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Saturday, 27 June 2020

अम्बरसरिया, अम्बरसरर्णी और चूड़ा, कलीरे अमृतसर यात्रा भाग 10 नीलम भागी Neelam Bhagi Churha Kaleerey Amritsar yatra Part 10



मोना को माइयां(हल्दी उबटन) रीति के अनुसार विवाह के दिन दोपहर तक किया गया। भात को यहां नानका छक कहते हैं। इसमें मामा नथ और चूड़ा लाता है। चूड़े को परात में कच्ची लस्सी(दूध मिला पानी) में रख देते हैं। बन्नी को नहीे दिखाते। शाम को पंडित जी मामा से सैंत कराता है। पूजा के बाद बन्नी को मामा चूड़ा और एक लोहे का कड़ा पहनाता है। इस कड़े के साथ वह कलीरा बांधता है। फिर सब रिश्तदारे कलीरे बांधते हैं। मैं तो उसके चहरे से टपकती खुशी के कारण, बन्नी का इस समय रूप देख कर हैरान थी। ऐसा चेहरे पर ग्लो कोई सौन्दर्य प्रसाधन नहीं ला सकता। अभी तो वही हल्दी तेल वाले कपड़े और बालों से भी चेहरे पर तेल चू रहा था पर वह बड़ी लावण्यमयी लग रही थी। 
 
लेकिन पंजाबी ब्राह्मण परिवार की बन्नी को हरे कांच की चूड़ियां पहनाई गईं थी। हरी चूड़िया देखते ही मैं समझ गई कि जीजा जी के पूर्वज पंजाब से बाहर के ब्राह्मण हैं पर अब तो पंजाबी ब्राहमण हैं अम्बरसरिये। इसके बाद बन्नी नहाने जाती है और उसका दुल्हन का मेकअप होता है। सप्तपदी के बाद भानजी की सास ने तुरंत उसे चूड़ा पहनाया ताकि वह पंजाबी दुल्हन लगे। भानजी की चूड़े वाली बांह देखते ही उसकी सास ने कहा कि जो भी घर में मुंह दिखाई के लिये आयेगा, उसे बताना नहीं पड़ेगा कि यह बहू है। उसकी दादी बोली," अब तुम्हारी बहू है जो मरज़ी पहनाओ।"
   लाल चूड़े का लॉजिक ये है कि पहले छोटी उम्र में लड़कियों की शादी होती थी। नये घर के तौर तरीके समझने में समय लगता है इसलिये जब तक चूड़ा बहू की बांह में है, उससे काम नहीं करवाया जाता था। अगर चूड़े का रंग उतर गया तो उस परिवार की बातें बनाई जातीं थीं कि बहू को आते ही चूल्हे चौंके में लगा दिया। सवा महीना या सवा साल बाद बहू मीठा बना कर चूड़ा बढ़ाती(उतारती) थी और सास गृहस्थी के काम, बहू को हस्तांतरित कर देती थी। दूसरी भानजी की शादी पर उसकी होने वाली सास ने कहा कि जयमाला ये चूड़ेवाली बाहों से डालेगी। दादी ने कहाकि कि हमारे यहाँ तो बेटी को हरे काँच की चूड़ियों में विदा करते हैं। समधन ने जवाब दिया कि हमारी होने वाली बहू तो चूड़ा पहनकर ही जयमाला पहनाती है। बेटी की शादी बहुत प्रतिष्ठित परिवार में हो रही थी। सब दादी को समझा रहे थे। वो तर्क दे रही कि कन्यादान यज्ञ होता है। पूर्वजों के नियम बदलने नहीं चाहिए। समझदार पंडित जी ने ऐसे मौके पर कहा कि शास्त्रों में विधान है कि नया रिवाज कुटुम्ब के साथ करो तो शुभ होता है। तुरंत कई जोड़े चूड़े के मंगाये गये।  पंडित जी के मंत्रों के साथ, बाल बच्चे वाली बहुओं ने भी चूड़े पहने। दादी बोलीं कि अब हमारे घर में बहू चूड़ा पहन कर आयेगी और बेटी चूड़ा पहन कर विदा होगी। वहाँ पता नहीं कोई वेदपाठी था या नहीं, पर पण्डित जी ने वेदों के नाम पर सब में समरसता पैदा कर दी थी। जब बॉलीवुड ने दुल्हन को चूड़े और कलीरे में दिखाया तो अब चूड़ा फैशन में आ गया है। जिनके यहां सैंत की रीति नहीं है, वे जब ब्यूटीपार्लर में ब्राइडल मेकअप के लिए जाती हैं। तो लिबास से मैचिंग कलर, लाल की कोई भी शेड का चूड़ा खरीद कर पहन लेतीं हैं। न्यूली मैरिड दिखना है तो पहन लिया, फिर बैंगल बॉक्स में रख लिया समय समय पर पहनने के लिए।
मेरी फेसबुक मित्र ममतेश भागी ने मेरे ग्रुप ’इरादा हिंदी का प्रचार’ में कमेंट किया है ’’मैं अक्सर पंजाब जाती हूं। लेकिन मैं अमृतसर सिर्फ एक बार गई। बहुत अपनापन है वहां। मेरी दादी सास अम्बरसर्णी थीं।
ममतेश जी मैं यहां जाने का कोई मौका नहीं छोड़ती। लॉकडाउन के कारण मैं अम्बरसर यात्रा लिख रहीं हूं। हमेशा यही सोच कर टाल जाती कि अगली बार जाउंगी तो लौटते ही लिखूंगी। क्रमशः 




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