 नीरज तिवारी की शादी पर हम शाने पंजाब से समय पर पहुंच गए। लंच कर ही रहे थे कि मेरी भतीजी मनदीप और उसका बेटा शुभ्रजीत अमृतसर से शॉपिंग करके आ रहे थे। ये गोहाटी से आये थे। हमें देखते ही मनदीप बोली,’’बुआ आप थोड़ा पहले नहीं आ सकती थी!!’’ मैंने पूछा,’’क्या हुआ?’’ वह बोली,’’कुछ नहीं, मैं असम का मूंगा सिल्क की साड़ियां और मेखला चादर वगैरहा लाई हूं। आपका तो पता नहीं रहता कि  आओगी या नहीं?आपकी साड़ियां हमारी तरह हैं। मैं अभी जाकर चमचम चमचम बल्ले बल्ले कपड़े खरीद कर लाई हूं।’’सुनकर मैं हंस पड़ीं। गुड्डी बोली,’’सामने वाले घर में आप के कमरे हैं। हमने कहाकि हम एक ही रुम में रहेंगे। जब मैं कपूरथला में थी तो मनदीप, मीना असम से आतीं थीं तो हम तीनों बहुत बतियाती थीं। उसी समय हमने बाघा र्बाडर जाने का प्रोग्राम बना लिया। गली से बाहर आते ही एक शेयरिंग ऑटो दिखा। हमने पूछा,’’पाई, बाघा र्बाडर चलना।’’ जवाब में उसने कहा,’’बी(20)रुपइए सवारी।’’उसमें हम छओ लद गये। मैंने ऑटोवाले से कहा कि ये आसाम से आई है। शहर के बारे में बताते जाना। उस भले आदमी ने उसी समय ऑटो की स्पीड बड़ा कर पूछा कि क्या हमारे पास वीआईपी पास है? हमें तो कुछ पता ही नहीं था। हमने कहा नहीं। वह बोला,’’यहां तीन बजे पहुंच जाओ तो सीट अच्छी मिल जाती है। आप लोग लेट हो पर मैं परेड से पहले पहुंचा दूंगा। ऑटो हवा से बातें कर रहा था। कुछ दिन पहले संजीव भागी सपरिवार गाड़ी से चाची जी को बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी दिल्ली से दिखाने लाया था। उसने बताया था कि प्राइवेट पार्किंग बहुत दूर है। अंदर मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता इसलिए पहले निश्चित कर लेना की समापन पर कहां इक्कट्ठे होंगे। ऑटोवाला हमारे गाइड का काम कर रहा था। वह हमारा अमृतसर से परिचय करवाता  रहा था। जहां से गुजरता उस जगह का नाम बताता जा रहा था। रेजीडेंशियल एरिया खत्म होने पर उसने बताना शुरु किया कि यह गोल्डन टैंपल से जहां से आप बैठे हो 35 किमी. दूर है। अमृतसर से 32 किमी. और लाहौर से 22 किमी. दूर है। बाघा बार्डर पाकिस्तान की ओर के क्षेत्र को कहते हैं। हमारे देश की ओर के क्षेत्र का नाम अटारी बार्डर है। जिसे सरदार श्याम सिंह अटारी के नाम पर रखा गया है। वे महाराजा रणजीत सिंह के सेना प्रमुख थे।  भारत के अमृतसर  तथा पाकिस्तान के लाहौर के बीच ग्रैंड ट्रक रोड पर स्थित बाघा गांव है। जहां से दोनो देशों की सीमा गुजरती है। दोनो देशों के बीच थल मार्ग से सीमा पार करने का यही एकमात्र निर्धारित स्थान है। पता नहीं सवारी इसे बाघा र्बाडर क्यों कहती हैं! अब हमारे बाईं ओर कंटीली तारों की दो देशों की सीमा थी। काफी पहले ऑटो ने उतारा उससे आगे सबको पैदल जाना था। हमने ऑटोवाले से कहाकि भाई हम तुम्हें सौ रुपये रुकने के देंगे। तुम्हीं हमें वापिस ले जाना। उसे पैसे देने लगे। उसने कहा बाद में ले लूंगा। एक कागज पर अपना नाम और गाड़ी का नंबर लिख कर दे दिया और हमें कहा कि इक्कटठे रहना, यहां से निकलोगे मैं आपको यहीं से ले लूंगा। अब हम तसल्ली से देशभक्ति से ओतप्रोत जोशीली भीड़ के साथ चल पड़े। कृतिका भागी के कहने पर हम पर्स भी नहीं लेकर गए। कुर्ते की जेब में मैंने पैसे रख लिए थे। लोग सामान जमा करवाने की लाइन में भी लगे हुए थे। 