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Tuesday, 31 May 2022

रेल में हमारी संस्कृति नेपाल यात्रा से वापसी भाग 44 नीलम भागी

    


सीतामढ़ी का स्टेशन बहुत साफ सुथरा है। डस्टबिन रखे हुए हैं पर लोग उसका प्रयोग नहीं करते।


स्टेशन पर राजर्षि जनकजी का हल जोतते हुए और कन्या देवी सीता प्राप्त होने की मूर्तियां ही सीतामढ़ी की कहानी कह देती हैं।

अपनी लोअर सीट के नीचे लगेज़ रख कर और कॉटन के बैग को तकिए की जगह रख कर, मोटी शॉल ओढ़े मैं सो गई। ए.सी. का तापमान ठीक मेनटेन किया हुआ है। आमने सामने सब खाली है। सुबह नींद गर्म गर्म समोसे और चाय वालों की आवाज़ से खुली। ट्रेन का खाना पैकेज़ में नहीं है फिर भी हमें एक पेकैट नमकीन अजवाइन की पूरियों का दिया गया है। दो एक एक किलो आचार के डिब्बे भी न जाने किसके पास हैं। खीरे, टमाटर गुप्ता जी ने खूब ले रखे हैं और थोड़ी ब्रैड बटर भी। गर्मी में सब्ज़ी रास्ते में खराब न हो जाये इसलिए नहीं बनाई। मैंने दो समोसों के साथ चाय पी और फिर सो गई।  

    इकमा स्टेशन से संतोष राय का परिवार मेरे आजू बाजू की सीटों पर आया। सीटों पर सैटल होते ही संतोष राय अपनी मां से कॉल कर रहे हैं। मां उनको मिस कर रहीं हैं और वे उन्हें समझा रहे हैं कि वे उनकी एक कॉल पर आ जायेंगे। मुझे याद आ रहा है मेरे बच्चे भी यही कहते हैं पर हम माएं बच्चों की उनके परिवार के प्रति और कार्यस्थल की जिम्मेदारियों को समझतीं हैं इसलिए उन्हें परेशान नहीं करतीं हैं। ईश्वर से प्रार्थना करतीं हैं कि ये खुश रहें क्योंकि जब भी इन्हें मौका मिलता है ये परिवार सहित मिलने आते हैं। शशांक शेखर, संस्कार शोभित दोनों बेटे अपने चाचा को बहुत मिस कर रहे हैं। मीनू बताने लगीं कि चाचा इनके लिए चॉकलेट खूब लाते हैं। मां से कॉल के बाद संतोष राय कुछ गंभीर हैं पर कब तक! उनका एक अलग व्यक्तित्व है बोलने की कला में माहिर। वे बोलते हुए नहीं हंसते पर सुनने वाला हंसे, मुस्कुराए बिना नहीं रह सकता। साइड लोअर और अपर सीट पर  एक परिवार है पति पत्नी और तीन बच्चे दो लड़के और गोदी की लड़की। संतोष राय ने पति को बुढ़उ ही कहा, उसने बुरा नहीं माना बल्कि इनसे बतियाता भी। उनकी पत्नी को भौजी कहा। हम खूब चर्चा कर रहे हैं। उसमें एंटरटेनमैंट भी संतोष जरुरत के अनुसार मिक्स करते। जैसे गुप्ता जी आये संतोष ने उनका इंटरव्यू लेना शुरु कर दिया। उनकी ब्रैड में फफूदीं लगी है तो उन्होंने पूरी पर मक्खन लगा कर खाया और बताने लगे कि वे 66 साल के हैं न कोई गोली खाते हैं न योगा करते हैं बस व्यस्त रहते हैं और टैरेस गाडर्निंग करते हैं।   

      जो भी बिकने आता बुढ़उ परिवार को खरीद कर देता। लड़के खाते या मोबाइल देखते। न वे आपस में लड़े, न ही उन्होंने कोई शैतानी नहीं की। संतोष ने बुढ़उ से पूछा,’’ये सारे बच्चे तुम्हारे हैं। क्रिकेट टीम बनानी है क्या?’’बुढ़उ ने जवाब दिया,’’ये भाई है, लड़का है, लड़की ऐसे ही हो गई।’’

