गाड़ी से गुज़रने में और पैदल चलने में फर्क होता है। होशंगाबाद में सेठानी घाट से हम होटल की तरफ पैदल चल दिये। दुकानों में तरह तरह के हैंण्डीक्राफ्ट थे। लेकिन एक जगह मैं अटक कर रह गई। कारण एक दुकान पर रंग बिरंगी लकड़ियों से बने वे रेड़े थे जिसे पहले छोटे बच्चे एक तीन पहिये के लकड़ी के ठेले को पकड़ कर खड़े होते थे और अपना बैलेंस बनाते थे।
पूरा कुनबा तालियां बजा बजा कर, बच्चे को बुलाता, हौंसला बढ़ाता था। बच्चा उस बदसूरत रेड़े के सहारे बड़ी मेहनत से ठुमक ठुमक कर पैर धरती पर रखता था। बच्चे का चलना सीखना, परिवार को उसका नाचना लगता था। साथ साथ गाते भी थे,’’ठुमक ठुमक पग धरे री कन्हैया, नाचे नंदलाल, नचावे उनकी मैया...’’बच्चे धीरे धीरे उसी के सहारे चलना सीखते थे। होशंगाबाद में एक दुकान पर रंग बिरंगी लकड़ियों से बने, उन बदसूरत रेड़ो का बहुत ही विकसित और खूबसूरत रुप था। मुझे आदम्य की याद आई, जो खड़ा होना सीख रहा था। मैं ठेले को लेने की सोच ही रही थी। दुकानदार ने एक रेड़ा खोल कर पैक कर दिया और मुझे समझा दिया कि ऐसे ही घर जाकर फिट कर लेना। कीमत कुल दो सौ रूपये। मैने ले लिया जबकि मुझे दस दिन आगे यात्रा पर जाना था। ये सोच कर ले लिया कि इसके रंग देख कर आदम्य बहुत खुश होगा। घर आते ही उसे फिट किया। आदम्य उसे देख कर बहुत खुश हुआ। उसे खुश देखकर हम भी बहुत खुश हुए। श्वेता अंकूर दोनो वर्किंग हैं। मेड ने जरा भी लापरवाही की तो आदम्य के चोट लग सकती थी। श्वेता अंकूर इस हैण्डिक्राफ्ट को शो पीस की तरह सजा कर रखना चाहते थे। और छुट्टी के दिन अपनी देख रेख में आदम्य सेे चलवाना चाहते थे।आदम्य उसे किसी भी तरह छोड़ता नहीं था। ये वॉकर श्वेता ने ऑनलाइन मंगवाया। प्लास्टिक का बड़ा सा गोल वॉकर आ गया। जिसकी हर दिशा में पहिए लगे हुए थे। बटन दबाते ही उसमें राइम्स बजने लगी। रैक्सीन की सीट, उसमें से उसकी दोनों टांगे नीचे लटक जातीं। वह जिस दिशा में जाना चाहता, पहिए ले जाते। अब वह अपनी मर्जी से होशंगाबादी रेड़े के पास ही जाकर खड़ा हो जाता, उसे ही लेने की जिद करता। हमने रेड़ा छिपा दिया। वॉकर के पहिए चलते, साथ ही वह भी चल लेता, उसी में खड़ा भी हो जाता। धुन के साथ झूमता भी| रेक्सीन की सीट से उसकी पोपो पसीने से भीग जाते तो उसे निकाल लेते। ऑफिस से आकर अंकूर रेड़ा निकालता। उसके सहारे एडी खड़ा होता, धीरे धीरे कदम बढ़ता। सब ताली से ताल देते। एक दिन ऑफिस से आकर श्वेता अंकूर चाय पी रहे थे।आदम्य ने उन्हें बिना सहारे के दो कदम चल कर दिखाया। तुरन्त उसे होशंगाबादी रेडा दिया, बैलेंस बनाना जो सीख गया था| उसके सहारे से चलने लगा| अब उसने रेड़ा छोड़ दिया। आदम्य अब साइकिल चलाता है। रेड़ा शो पीस की तरह सजा रहता है। वॉकर कबाड़ी को दे दिया।
3 comments:
ati sundar , great going
Hardik dhanyvad
Hardik dhanyvad
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