4.30 बजे गेट खुल चुका था। सिक्योरिटी जांच के बाद हम अंदर पहंुचे। कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां हम एक साथ बैठ सकें। हमने तय किया कि समापन पर हम भीड़ को जाने देंगे। अपनी जगह पर बैठे रहेंगे। कार्तिकेय का मैंने हाथ पकड़ रखा था। जिसको जहां जगह मिली बैठ गया।
नीरज तिवारी की शादी पर हम शाने पंजाब से समय पर पहुंच गए। लंच कर ही रहे थे कि मेरी भतीजी मनदीप और उसका बेटा शुभ्रजीत अमृतसर से शॉपिंग करके आ रहे थे। ये गोहाटी से आये थे। हमें देखते ही मनदीप बोली,’’बुआ आप थोड़ा पहले नहीं आ सकती थी!!’’ मैंने पूछा,’’क्या हुआ?’’ वह बोली,’’कुछ नहीं, मैं असम का मूंगा सिल्क की साड़ियां और मेखला चादर वगैरहा लाई हूं। आपका तो पता नहीं रहता कि  आओगी या नहीं?आपकी साड़ियां हमारी तरह हैं। मैं अभी जाकर चमचम चमचम बल्ले बल्ले कपड़े खरीद कर लाई हूं।’’सुनकर मैं हंस पड़ीं। गुड्डी बोली,’’सामने वाले घर में आप के कमरे हैं। हमने कहाकि हम एक ही रुम में रहेंगे। जब मैं कपूरथला में थी तो मनदीप, मीना असम से आतीं थीं तो हम तीनों बहुत बतियाती थीं। उसी समय हमने बाघा र्बाडर जाने का प्रोग्राम बना लिया। गली से बाहर आते ही एक शेयरिंग ऑटो दिखा। हमने पूछा,’’पाई, बाघा र्बाडर चलना।’’ जवाब में उसने कहा,’’बी(20)रुपइए सवारी।’’उसमें हम छओ लद गये। मैंने ऑटोवाले से कहा कि ये आसाम से आई है। शहर के बारे में बताते जाना। उस भले आदमी ने उसी समय ऑटो की स्पीड बड़ा कर पूछा कि क्या हमारे पास वीआईपी पास है? हमें तो कुछ पता ही नहीं था। हमने कहा नहीं। वह बोला,’’यहां तीन बजे पहुंच जाओ तो सीट अच्छी मिल जाती है। आप लोग लेट हो पर मैं परेड से पहले पहुंचा दूंगा। ऑटो हवा से बातें कर रहा था। कुछ दिन पहले संजीव भागी सपरिवार गाड़ी से चाची जी को बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी दिल्ली से दिखाने लाया था। उसने बताया था कि प्राइवेट पार्किंग बहुत दूर है। अंदर मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलता इसलिए पहले निश्चित कर लेना की समापन पर कहां इक्कट्ठे होंगे। ऑटोवाला हमारे गाइड का काम कर रहा था। वह हमारा अमृतसर से परिचय करवाता  रहा था। जहां से गुजरता उस जगह का नाम बताता जा रहा था। रेजीडेंशियल एरिया खत्म होने पर उसने बताना शुरु किया कि यह गोल्डन टैंपल से जहां से आप बैठे हो 35 किमी. दूर है। अमृतसर से 32 किमी. और लाहौर से 22 किमी. दूर है। बाघा बार्डर पाकिस्तान की ओर के क्षेत्र को कहते हैं। हमारे देश की ओर के क्षेत्र का नाम अटारी बार्डर है। जिसे सरदार श्याम सिंह अटारी के नाम पर रखा गया है। वे महाराजा रणजीत सिंह के सेना प्रमुख थे।  