     नई जगह पर वहां के स्थानीय खाने मुझे पसंद हैं। अब हमारी बिहार के खान पान पर बात चली। मैंने कहा कि यहां छैना की मिठाई या सफेद रसगुल्ला ज्यादा बिकता है। लिट्टी चोखा बिहार से ज्यादा तो नौएडा में बिकता है। उन्होंने तुरंत मीनू से कहा कि इन्हें एटमबम दो। उसने दी जो छैने की बहुत ही लजीज़ मिठाई है। लिट्टी भी तली हुई गज़ब का स्वाद! मेरा पेट भरा हुआ है तब भी इस स्वाद को मैं नहीं भूलूंगी। पिछली दस दिन की बिहार यात्रा पर ये दोनों नए स्वाद छूट गए थे। जो आज जुड गए हैं।


    भौजी जब से आईं हैं। सबकी ओर पीठ करके वे खिड़की से बाहर ही देखती रहीं। कभी भौजी इण्डियन टॉलेट सीट पर बैठने की पोजिशन में बैठी, ऐसे दोनों हाथ चेहरे पर रख कर बाहर देखती हैं जैसे बाइसकोप देख रही हों। ये सीन बहुत मनोरंजक था पर फोटो लेना मैंने उचित नहीं समझा। समझाने के लिए कोई अपनी बाइस्कोप देखती फोटो लगाउंगी।


भौजी ने रात गहराने पर ही खिड़की से बाहर देखना बंद किया। संतोष ने बुढ़उ से पूछा,’’भौजी को घर में कैद रखते हो या बाहर भी आती जाती हैं। बुढ़उ औरतों के पति के बिना घर से बाहर कदम रखने के बहुत खिलाफ़ है। उसने बताया कि काम से लौटते समय हम जो कुछ भी चाहिए, लाकर देते हैं। जब हमारे पास र्फुसत होती है। तब तनिक घूमा भी लाते हैं। प्रयागराज पर गाड़ी काफी देर खड़ी रही। संतोष और बुढ़उ खूब बतियाकर आए। आकर संतोष राय ने बताया कि बुढ़उ ससुराल में दो ढाई लाख रुपया खर्च करके आ रहे हैं। हंसते बतियाते गहरी नींद आने पर ही सब सोए। साढ़े चार बजे हम आनन्द बिहार रेलवे स्टेशन पर उतरे।

      गुप्ता जी स्टेशन पर सामान अधिक होन के  कारण अपने बेटे का इंतजार कर रहे हैं। मैं थोड़ा दिन खुलने के इंतजार में उनके पास खड़ी हूं। इतने में फाइव स्टार सोशल वर्कर आई उसने गुप्ता जी को 145 नेपाली रु दिए। गुप्ता जी ने उसे 100 भारतीय रु दिए। वो बोली,’’232 भारतीय रु दो।’’ हमारे 100₹, 160 नेपाली रु के बराबर हैं। तब भी उन्हें ₹10 फालतू मिल रहे हैं। गुप्ता जी ने तुरंत उनके 145 नेपाली रु लौटा कर, उनसे 100₹  वापिस ले लिए। वो जाते हुए बोल गई आपको हिसाब भी नहीं आता। गुप्ता जी ने हाथ जोड़ कर जवाब दिया,’’नहीं आता बहन जी।’’ अब मैं नेपाल यात्रा की यादें दिल में संजोय, ऑटो लेकर अपने घर चल दी। समाप्त   


Monday, 30 May 2022

वैष्णव देवी मंदिर, हलेश्वर स्थान सीतामढ़ी नेपाल यात्रा भाग 43 नीलम भागी

 


 शहर के मध्य में स्थित भव्य वैष्णों देवी मंदिर है। जहाँ बड़़ी संख्या में श्रद्धालू दर्शन करने जाते हैं। यहां आटो रोकते ही राजा ने सामने लगे हैण्ड पम्प को दिखा कर कहा कि हाथ पांव धोकर जाना।


हाथ पाँव धोकर  हम मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहां की सफाई उत्तम है। अब आरती की तैयारी हो रही है। सखियां रोशनी, सुरेखा, राजकली, सरला आरती के लिए बैठ गईं। मुझे डॉक्टर ने नीचे बैठने को मना किया है मैं इसलिए इनके साथ नहीं बैठ पाती हूं।

