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Saturday 13 June 2020

चैंगी एयरपोर्ट से दिल्ली सिंगापुर यात्रा Singapore yatra 19 Changi Airport to Delhi Neelam Bhagi नीलम भागी


                                                         
सिंगापुर में मैं पॉलिथीन का प्रयोग करना छोड़ कर आयी|

एयरपोर्ट पर मैं चैक इन का काउण्टर देख रही थी। इतने में दो सरदार जी मेरे पास आये और बिना कुछ बोले, मेरे आगे उन्होंने अपनी टिकट कर दी। मैंने पढ़ा, उनकी और मेरी फ्लाइट एक ही थी यानि वे मेरे सहयात्री थे। अब मैंने उनकी ओर देखा वे मुझे लेबर ही लगे। मैंने उन्हें पंजाबी में जवाब दिया कि मेरी भी यही फ्लाइट है। सुनते ही उनके चेहरे पर मुस्कान आई। उन्होंने पंजाबी में कहा,’’सानू कुज नई पता, आये तां असी किसे दे नाल सी। मतलब की उन्हें कुछ नहीं पता। जब वे यहाँ आये थे तो उनके गाँव का कोई पहले से यहाँ का रहने वाला था, वे उसके साथ आये थे। अब उन्हें कुछ नहीं समझ आ रहा है। वे गुरमुखी तो पढ़ना जानते हैं और कुछ नहीं। मैंने उनसे कहा कि आप मेरे साथ रहना। मैंने पटियाला सलवार, कुर्ता और बाग बूटी कढ़ाई का दुप्टा ले रक्खा था। पंजाबी पोशाक देखकर ही शायद वो मेरे पास आये थे। दोनों मेरे पीछे ही लाइन में लगे। वे चाचा भतीजे थे। जितने कदम मैं चलती उतने वे चलते, मैं रुकती वे रुक जाते। ये मेरी पूंछ बन गये। मेरा लगेज चैक इन में गया। मैं काउण्टर से हटी, वे घबरा गए ये सोच कर कि मैं उन्हें छोड़ कर  चल न दूं। मैं उनके बराबर खड़ी रही। जैसे ही उन्हें बोर्डिंग पास मिला, मैं चल दी, वे मेरे पीछे पीछे चल दिए। वे मेरे बराबर नहीं चलते थे। हमेशा पीछे ही रहे। सिक्योरिटी जाँच के लिए मैं लाइन में लगी। मेरी लाइन के पीछे लगे। किसी को मलेशियन महिला इशारा करती जाये, फिर जब एक सिक्योरिटी वाले ने आकर मेरे पीछे लाइन में लगे चाचा भतीजे को पुरूषों की लाइन में लगाया। तब मेरी समझ में आया कि ये सारा काण्ड मेरी पूंछ के कारण था। मेरे बराबर चल रहे होते तो मैं उन पर ध्यान देती और उन्हें महिलाओं की लाइन में न लगने देती। उन्हें तो बस ये पता था कि इस बीबी के पीछे  रहना है, दिल्ली तक। इन हैण्ड सामान में मेरे पास पर्स था और लैपटॉप बैग था। पर्स मिल गया और लैपटॉप लेने के लिये उन्होंने मुझे दूसरी लाइन की ओर इशारा कर दिया। अब मेरी पूंछ मुझसे कुछ दूरी पर मुझ पर आँखे गड़ाये खड़ी थी। सिक्योरिटी वालों ने लैपटॉप को बाहर निकाला और उसके बैग की सभी जेबों की तलाशी लेकर मुझे लौटा दिया। बैग लेकर जब मैं आई तो मेरी पूंछ दिखनी बंद हो गई। दिखती भला कैसे पूंछ तो पीछे होती है। मैं बोर्डिंग पास पर लिखे गेट नम्बर को खोजती जा रही थी। अपना गेट मिलते ही मैं जाकर एक सीट पर बैठी तो मुझसे कुछ दूरी पर पूंछ भी बैठ गई। फ्लाइट में अभी चालीस मिनट थे। मैं वाशरूम चल दी। बाहर आई तो देखा उनमें से एक बाहर खड़ा था। मैं समझ गई कि ये एक एक करके फारिग होने गये होंगे। मैं भी उसके पास खड़ी हो गई। दूसरे के आने पर मैं चल दी। वे भी मेरे पीछे चल दिये। मैं आकर बैठी तो वो भी बैठ गये। अब मुझे अपनी पूंछ से मोह हो गया। खाली बैठी क्या करूं सोचा चलो पानी पी आती हूं और चल दी। मुड़ कर यह देखने के लिए देखा कि पूंछ साथ है। पूंछ भला कैसे अलग हो सकती है। वो भी मेरे पीछे ही थी। क्रमशः

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