भारत के अमृतसर  तथा पाकिस्तान के लाहौर के बीच ग्रैंड ट्रक रोड पर स्थित बाघा गांव है। जहां से दोनो देशों की सीमा गुजरती है। दोनो देशों के बीच थल मार्ग से सीमा पार करने का यही एकमात्र निर्धारित स्थान है। पता नहीं सवारी इसे बाघा र्बाडर क्यों कहती हैं! अब हमारे बाईं ओर कंटीली तारों की दो देशों की सीमा थी। काफी पहले ऑटो ने उतारा उससे आगे सबको पैदल जाना था। हमने ऑटोवाले से कहाकि भाई हम तुम्हें सौ रुपये रुकने के देंगे। तुम्हीं हमें वापिस ले जाना। उसे पैसे देने लगे। उसने कहा बाद में ले लूंगा। एक कागज पर अपना नाम और गाड़ी का नंबर लिख कर दे दिया और हमें कहा कि इक्कटठे रहना, यहां से निकलोगे मैं आपको यहीं से ले लूंगा। अब हम तसल्ली से देशभक्ति से ओतप्रोत जोशीली भीड़ के साथ चल पड़े। कृतिका भागी के कहने पर हम पर्स भी नहीं लेकर गए। कुर्ते की जेब में मैंने पैसे रख लिए थे। लोग सामान जमा करवाने की लाइन में भी लगे हुए थे। 4.30 बजे गेट खुल चुका था। सिक्योरिटी जांच के बाद हम अंदर पहंुचे। कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां हम एक साथ बैठ सकें। हमने तय किया कि समापन पर हम भीड़ को जाने देंगे। अपनी जगह पर बैठे रहेंगे। कार्तिकेय का मैंने हाथ पकड़ रखा था। जिसको जहां जगह मिली बैठ गया। बॉलीवुड के देशभक्ति के जोशीले गाने पर जमकर अपनी जगह पर डांस हो रहा थां। ऐसे जोशीले नारे लग रहे थे कि अगर उस समय बार्डर खोल दे तो ये जोशीले, नारे लगाते हुए इस्लामाबाद पहुंच जायेंगेें।
 बॉलीवुड के देशभक्ति के जोशीले गाने पर जमकर अपनी जगह पर डांस हो रहा थां। ऐसे जोशीले नारे लग रहे थे कि अगर उस समय बार्डर खोल दे तो ये जोशीले, नारे लगाते हुए इस्लामाबाद पहुंच जायेंगेें। 
 6 बजे दोनो देशों के द्वार खेल दिए गए, फिर दोनो देशों के गार्डस ने एक दूसरे का अभिवादन किया। दोनो ओर परेड शुरु हुई। गुस्सा दिखाना, सिर ऊपर तक पैरों को ले जाना और दोनो देशों के झंडों को एक साथ उतारा जाना, उनको सम्मान से फोल्ड करना। बहुत ही रोमांचक दृश्य होता है। 6.45 पर यादगार सेरेमनी संपन्न हुई।
 
 

 
 अब लगा कि हम तो नाच नाच के नारे लगाकर गर्मी से बेहाल, बुरी तरह प्यासे थे। जैसे ही हम इक्कट्ठे हुए स्टेडियम से बाहर आते ही दो दो गिलास शिकंजवी के पिये। हमारा ऑटोवाला हमें ढूंढता हुआ वहां तक आ गया। उसके साथ चलते हुए हम ऑटो पर बैठे। सब थके हुए, चुपचाप बैठे घर पहुंचे। मैंहदी वाली रात के लिए तैयार हुए। बन्ने गाने को बैठे, हम चारों के देशभक्ति के नारे लगा कर, गले से आवाज नहीं निकल रही थी, वे बैठ गए थे। नीरज ने हंसते हुए पूछा,’’बाघा बार्डर से आ रहे होे न, तभी!! क्रमशः      
 
 
 
 


 जूता चप्पल उतार कर पैर आठ फीट चौड़े और छ फीट गहरे तालाब में से गुजरते हुए साफ हो जाते हैं। मैंने तो साड़ी के पल्लू से सिर ढक रखा था। लेकिन वहां सिर ढकने के लिए रुमाल रखें हैं, आप सिर पर बांध ले, गुरुद्वारा परिसर से बाहर आते समय आप वहीं रख दें। रात का समय था इसलिए रोशनी की सुंदर व्यवस्था के कारण जगमगाते र्स्वण मंदिर के दूर से दर्शन हो रहे थे और