रात हो गई है नई जगह है अभी हलेश्वर स्थान जो सीतामढ़ी से भी 3 किमी. उत्तर पश्चिम में है। वहां भी जाना है। इन्हें आरती के बीच में से ही लेकर आई। पता नहीं कौन सी टूटी सड़कों से ऑटो जा रहा है। इस स्थान पर राजा जनक ने अकाल के समय हलेष्ठी यज्ञ के पश्चात भगवान शिव का मंदिर बनवाया जो हलेश्वर स्थान के नाम से मशहूर है और इसी क्रम में सीताजी मिलीं।




      होटल लौट रहें हैं। मेरे दिमाग में यह सब पढ़ा सुना चल रहा है। त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री, भगवान राम की पत्नी  की पुनौरा जन्मस्थली है। जनश्रुति के अनुसार एक बार मिथिला में अकाल पड़ गया। पंडितों पुरोहितों के कहने पर राजा जनक ने इंद्र को प्रसन्न करने के लिये हल चलाया। पुनौरा के पास उन्हें भूमि में कन्या रत्न प्राप्त हुआ और साथ ही वर्षा होने लगी। अब भूमिसुता जानकी को वर्षा से बचाने के लिये तुरंत एक मढ़ी का निर्माण किया कर, उसमें सयत्न जानकी को वर्षा पानी से बचाया गया। अब वही जगह सीतामढ़ी के नाम से मशहूर है। प्राचीन काल में यह तिरहूत का अंग था। 1908 तक ये मुज्जफरपुर में ही शामिल था। 11 दिसम्बर 1972 में ये स्वतंत्र जिला बना। विष्णुपुराण के अनुसार पुनौरा ग्राम के पास ही रामायण काल के पुंडरीक ऋषि ने तप किया। वृहद विष्णुपुराण के अनुसार अवतरण की भूमि के पास ही रहते थे। महन्त के प्रथम र्पूवज विरक्त महात्मा और सिद्धपुरूष थे। वहीं उन्होंने तपस्या के लिए आसन लगाया जो उनकी तपोभूमि हो गई। कालान्तर में उनके भक्तों ने उसे मठ बना दिया। अब वह गुरू परम्परा चल रही है। उन्होंने नेपाल जनकपुर से लखनदेई तक की भूमि को जनक की हल भूमि को हलभूमि में नापा। ये एक जनश्रुति है और सीतामढ़ी में जामाता राम के सम्मान में सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। यह दूर दूर तक ख्याति प्राप्त मेला चैत्र की राम नवमीं और जानकी राम की विवाह पंचमी को लगता है। सीतामढ़ी पटना से 105 किलोमीटर दूर है। यहाँ का तापमान मध्य नवम्बर से मध्य फरवरी तक 5 से 15 डिग्री और गर्मी में 35 से 45 डिग्री तापमान रहता है। मध्य जुलाई से अगस्त तक बागमती, लखनदेई और हिमालय से उतरने वाली नदियों की वजह से बाढ़ग्रस्थ रहता है। बाढ़ की विभिषिका को भी ये लोग गाकर हल्का कर लेते हैं। लोक गीतों में जट जटनी झूमर जैसा है। झझिया नवरात्र में महिलायें सिर पर घड़ा रख कर नाचती गाती हैं। सोहर जनेऊ के गीत, स्यामा चकेवा, फाग, नचारी जिसमें शिव चरित्र का वर्णन है यहाँ गाये जाते हैं।

 होटल में सबसे देर से पहुंचने वाले हम है। खाना खाया। इतने तीर्थों की जिसमें मुक्तिनाथ की यात्रा को करने का सौभाग्य भी हैं। सब बहुत खुश हैं। कुछ तो अपने कमरों में नाच गा रहीं हैं।


रात दो बजे लिच्छवी एक्सप्रेस से जाना है। स्टेशन बिल्कुल पास में है। एक बजे गुप्ताजी ने सबके कमरों के आगे जय श्रीराम करना शुरु कर दिया। हम सबने अपना सामान लेकर स्टेशन की ओर प्रस्थान किया। क्रमशः




Sunday, 29 May 2022

सीतामढ़ी के दर्शनीय स्थल नेपाल यात्रा भाग 42 नीलम भागी Nepal Yatra Part 42 Neelam Bhagi


