वतंत्र रूप से यात्रा की योजना बनाएं तो सुविधा रहें। सुख सुविधाओं के साथ परेशानियां भी बताना आवश्यक है।
मैंने नेपाल में काठमांडू, पोखरा,बुटवल भैरांवां, कृष्णा नगर , तानसेन लुंबिनी स्थानों का यात्रा की हैं। बहुत आनंद आया था। अब जनकपुर ,मुक्तिनाथ तथा एवरेस्ट बेस कैंप जाने की इच्छा है। ईश्वर जाने इच्छा कब पूरी होती है ?नीलम जी की यात्रा में ऐसा लगता है कि हम भी साथ साथ चल रहे हैं उनका यात्रा वर्णन मुझे अमृतलाल वेगड़ जी द्वारा नर्मदा परिक्रमा की तीन पुस्तकें सौंदर्य की नदी नर्मदा ,अमृतस्य नर्मदा & तीरे तीरे नर्मदा की याद आ गई। बेगढ जी ने पैदल पूरी नर्मदा जी की यात्रा की है और उनका यात्रा वर्णन किसी नदी की पूरा यात्रा वर्णन हिंदी में है ।इस यात्रा वर्णन को विश्व में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। धन्यवाद।
कृष्ण कुमार दीक्षित , सद्विचार मंच गाजियाबाद ।
didi jo yatra hum sub ne ek sath kri emus yatra me sub ka najaria different hai lakin apka yatra vratant read krk bhut mja a rha hi mja bhi esliye a rha hi apn humsub ka jikr kiya hi aur us yatra k hum sachi aur humsafar bhi salut didi
धन्यवाद प्रिय रेखा गुप्ता जी
धन्यवाद दीक्षित सर
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