 जूता चप्पल उतार कर पैर आठ फीट चौड़े और छ फीट गहरे तालाब में से गुजरते हुए साफ हो जाते हैं। मैंने तो साड़ी के पल्लू से सिर ढक रखा था। लेकिन वहां सिर ढकने के लिए रुमाल रखें हैं, आप सिर पर बांध ले, गुरुद्वारा परिसर से बाहर आते समय आप वहीं रख दें। रात का समय था इसलिए रोशनी की सुंदर व्यवस्था के कारण जगमगाते र्स्वण मंदिर के दूर से दर्शन हो रहे थे और 
  एक घण्टे के बाद हमारा हरमन्दिर साहिब में मत्था टेकने का नम्बर आया। कड़ा प्रशादा लेकर हम बाहर आए, अंदर फोटोग्राफी की मनाही है। बाहर कर सकते हैं। और हरिमंदिर साहब, सफेद संगमरमर से बने पावन धार्मिक स्थल के परिक्रमा करते हुए दर्शन करने लगे। इसके संस्थापक गुरु रामदास ने अमृत सरोवर का निर्माण करवाया।
एक घण्टे के बाद हमारा हरमन्दिर साहिब में मत्था टेकने का नम्बर आया। कड़ा प्रशादा लेकर हम बाहर आए, अंदर फोटोग्राफी की मनाही है। बाहर कर सकते हैं। और हरिमंदिर साहब, सफेद संगमरमर से बने पावन धार्मिक स्थल के परिक्रमा करते हुए दर्शन करने लगे। इसके संस्थापक गुरु रामदास ने अमृत सरोवर का निर्माण करवाया। जिसके चारों ओर सरोवर के नाम पर, शहर का नाम अमृतसर पड़ा है। इसके वास्तुकार गुरु अर्जुन देव हैं।
 जिसके चारों ओर सरोवर के नाम पर, शहर का नाम अमृतसर पड़ा है। इसके वास्तुकार गुरु अर्जुन देव हैं। इसकी नक्काशी शिल्पसौन्दर्य देखते बनता है। चारों दिशाओं में चार द्वार हैं। गुरु रामदास की सराय है। 228 कमरे और 18 हॉल हैं। गद्दे तकिए और चादरें सब मिलता है। गुरु का लंगर हैं जहां हजारों लोग प्रतिदिन प्रशादा खाते हैं। पूरे परिसर में लाजवाब सफाई, चमचमाते फर्श हैं आपका कहीं भी जमीन पर बैठने का मन कर जायेगा। हम भी उस माहौल में बैठे रहे। मैं जब भी अमृतसर जाती हूं तो मत्था टेकने के बाद वहां बैठ जाती हूं। उस माहौल में बड़ी शांति और प्रसन्नता मिलती है। फेसबुक में मेरा ग्रुप हैं ’मेरी और आपकी यात्रा’ उसमें 23 मई को हैदराबाद के घुमक्कड़ सुदेन्द्र कुलकर्णी ने दरबार साहब पर पोस्ट लगाई।
 इसकी नक्काशी शिल्पसौन्दर्य देखते बनता है। चारों दिशाओं में चार द्वार हैं। गुरु रामदास की सराय है। 228 कमरे और 18 हॉल हैं। गद्दे तकिए और चादरें सब मिलता है। गुरु का लंगर हैं जहां हजारों लोग प्रतिदिन प्रशादा खाते हैं। पूरे परिसर में लाजवाब सफाई, चमचमाते फर्श हैं आपका कहीं भी जमीन पर बैठने का मन कर जायेगा। हम भी उस माहौल में बैठे रहे। मैं जब भी अमृतसर जाती हूं तो मत्था टेकने के बाद वहां बैठ जाती हूं। उस माहौल में बड़ी शांति और प्रसन्नता मिलती है। फेसबुक में मेरा ग्रुप हैं ’मेरी और आपकी यात्रा’ उसमें 23 मई को हैदराबाद के घुमक्कड़ सुदेन्द्र कुलकर्णी ने दरबार साहब पर पोस्ट लगाई। उनका कहना है कि उन्हें वहां जाना बहुत अच्छा लगता है। वे पंजाब के आसपास से गुजरें तो अमृतसर जरुर जाते हैं। पिछले साल कश्मीर जा रहे थे। चंढीगढ़ से अपने साथियों के