आटो चलते ही राजा ने हमसे आगे वाली ई रिक्शाओं के पीछे  अपना ऑटो न चला कर सीधा चलने लगा। मैंने पूछा,’’पहले हलेश्वर स्थान क्यों नहीं जा रहे हो, सब तो वहां जा रहें हैं? मेरे प्रश्न के जवाब में उसने कहानी समझाई कि पहले पास के मंदिरों के दर्शन करा देता हूं। एक तो ई रिक्शा वैसे ही धीरे चलती है। दूसरा इधर से पुलिस ने पास वाला रास्ता बंद कर रखा है। घूम के जाना पड़ता है। हम  आखिर में हलेश्वर स्थान छोटे रास्ते से जायेंगे। आप पुलिस से कह देना कि हम महिलाएं परदेसी टूरिस्ट हैं। हमारी गाड़ी छूट जायेगी, हमें जाने दो। परदेसी महिलाओं को वो जाने देगा।’’हम पांचों मैनें, रोशनी, सुरेखा, राजकली, सरला ने ये कहानी याद कर ली।   

 रेलवे स्टेशन से डेढ़ किमी. की दूरी पर जानकी मंदिर में श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण की मूर्तियां हैं। जानकी मंदिर के महन्त के प्रथम पूर्वज विरक्त महात्मा और सिद्ध पुरूष थे। अब मेरी इन पाँचों सखियों को कोई जल्दी नहीं है। बड़ी श्रद्धा और आराम से दर्शन कर रहीं हैं। राजा कहानी समझाने के बाद हमें मंदिरों पर उतार कर, वह भी इत्मीनान से ऑटो में बैठ जाता है। वह बिल्कुल नहीं कहता कि जल्दी करो, और जरा भी हाय तौबा नहीं मचाता है।  



उर्बीजा कुंड  जानकी मंदिर से कुछ दूरी पर यह पवित्र स्थल स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि उस कुंड के जीर्णोद्धार के समय लगभग 200 साल पहले सीताजी की एक प्रतिमा प्राप्त हुई थी। जिसकी स्थापना जानकी मंदिर में की गई हैं। सखियां जब पंडित जी कोई मंदिर से संबंधित कहानी सुनाते हैं तो बड़ी श्रद्धा से सुनती हैं।



  हम पुनौरा धाम की ओर चल पड़े। पुनौरा जानकी मंदिर के दर्शन किये। सखियां वहां आरती में शामिल हुईं। वहां बड़ी श्रद्धा से बैठी रहीं। यहां भी अब बहुत सफाई है। धूप दीप जलाने के लिए अलग स्थान बना है। जानकी कुण्ड देखा। जगह जगह बोर्ड लगे थे। उस पर लिखा था कृपया थूकिए नहीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि लोगों को यहाँ इतना थूकना क्यों पड़़ता है?  विवाह मंडप बना है। वहां आकर अल्प साधन सम्पन्न लोग शादी कर लेते हैं। अभी भी शादी हुई है। मैंने दुल्हा दुल्हिन की फोटो ली। सखियों को बुलाया तब वे उठ कर आईं। मैंने उन्हें पूरा परिसर घुमाया। आकर ऑटों में बैठे। मुझे सखियों की एक बात बहुत ही पसंद है। जब वे मंदिर से बाहर होती या ऑटों में होतीं तो उस शहर और दीन दुनिया से बेख़बर आपस में खूब बतियातीं हैं। मंदिर में जाते ही भगवान के दर्शनों में खो जातीं हैं। तब उनके चेहरे से श्ऱद्धा टपकती है। जब मैं उनको चलने को कहती तो वे मन मार के उठतीं हैं और चल पड़तीं हैं।






   अब राजा हमें हलेश्वर मना किए रास्ते से लेकर चल पड़ा। पुलिस जी ने ऑटो रुकवाया तो हम पाँचों कोरस में राजा द्वारा याद करवाई हुई कहानी, सुनाने लगीं। पुलिस जी ने हमें कहा,’’देखिए हम आप से कुछ नहीं कह रहे हैं। ये ऑटोवाला बहुुत बदमास है। सुन रे! इन्हें बड़ी मज्जिद की तरफ से हलेश्वर स्थान लेकर जा। बीच में रुकिए मत टाइम बहुत हो गया है।’’अब वह हमें सीतामढ़ी के गली मोहल्लों के दर्शन करवाता, शहर के बीच में स्थित वैष्णों देवी मंदिर लाया। हमें उतार कर बोला,’’पहले हैंडपम्प से हाथ गोड़ धो लो।’’एक सखी नल चलाने लगी। सबने हाथ पांव धोकर मंदिर में प्रवेश किया। क्रमशः 

