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Sunday 21 June 2020

गौन, पंजाबी गाने और सखी परिहास अमृतसर यात्रा भाग 4 Amritsar Yatra part 4 Neelam Bhagi नीलम भागी


पड़ोसियों ने मेहमानों के लिए अपने कमरे दे दिए थे। महिलाओं के आने से पहले पुरुष चले गए थे। रात नौ बजे से गीतों का बुलावा था। जैसे ही महिलाओं का ग्रुप आता, ऐसे लगता था जैसे कदमों के साथ कोई ढोल बजा रहा हो। मैंने पूछा,’’ ढोलक तो ऊपर है नीचे कौन बजा रहा है!! जबाब मिला कोई नहीं। पता चला सीढ़ियां लकड़ी की हैं। गीतों की खुशी में चहकती हुई, सजी धजी पंजाबनों  के कदम ऐसे पड़ रहे थे कि चाल से सीढ़ियों पर रिदम बन रही थी। नाक में नथ नहीं थी पर सबकी नाक में बड़े से बड़ा लौंग था जो रोशनी पड़ने पर लिशकारे मारता। शादी ब्याह के या किसी भी शुभ संस्कार के गीतो का हम घरेलू महिलाओं के जीवन में बड़ा महत्व है। इस मौके पर वे अपने अन्दर की रचनात्मकता निकालती हैं ,जिसमें उनके मन के उद्गार होते हैं। उनकी डायरियाँ निकलती हैं। जिसमें होते हैं लोकगीत। लोकगीत प्रकृति के उद्गार हैं। जनसामान्य की कला है। लोक रचित लोकगीतों में कोई नियम कायदे नहीं होते। ऐसा सुनने में आता है कि  जिस समाज में लोक गीत नहीं होते। वहाँ पागलों की संख्या अधिक होती है। रिश्तेदार आते हैं। वे अपने गीत गाते हैं और यहाँ सुने गीतों को ले जाते हैं यानि गीतों का आदान प्रदान होता है। और बरसों महिलाएं याद रखती हैं कि ये गीत अमुक की शादी में बहुत जमा।’’ हर शादी ब्याह में एक महिला ऐसी गुणवान होती है। जो शुभ अशुभ का भय दिखा कर सबका नेतृत्व कर लेती है और गुणवंती बहन बन जाती है। गुणवंती बहन से पूछ पूछ कर फिर सब काम होते हैं। खैर लेडीज संगीत में सज सज कर डायरी कॉपी ले लेकर महिलाएं बिल्कुल समय से आ गईं । गौन में सभी महिलाओं की भागीदारी थी। संगीत में गुणवंती बहन बोली,’’पहले पाँच सुहाग गाये जायेंगे। ये खण्ड बेसुरा गानेवालियों का था जिसके साथ देश का प्रख्यात ढोलकवादक भी  ढोलक नहीं बजा सकता। इस ओपेरा का मकसद होता हैं। शादी वाली लड़की यानि बन्नी की माँ, मासी और भुआ, दादी नानी को खूब रूलाना, अगर अरेंज मैरीज है तो बन्नी भी रोती है। लव मैरिज में लड़की मुंह नीचे करके हंसती है। क्योंकि वो बतातीं हैं कि शादी के बाद  ससुराल के नियम कायदे मानने होंगे यानि बंधन, मायके में तुम मेहमान की तरह होगी। पाँच सुहाग निपटते ही महिलायें खिल गई। अब गीत शुरू, अम्बरसर का गौन!!  मैंने पहली बार भाग लिया, जिसे मैं आजतक नहीं भूली। गीतों में अम्बरसरनियां किसी को भी कुछ भी कह रहीं थीं। सास भी सुन कर बुरा मानने की बजाय, ढोलक की थाप पर उठ कर नाचने लगती। अपने आप दो गुट बन गए, एक दादकों का, एक नानकों का। पड़ोसने और सहेलियां जो गुट कमजोर होता, उसका गीत जमाने में लग जातीं। बोलियां, टप्पे तुरंत बनातीं तुरंत गातीं। खुद ही गीतकार, खुद ही संगीतकार। पर एक भी गाना बॉलीवुड धुन पर नहीं गाया। मेरी शुभलता भाभी मेरे कान में धीरे से बोली,’’दीदी, आप भी कुछ गा दो या सबके साथ नाच लो। नही तो सब कहेंगे कि दिल्ली से मोना की मासी आई। उसे भानजी की शादी का जरा भी चाव नहीं था। न नाची, न गाई। जैसे ही गिद्धा खत्म हुआ। एक मेरी तरफ देख कर बोली,’’ हुन(अब) दिल्ली वाली मासी, गायेगी।’’बाकियों ने कोरस में पूछा,’’केड़ी(कौनसी)!! दुसरी बोली,’’ओ जेड़ी बाल खलेर के पटयांवाली, साड़ी ला के बैठीया(साड़ी पहने जो खुले, कटे हुए बालों वाली बैठी है।)। सुनकर मैं हंस पड़ी। अब तीसरी बोली,’’अच्छा,वो जो पंजाबी गीतों पर मुशायरे दी तरह तालियां बजा रही है। क्रमशः 

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