साथ अमृतसर चल दिए। वहां होटल में सामान रख कर स्वर्ण मंदिर गए। रात बारह बजे स्वर्ण मंदिर बंद था। लगभग दो सौ श्रद्धालु शांत अध्यात्मिक वातावरण में लाइन में मत्था टेकने के लिए बेैठे हुए थे, वे भी बैठ गए। रात में भी पीने के पानी की सेवा लगातार थी। श्रद्धालुओं की श्रद्धा से अलग सा भाव था, जिसमें समय का पता भी नहीं चला। सुबह तीन बजे अपने क्रम से मत्था टेका, कढ़ा प्रशाद खाया। नींबू पानी पीकर होटल आ गए। कुछ देर आराम करके श्रीनगर चल दिए। गुड्डी दीदी बोलीं,’’चलो, तो हम भी घर आ गए। सुबह मेरी दिल्ली के लिए ट्रेन थी। कुछ दिन बाद मुझे फिर अमृतसर आना था। दिल्ली से अमृतसर 500 किमी. राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर स्थित है, बस द्वारा भी आ सकते हैं। नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली से शाने पंजाब, शताब्दी रेल से 5 से 7 घण्टे में पहुंच जाते हैं। स्टेशन से रिक्शा पकड़ कर र्स्वण मंदिर। यहां अंतराष्ट्रीय हवाईअडडा हैं। यहां से टैक्सी ले सकते हैं बाकि पर्यटन स्थल अगली यात्रा पर। क्रमशः
 उनका कहना है कि उन्हें वहां जाना बहुत अच्छा लगता है। वे पंजाब के आसपास से गुजरें तो अमृतसर जरुर जाते हैं। पिछले साल कश्मीर जा रहे थे। चंढीगढ़ से अपने साथियों के साथ अमृतसर चल दिए। वहां होटल में सामान रख कर स्वर्ण मंदिर गए। रात बारह बजे स्वर्ण मंदिर बंद था। लगभग दो सौ श्रद्धालु शांत अध्यात्मिक वातावरण में लाइन में मत्था टेकने के लिए बेैठे हुए थे, वे भी बैठ गए। रात में भी पीने के पानी की सेवा लगातार थी। श्रद्धालुओं की श्रद्धा से अलग सा भाव था, जिसमें समय का पता भी नहीं चला। सुबह तीन बजे अपने क्रम से मत्था टेका, कढ़ा प्रशाद खाया। नींबू पानी पीकर होटल आ गए। कुछ देर आराम करके श्रीनगर चल दिए। गुड्डी दीदी बोलीं,’’चलो, तो हम भी घर आ गए। सुबह मेरी दिल्ली के लिए ट्रेन थी। कुछ दिन बाद मुझे फिर अमृतसर आना था। दिल्ली से अमृतसर 500 किमी. राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर स्थित है, बस द्वारा भी आ सकते हैं। नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली से शाने पंजाब, शताब्दी रेल से 5 से 7 घण्टे में पहुंच जाते हैं। स्टेशन से रिक्शा पकड़ कर र्स्वण मंदिर। यहां अंतराष्ट्रीय हवाईअडडा हैं। यहां से टैक्सी ले सकते हैं बाकि पर्यटन स्थल अगली यात्रा पर। क्रमशः    



 वह इतनी सुंदर लगती है कि लगता है ये तो जयमाला के लिए ही तो तैयार है। उनके जाने के बाद, लड़की फिर ब्राइडल मेकअप के लिए पार्लर जाती है। जब वहां से आती है तो पहले से अलग लगती है। रात को बारात बारातियों के नाचने के कारण जितनी मर्जी लेट आए पर शादी की रस्में सब होंती हैं। मुहूर्त पर ही सप्तपदी होगी। शादी लोकल है तो तारों की छावं में विदाई होती है। यानि एक दिन में सब कुछ और नववद्यु के स्वागत में अगले दिन रिसेप्शन किया जाता है। ये सब पहले आपस में बैठ कर, हंसी ठहाकों के बीच में तय किया जाता है। रस्में कोई कम नहीं होतीं कम से कम दो दिन का शादी जश्न तो रहता ही है। तीन चीजें यहां मैंने पहली बार देखीं थी