   


Friday, 27 May 2022

विकास! जनकपुर से सीतामढ़ी नेपाल यात्रा 41 नीलम भागी Nepal Yatra Part 41 Neelam Bhagi



विकास दिख रहा है। जब मैं 2018 में सीतामढ़ी से जनकपुर आयी थी तो यहाँ सौर्न्दयीकरण किया जा रहा था इसलिये हमें बहुत खराब रास्ता मिला था। खराब सड़क जीरो माइलेज़ से शुरू हो रही थी। एक घण्टे में 10 किमी. की रफ्तार से गाड़ी चल रही थी। लौटते में  वही बिना स्ट्रीट लाइट के धूल मिट्टी की सड़क थी, सूरज डूब रहा था। गाय बकरियाँ झुण्डों में अपने डेरों में लौट रहीं थी। धूप नहीं थी शायद इसलिये जगह जगह साप्ताहिक बाजार लगे हुए थे। जहाँ लोग अपनी जरूरत का सामान ले रहे थे।  





      लेकिन आज! लाजवाब सड़क पर गाड़ी दौड़ रही है। अगर कोरोनाकाल न आया होता तो और भी सौन्दर्यीकरण हो गया होता। इतने में नाज़िर को फोन आ गया कि सुनीता अग्रवाल का मोबाइल मिल गया है। सुनकर बहुत अच्छा लगा। मैं तो वैसे ही हंसमुख, मेहनती, ईमानदार नेपालियों से बहुत प्रभावित हूं। कहीं भी जूते चप्पल के लिए टोकन नहीं दिया पर कभी किसी की चप्पल नहीं खोईं। मोबाइल मिलने से तो जाते जाते यहां की ईमानदारी से और भी प्रभावित हो गई हूं।  कानपुर की रेखा गुप्ता सखियां तो मोबाइल मिलना सुनते ही खिल गई। 


    जनकपुर से सीतामढ़ी  35 किमी. पूरब में एन.एच 104 पर भिट्ठामोड़ भारत नेपाल सीमा पर स्थित है। सीमा खुली है।


अब हम अपने देश में आ गए हैं। भारत नेपाल का संबंध तो रोटी बेटी का है। दुकानों के नाम भी संबंध दिखाते हैं। मसलन भारत नेपाल साड़ी संगम!

रामायण काल में मिथिला राज्य का यह महत्वपूर्ण अंग बिहार के उत्तर में गंगा के मैदान में स्थित यह जिला नेपाल की सीमा से लगा है। यहाँ की बोली बज्जिका है जो मिथिला और भोजपुरी का मिश्रण है। हिन्दी उर्दू राज काज की भाषा एवं शिक्षा के माध्यम की भाषा है। दिमाग में पौराणिक सुनी, पढ़ी कथाएं भी चल रहीं हैं। आँखें रास्ते की सुन्दरता, जगह जगह प्राकृतिक पोखरों को देख रहीं है।  यहाँ हो रहे विकास का बालरूप भी देखने को मिल रहा है। उम्मीद है कि ये विकास युवा भी होगा। सीतामढ़ी सांस्कृतिक मिथिला का प्रमुख शहर एवं जिला है। यह हिन्दुओं का बिहार में प्रमुख तीर्थ एवं पर्यटन स्थल है जो लक्षमना(लखनदेई) नदी के तट पर स्थित है। हमारा होटल स्टेशन के पास है। अब हम भीड़ वाले शहर में चल रहें हैं। यहां दुकानों के नाम सीता जी के नाम पर हैं। मसलन जानकी मिष्ठान आदि। एक जगह रास्ता डाइर्वट कर रखा था और नियम तोड़ने पर एक हजार रू का जुर्माना है। बस रोक कर पुलिस जी से पूछने गए। उन्होंने दूसरा रास्ता  बता दिया। उस रास्ते पर गए। गूगल की मदद ली, डेढ़ घण्टा बस से खेतों में भी भटके। फिर भीड़ में गए। थाने के पास बस रोकी। हेमंत तिवारी और हरीश गुप्ता जी पुलिस जी से पूछने गए की होटल कैसे जायें? उन्होंने कहा कि स्टेशन पर टैªफिक जाम हो जाता है इसलिए भारी वाहन बस वगैरह सब बंद कर देते हैं। वही जुर्मानेवाली जगह पर जाकर बस से उतरो। ई रिक्शा पर सामान के साथ बैठो और जाओ होटल। अब जहां से डाइर्वट हुए थे। वहीं लौटे। ई रिक्शा से होटल पहुंचे। रूम में गए। अब मैम कुछ नहीं बोलीं। मैं जाते ही लेट गई और मोबाइल पर लग गई। चाय बिस्कुट मिल गए और खाना बनने लगा। मैम मोबाइल पर जोर जोर से किसी से बातें करती हुई कह रहीं हैं,’’जब मैंने उसको अपना कार्ड दिखाया तो उसका पेशाब निकल गया।’’ पर अब गालियां नहीं दे रही हैं। होटल के आगे ई रिक्शा की लाइन लग गई। 300 रू तय हुआ कि वह 5 सवारियां बिठाएगा सीतामढ़ी के मंदिर दर्शन करायेगा। हम 5, मैं, रोशनी, सुरेखा, राजकली, सरला ही रह गए तो एक शेयरिंग ऑटो आ गया। उसे गुप्ता जी ने जाने को कहा,’तो बोला ,’’मैं तो 500 रू लूंगा सवारियां चाहे 12 बैठ जायें।‘‘ मैं उससे समझने लगी कि वह इसमें 12 सवारियां कैसे बिठाएगा! गुप्ता जी बोले,’’तुझे 500 ही मिलेंगे और ये पाँचों ही जायेंगीं। जल्दी कर सबके साथ पहले हलेश्वर चल।’’वह मुझे समझाने लगा कि उसका कैसे 12 सवारियां बिठाने का तरीका है। वहां जाम लगने लगा पुलिस जी ने डंडा दिखाया तो वह चला। क्रमशः   


Thursday, 26 May 2022

धनुष धाम नेपाल यात्रा भाग 40 नीलम भागी Dhanush Dham Nepal Yatra Part 40 Neelam Bhagi

 


 सुबह तैयार होकर पैकिंग करके नाश्ता किया और मैं रूम से बाहर आकर अपना लगेज़ बाहर बैठे गुप्ता जी के पास रख कर मारवाड़ी धर्मशाला के प्रांगण में घूमने चल दी। हमारे ग्रुप ने अभी चैकआउट नहीं किया है। महाराष्ट्र से एक ग्रुप आया है, वे बड़ी इत्मीनान से कॉमन हॉल में चमकदार साफ सुथरे फर्श पर अपने संगी साथियों से आपस में बतिया रहे हैं। मेज पर चाय और अल्पाहार रखा है। उनके कुक नाश्ता बनाने में किचन में लग गए हैं। वे कोई हाय तोबा नहीं मचा रहें हैं कि रूम कब मिलेगा! देखने में सादा पर बहुत ही सभ्य पर्यटक हैं।


बाहर आती हूं। आसपास बहुमंजिले घर, किसी की छत पर तो हवाईजहाज भी लैंड किया हुआ है।

ये मैदानी इलाका है इसलिए एक बड़ी बस आ गई। वही पहले मैं! वाली भगदड़ मच गई। जब सब सैटल हो गए तो मैं जाकर ड्राइवर का कैबिन खाली हैे। उसके पीछे की सीट पर बैठ गई। नाज़िर कहने लगा इधर ए.सी. नहीं है आप अंदर बैठ जाइये न। मैंने मन में सोचा कि यह खाली सीट है। यहां गर्मी ही तो लगेगी और खुली खिड़कियों से हवा के कारण बाल उलझेंगे और उनमें धूल मिट्टी पड़ेगी न। कोई बात नहीं तीर्थ यात्रा पर हूं।

साफ बढ़िया बनी सड़क पर बस दौड़ने लगी। बीच में वृक्षारोपण किया गया हैं। कहीं कहीं तो लकड़ी के ट्री र्गाड हैं। सड़कों पर शहीद द्वार बने हैं तो किसी चौराहे पर राजा जनक हल जोत रहें हैं की मूर्ति है।

अब सड़क के दोनों ओर सुनहरी गेहूं की बालें झूम रहीं हैं। एक जगह बस रोकी गई। क्लीनर चार बोतलें ले जाकर, उनका पानी पलट कर वहां लगे बोरिंग वाले नल से बोतलें भरने लगा। ये देखकर हेमंत तिवारी ने ड्राइवर से पूछा,’’इस पानी में कोई खासियत है!’’उसने जवाब दिया,’’ हां जी बहुत खासियत है।’’ चारों बोतलें भरते ही बस चल पड़ी।