 वह इतनी सुंदर लगती है कि लगता है ये तो जयमाला के लिए ही तो तैयार है। उनके जाने के बाद, लड़की फिर ब्राइडल मेकअप के लिए पार्लर जाती है। जब वहां से आती है तो पहले से अलग लगती है। रात को बारात बारातियों के नाचने के कारण जितनी मर्जी लेट आए पर शादी की रस्में सब होंती हैं। मुहूर्त पर ही सप्तपदी होगी। शादी लोकल है तो तारों की छावं में विदाई होती है। यानि एक दिन में सब कुछ और नववद्यु के स्वागत में अगले दिन रिसेप्शन किया जाता है। ये सब पहले आपस में बैठ कर, हंसी ठहाकों के बीच में तय किया जाता है। रस्में कोई कम नहीं होतीं कम से कम दो दिन का शादी जश्न तो रहता ही है। तीन चीजें यहां मैंने पहली बार देखीं थी लड़कियां बारात को अंदर नहीं आने देतीं। दूल्हे से तय बाजी करती हैं, जब नेग मिल जाता हैं तब रिबन कटवा कर उन्हें अंदर आने देती हैं। और तब जयमाला होती है|
 लड़कियां बारात को अंदर नहीं आने देतीं। दूल्हे से तय बाजी करती हैं, जब नेग मिल जाता हैं तब रिबन कटवा कर उन्हें अंदर आने देती हैं। और तब जयमाला होती है| दूसरा गोलगप्पे(पानी पूरी) तैयार कर, पानी से भरे हुए वेटर आपको प्लेट में लगा कर सीट पर देकर जायेगा। तीसरा आइसक्रीम हाफ प्लेट में पहाड़ जितनी आपके पास आयेगी। वैसे बूुफे लगा होता है आप जाकर अपनी सुविधानुसार ले सकते हैं वरना वह आगमन से उपस्थिति तक, आप जहां बैठे हैं, वहां देने आता ही रहेगा। और ड्राइफ्रूट की सब्ज़ी में किशमिश की मात्रा इतनी होती है कि सब्जी में हल्की सी मिठास, उसके स्वाद को कई गुणा बढ़ा देती है।यहां मेहमान खाना खाकर घर नहीं दौड़ते, ज्यादातर शादी एंजॉय करते हैं।
 दूसरा गोलगप्पे(पानी पूरी) तैयार कर, पानी से भरे हुए वेटर आपको प्लेट में लगा कर सीट पर देकर जायेगा। तीसरा आइसक्रीम हाफ प्लेट में पहाड़ जितनी आपके पास आयेगी। वैसे बूुफे लगा होता है आप जाकर अपनी सुविधानुसार ले सकते हैं वरना वह आगमन से उपस्थिति तक, आप जहां बैठे हैं, वहां देने आता ही रहेगा। और ड्राइफ्रूट की सब्ज़ी में किशमिश की मात्रा इतनी होती है कि सब्जी में हल्की सी मिठास, उसके स्वाद को कई गुणा बढ़ा देती है।यहां मेहमान खाना खाकर घर नहीं दौड़ते, ज्यादातर शादी एंजॉय करते हैं। सप्तपदी में भी प्रत्येक भंवर पर चावल से भरा बर्तन, रिश्तेदार वर को देते हैं। सबका ऐसे समारोहमें  आपस में मिलना होता है।
 सप्तपदी में भी प्रत्येक भंवर पर चावल से भरा बर्तन, रिश्तेदार वर को देते हैं। सबका ऐसे समारोहमें  आपस में मिलना होता है। वे आपस मे बतियाने में इतने मशगूल रहते हैं कि कन्यादान, विवाह संपन्न होने पर उन्हें पता चलता है। फिर वे चाैंक कर सबको बधाई देते हैं। लावां फेरों केे बाद लड़की ससुराल का सूट पहनती है। उसी में उसकी बिदाई होती है।
 वे आपस मे बतियाने में इतने मशगूल रहते हैं कि कन्यादान, विवाह संपन्न होने पर उन्हें पता चलता है। फिर वे चाैंक कर सबको बधाई देते हैं। लावां फेरों केे बाद लड़की ससुराल का सूट पहनती है। उसी में उसकी बिदाई होती है।   विवाह स्थल से आकर रात भर के सब जगे होते हैं। मेहमानों की विदाई शुरु होती है। मैं एक दिन बाद लौटती हूं। दोपहर को सब सो लेते हैं। बेटी की बिदाई के बाद घर में एक दिन पहले जैसी रौनक नहीं रहती है। अगले दिन बिटिया ने फेरा डालने आना है। शाम को उसकी तैयारी भी हो जाती है। गुड्डी दीदी महाराज को खाना बनाने को कह कर, हम सब गोल्डन टैंपल जाते हैं। रास्ते में हमेशा एक ही बात मेरे ज़हन में आती है कि ये अम्बरसर का पानी है जो यहां मैंने कभी किसी रिश्तेदार को खुशी के मौके पर नाक मुंह फुलाए नहीं देखा।    क्रमशः    ं
 विवाह स्थल से आकर रात भर के सब जगे होते हैं। मेहमानों की विदाई शुरु होती है। मैं एक दिन बाद लौटती हूं। दोपहर को सब सो लेते हैं। बेटी की बिदाई के बाद घर में एक दिन पहले जैसी रौनक नहीं रहती है। अगले दिन बिटिया ने फेरा डालने आना है। शाम को उसकी तैयारी भी हो जाती है। गुड्डी दीदी महाराज को खाना बनाने को कह कर, हम सब गोल्डन टैंपल जाते हैं। रास्ते में हमेशा एक ही बात मेरे ज़हन में आती है कि ये अम्बरसर का पानी है जो यहां मैंने कभी किसी रिश्तेदार को खुशी के मौके पर नाक मुंह फुलाए नहीं देखा।    क्रमशः    ं  
 फिर सब रिश्तदारे कलीरे बांधते हैं।
 फिर सब रिश्तदारे कलीरे बांधते हैं। मैं तो उसके चहरे से टपकती खुशी के कारण, बन्नी का इस समय रूप देख कर हैरान थी। ऐसा चेहरे पर ग्लो कोई सौन्दर्य प्रसाधन नहीं ला सकता। अभी तो वही हल्दी तेल वाले कपड़े और बालों से भी चेहरे पर तेल चू रहा था पर वह बड़ी लावण्यमयी लग रही थी।
 मैं तो उसके चहरे से टपकती खुशी के कारण, बन्नी का इस समय रूप देख कर हैरान थी। ऐसा चेहरे पर ग्लो कोई सौन्दर्य प्रसाधन नहीं ला सकता। अभी तो वही हल्दी तेल वाले कपड़े और बालों से भी चेहरे पर तेल चू रहा था पर वह बड़ी लावण्यमयी लग रही थी। 
 







 छोटे छोटे बच्चे लांगुर बने हुए थे। सब की एक सी ही लाल जरी की पोशाक थी। अब बच्चे हों और वो भी वानर सेना की तरह ड्रसअप हों और साथ ही म्यूजिक हो!! वे तो टिक ही नहीं सकते!! उनकी कोई न कोई एक्टिविटी चलती जा रही थी। जिसे सब बहुत एंज्वाय कर रहे थे। समझ नहीं आ रहा था कि झांकियां देखूं या लांगुरों की शैतानियां।   झांकियों के बाद लंगूर जाने लगे।
 छोटे छोटे बच्चे लांगुर बने हुए थे। सब की एक सी ही लाल जरी की पोशाक थी। अब बच्चे हों और वो भी वानर सेना की तरह ड्रसअप हों और साथ ही म्यूजिक हो!! वे तो टिक ही नहीं सकते!! उनकी कोई न कोई एक्टिविटी चलती जा रही थी। जिसे सब बहुत एंज्वाय कर रहे थे। समझ नहीं आ रहा था कि झांकियां देखूं या लांगुरों की शैतानियां।   झांकियों के बाद लंगूर जाने लगे।  अब मैंने पंडित जी से लांगूरों के बारे पूछा, उन्होंने बताया कि इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से है। जब श्री राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया तो लवकुश ने उनका घोड़ा पकड़ लिया था। उनसे हनुमान जी घोड़ा छुड़वाने आए तो लवकुश ने हनुमान जी को उस वट वृक्ष से बांध दिया था। सीता जी ने आकर उनको खुलवाया। पर हनुमान जी बच्चों (लवकुश) के मोह में बैठ गए। इसलिए यहां हनुमान जी की मूर्ति विश्राम मुद्रा में है।