अचानक रेखा गुप्ता ने बताया कि सुनीता अग्रवाल का फोन चार्जिंग पर लगा था वो उतारना भूल गई है। गुप्ता जी ने कहा कि धनुषा धाम के दर्शन कर लो फिर छोटी गाड़ी से धर्मशाला जाते हैं। 18 किमी. की दूरी 45 मिनट में पूरी करके बस मंदिर पहुंच गई। बस से उतरते ही मेरी नज़र एक मिठाई की दुकान पर सजी डिजाइनर मिठाई पर पड़ी जिसे महिला ने बनाया है। जलेबी की कारीगरी बहुत सुंदर है। मां बना रही है और तीनों बेटियां वहीं बैठी पढ़ रहीं हैं।


सामने दीवार पर बहुत अच्छे स्लोगन लिखे हुए हैं। मसलन 

पहिले करु शिक्षादान

तब करु कन्यादान।


   एक फास्टफूड का ठेला भी है। उसकी बोतलों में भरे रंगीन घोल आकर्षित कर रहे हैं। मैं उसके साथ फोटो खिंचवाने लगी। वह बोला,’’मैं तो जी अभी नहाया भी नहीं हूं। बाल बना लूं जरा!’’ मैं बोली,’’कोई बात नहीं मेरे बालों में तो इतनी धूल भर गई है कि कंघी भी नहीं चल रही।


ख़ैर 

 जूते उतार कर मंदिर में प्रवेश किया।      


   यह जगह जनकपुर से 18 किमी दूर है। लोकमान्यता के अनुसार दधीचि की अस्थियों से वज्र, सारंग तथा पिनाक नामक तीन धनुष रूपी अमोघ अस्त्रों का निर्माण हुआ। वज्र इंद्र को मिला था। सारंग विष्णुजी को मिला था और पिनाक शिवजी का था जो धरोहर के रूप में जनक जी के पूर्वज देवरात के पास रखा हुआ था।

 इस धनुष को उठाना और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाना, जनक जी के वंश में किसी के वश की बात नहीं। इसका कभी प्रयोग ही नहीं हुआ इसलिए यह पूजा घर में रखा गया है। उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ जब सीता जी ने पूजाघर की सफाई करते समय पिनाक को इधर से उधर कर दिया। उनका यह गुण देख कर मिथिला नरेश ने घोषणा की कि जानकी का विवाह उन्होंने उस व्यक्ति से करने का निश्चय किया है जो पिनाक की प्रत्यंचा चढ़ाने में समर्थ हो।

  जनक के यज्ञ स्थल यानि वर्तमान जनकपुर के जानकी मंदिर के निकट यह समारोह हुआ।

यहां पंडित जी श्रद्धालुओं को चित्र दिखाते हुए बताते हैं कि जब पिनाक धनुष टूटा तो भयंकर विस्फोट हुआ था और एक भाग श्रीराम मंदिर के सामने तालाब में गिरा और दूसरा धनुषकोटी तमिलनाडु में गिरा और मध्य भाग यहां गिरा। धनुषा धाम के निवासियों ने इसके अवशेष को सुरक्षित रखा। जिसकी पूजा अनवरत चल रही है और मेरा सौभाग्य है कि मैं भी यहां दर्शन कर रहीं हूं। 550 साल से अधिक पुराना पेड़ है, जिसकी जड़ में पताल गंगा है। 





 हर साल मकर संक्राति के अवसर पर यहां त्योहार होता है। दर्शन करके बस में बैठे और बस सीतामढ़ी की ओर चल दिए। क्रमशः      


Wednesday, 25 May 2022

जनकपुर के दर्शनीय स्थल नेपाल यात्रा भाग 39 नीलम भागी Janakpur Dham Nepal Yatra Part 39 Neelam Bhagi