अब मैंने पंडित जी से लांगूरों के बारे पूछा, उन्होंने बताया कि इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से है। जब श्री राम ने अश्वमेघ यज्ञ किया तो लवकुश ने उनका घोड़ा पकड़ लिया था। उनसे हनुमान जी घोड़ा छुड़वाने आए तो लवकुश ने हनुमान जी को उस वट वृक्ष से बांध दिया था। सीता जी ने आकर उनको खुलवाया। पर हनुमान जी बच्चों (लवकुश) के मोह में बैठ गए। इसलिए यहां हनुमान जी की मूर्ति विश्राम मुद्रा में है। उस प्राचीन वट वृक्ष को आज भी ट्री गार्ड से सुरक्षित किया गया है। वहां पुत्र प्राप्ति के लिये या मनोकामना के लिए धागा बांधते हैं। मनोकामना पूरी होने पर लड़के को पहले, तीसरे, पांचवें साल में लंगूर बनाते हैं। शारदीय नवरात्रों के पहले दिन जिनका बेटा होता है। वे मन्नत पूरी करने देश विदेश से आते हैं।
 उस प्राचीन वट वृक्ष को आज भी ट्री गार्ड से सुरक्षित किया गया है। वहां पुत्र प्राप्ति के लिये या मनोकामना के लिए धागा बांधते हैं। मनोकामना पूरी होने पर लड़के को पहले, तीसरे, पांचवें साल में लंगूर बनाते हैं। शारदीय नवरात्रों के पहले दिन जिनका बेटा होता है। वे मन्नत पूरी करने देश विदेश से आते हैं। 
  
  
  
  इसे लक्ष्मी नारायण मंदिर, बड़े हनुमान जी का मंदिर, लंगूरों वाला मंदिर, मां दुर्गा तो है ही इन नामों से मंदिर को पुकारते हैं। ये 16वीं सदी से है। मौजूदा मंदिर का निर्माण 1921 में गुरु साईंमल कपूर द्वारा किया गया। इसकी नींव पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने रखी थी। मंदिर समय में सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। नौएडा में नवरात्र के कीर्तन के समापन पर महिलाएं लांगुर का हंसी मजाक का गीत गातीं हैं और जमकर नाचती हैं ’’लांगूर ऐसे नाचे, जैसे लंका में नाचे हनुमान’’ और मेरी आंखों के आगे र्दुग्याना मंदिर में देखा लंगूरों का मेला आ जाता है।
 इसे लक्ष्मी नारायण मंदिर, बड़े हनुमान जी का मंदिर, लंगूरों वाला मंदिर, मां दुर्गा तो है ही इन नामों से मंदिर को पुकारते हैं। ये 16वीं सदी से है। मौजूदा मंदिर का निर्माण 1921 में गुरु साईंमल कपूर द्वारा किया गया। इसकी नींव पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने रखी थी। मंदिर समय में सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। नौएडा में नवरात्र के कीर्तन के समापन पर महिलाएं लांगुर का हंसी मजाक का गीत गातीं हैं और जमकर नाचती हैं ’’लांगूर ऐसे नाचे, जैसे लंका में नाचे हनुमान’’ और मेरी आंखों के आगे र्दुग्याना मंदिर में देखा लंगूरों का मेला आ जाता है। जिसमें लंगूर फूदक रहे थे। क्रमशः
 जिसमें लंगूर फूदक रहे थे। क्रमशः

 
 