ई रिक्शावाले से मैंने कहा कि यहां कि जो जो कहानियां तुम्हे आतीं हैं सब सुनाते हुए जाना है। वह जितना जानता था, बड़े अच्छे से सुनाता गया। जानकी मंदिर से सटे राम जानकी विवाह मंडप के चारों ओर छोटे छोटे ’कोहबर’ हैं जिनमें सीता राम, माण्डवी भरत, उर्मिला लक्ष्मण एवं श्रुतिकीर्ति शत्रुघ्न की मूर्तियां हैं। राम मंदिर के विषय में जनश्रुति है कि अनेक दिनों तक सुरकिशोर दास जी ने जब एक गाय को वहां दूध बहाते देखा तो खुदाई करायी जिसमें मूर्ति मिली। वहां एक कुटिया बनाकर उसका प्रभार एक संन्यासी को सौंपा, इसलिए तब से उनके राम मंदिर के महन्त संन्यासी ही होते हैं। जबकि वहां के अन्य मंदिरों के वैरागी हैं। जनकपुर में अनेक कुंड और आसपास 115 सरोवर हैं। सीताकुंड, अनुराग सरोवर, परशुराम सागर सीताकुंड इत्यादि ज्यादा प्रसिद्ध हैं। मंदिर से कुछ दूर ’दूधमती’ नदी के बारे में कहा जाता है कि जनक जी के हल चलाने से धरती से उत्पन्न शिशु सीता जी को दूध पिलाने के उद्देश्य से कामधेनु ने जो दूध की धार बहायी, उसने बाद में नदी का रुप धारण कर लिया।

 भूतनाथ मंदिर पशुपतिनाथ मंदिर की तरह बनाया है। मंदिर के सामने हराभरा बाग और उसके आगे शमशान है। दर्शन करके सीढ़ियां उतरने लगी तो चिता जलती दिख रही थी।


हनुमान मंदिर कदम चौक पर है। इधर भी बहुत बड़ा सरोवर हैं। यहां सभी मंदिरों में सफाई उत्तम है।





जनकजी की कुलदेवी का मंदिर देखने गए।




अब वह हमको गंगा सागर लेकर गया जहां शाम को गंगा जी की आरती दशर्नीय है।

यह एक तालाब है जिसका नाम गंगा सागर है। इस तालाब के बारे में बताया कि महाराजा जनक ने शिव धनुष की पूजा के लिए पवित्र जल की मांग की थी और शिव जी ने स्वयं आकाश से यहां जल प्रदान किया था।

रिक्शा वाले ने कहा कि वह बाहर हमारा इंतजार कर रहा है। आरती के बाद हमें धर्मशाला छोड़ देगा। मैं और मैम अंदर आए। देखा सागर के आसपास हमारे सहयात्री बैठे हुए हैं। आरती हमारे जाने पर ही शुरु हुई। इस आरती को यहां गंगा आरती कहते हैं। गंगा जी के प्रति श्रद्धा और श्रद्धालुओं के भाव से यहां अलग सा माहौल बना हुआ है। यहां बैठना बहुत अच्छा लग रहा है। आरती के समापन पर सब बाहर आकर अपने अपने ई रिक्शा पर बैठ गए। मुझे अपना रिक्शा नहीं दिखा। मैंने उसका नाम भी नहीं पूछा था क्योंकि वह रिक्शा बाहर छोड़ कर हर जगह मेरे साथ मुझे वहां के बारे में बताता चलता था। मुझे परेशान देख कर रिक्शावाले कोरस में बोले ,’’वो जहां भी होगा आपको लेकर ही जायेगा। उसका नाम क्या था?’’मैंने कहा,’’नाम पूछा नहीं, चश्मा लगाता है।’’एक हंसते हुए बोला,’’वो पढ़ने का बहुत शौकीन है। कुछ भी पढ़ लेता है। कहीं अखबार मिल गया होगा, रोशनी देख कर बैठा पढ़ रहा होगा। पर वह सामने से भीड़ में मुझे खोजता चला आ रहा है। अब मैं मुड़ कर मैम को देखने लगी। वो बोला,’’ मैम ने कहा था कि उन्हें नहीं देखनी आरती। अभी इसी वक्त मुझे छोड़ कर आओ। उन्हें धर्मशाला छोड़ने गया था।’’मैं और सरोज बैठ गए वह बताने लगा कि होली से पहले पूर्णिमा को यहां एक दिवसीय परिक्रमा होती है। धर्मशाला  आ गए। डिनर तैयार था। खाया और आकर सो गई। सुबह हमें धनुषाधाम  होते हुए सीतामढ़ी जाना है। क्रमशः           

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