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Sunday, 31 December 2023

गंगा जी के किनारे!अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'नदी साहित्य' में हरिद्वार यात्रा भाग 2 नीलम भागी

  

रिसेप्शन पर पहुंचते ही डॉक्टर सुनील  पाठक अध्यक्ष अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड मिले। उन्होंने अपना परिचय दिया। उनकी तबीयत कुछ खराब लग रही थी लेकिन सबको बहुत अच्छे से अटेंड कर रहे थे। मुझे तुरंत मेरे रूम में भेजा। यहां चूरू से बहुत लंबा सफर करके  स्नेह लता, सुरेश शर्मा जी एडवोकेट , अनुसूया शर्मा, राजेंद्र शर्मा 'मुसाफिर' कुछ समय पहले ही पहुंचे थे। मेरे पहुंचते सुरेश जी और राजेंद्र जी दूसरे रूम में चले गए। स्नेहलता जी और अनुसूया जी के  साथ, मुझे रूम शेयर करना था। परिचय के बाद दोनों आपस में कहने लगी कि पानी का स्वाद मुंह में नहीं चढ़ रहा है। गर्मी थी जो वह पानी अपने घर से लाई थीं, वह बीकानेर तक खत्म हो गया था। मुझे सुनकर बड़ा अजीब लगा। बाद में पता चला कि वे बारिश का पानी स्टोर करते हैं, बड़े-बड़े टैंक बना रखे हैं और एक बूंद भी बरसात का पानी उनके घर का व्यर्थ नहीं जाता, सीधा टैंक में जाता है जो खराब नहीं होता है, पूरा साल चलता है। सुनकर बहुत अच्छा लगा। जितने भी मेरे दिमाग में इस सिलसिले में प्रश्न खड़े थे। सभी का जवाब बहुत संतोषजनक मिला। फिर हम लंच करने गए ।  बूंदा बांदी हो रही थी। हम बतियाने लगे। 4:00 बजे बारिश के रुकने के बाद हम गंगा जी से मिलने चल दिए। हरिद्वार मैं पहले भी बहुत आई हूं और इस बार मुझे ज्यादा घूमना नहीं था। अपनी चोटों से डरी हुई थी। अपने ब्लॉक के हरिद्वार यात्रा के लिंक लगाऊंगी। क्लिक करके आप पढ़ सकते हैं। 

https://neelambhagi.blogspot.com/2016/12/blog-post.html?m=1

https://neelambhagi.blogspot.com/2021/10/blog-post_8.html

https://neelambhagi.blogspot.com/2021/10/blog-post_7.html

 हम जैसे ही जम्मू यात्री निवास से बाहर रोड पर खड़े हुए, लगातार  20₹ सवारी शेयरिंग ऑटो आ रहे थे। हम पांच तो उसमें बैठे। उसने हमें हर की पैड़ी के पास जो फुटओवर ब्रिज है, वहां उतार दिया। लता जी और सुरेश जी आगे आगे चले गए। अनुसूया, राजेंद्र जी और मैं फोटो सेशन करने लगे। जब हम लता जी के पास पहुंचे तो वे गंगा जी में डुबकी लगा चुकी थीं। सब ने गंगा जी के पास जाकर अपने ऊपर गंगाजल छिड़का। धीरे-धीरे भीड़  बढ़ रही थी। हम भी खूब घूम कर 5:00 बजे धूप में ही खाली जगह देखकर बैठ गए। यहां बैठना ही अपने आप में दूर दूर से आए भारतवासियों की झलक और गंगा जी के प्रति उनका प्रेम दिखाता है। कोई पॉलिथिन बेच रहा है, जिसे ख़रीद कर लोग उस पर बैठ रहे थे। चाय बेचने वाले, सबसे  ज्यादा पूजा करवाने वाले पंडित जी, घूम रहे थे और लोग पूजा करवा रहे थे। जो गंगा के किनारे पूजा के लिए जाता उसे आने जाने की लोग तुरंत जगा देते । आरती से पहले के नजारे भी बहुत अच्छे लगते हैं। कुछ लड़के गंगा जी में गोते मार कर रेत की मुट्ठी भर के और उसमें से जो भी उन्हें मिलता है गंगा जी की तरफ से उसे पाकर  प्रसन्न होते हैं। आरती के लिए दान देने वालों की भी कमी नहीं थी, रसीद कटवा रहे थे। स्वयंसेवक व्यवस्था देख रहे थे। धीरे-धीरे अंधेरा होने लगा और आरती शुरू हुई। इस समय कोई आपस में बात नहीं कर रहा था। चारों ओर आरती का स्वर था और श्रद्धालुओं का भाव! हम आरती खत्म होने से थोड़ा पहले उठ गए, बाद में बहुत भीड़ हो जाती है और आरती का समापन हमारा गंगा जी के किनारे चलते हुए ही हुआ । गंगा जी से सबको कुछ न कुछ मिलता  है। किसी को मानसिक संतोष, कोई आरती करवा कर पुण्य प्राप्त कर रहा है तो कोई पानी में गोते लगाकर, रेत में कुछ पा रहा है। जय गंगा मैया। अब वही शेयरिंग ऑटो ढाई सौ रुपए में था।  जम्मू यात्री निवास में लौटे तो प्राची पाठक अपने सहयोगियों के साथ रजिस्ट्रेशन कर रही थीं।  हमने रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरा और डिनर के लिए गए। कुछ भी नया ट्राई करना, मेरी आदत में शामिल है यहां एक सब्जी थी, उसे खट्टा बोलते थे मोटे मोटे सीताफल के टुकड़े और जो ग्रेवी थी  वह बहुत ही लजीज खट्टी मीठी थी। रूम में लौटे, 

 लता जी  ने अपनी लिखी दो पुस्तकें  'दो दूनी चार  और स्वयंसिद्धा' दी। जो किताबें लिखते हैं, उनका मैं दिल से बहुत सम्मान करती हूं। दो दूनी चार तो मैंने वहीं पर पढ़ ली और लता जी से उस पर बात भी कर ली। क्रमशः 









मकर संक्राति की झलक अलग अलग रुपों में! जनवरी उत्सव और उल्लास नीलम भागी



उत्सव यानि पर्व या त्यौहार का हमारी संस्कृति में विशेष स्थान है। साल भर कोई न कोई उत्सव चलता ही रहता है। हर ऋतु में हर महीने में कम से कम एक प्रमुख त्यौहार अवश्य मनाया जाता है। तीर्थस्थान पर स्नान करते हैं। धर्म और लोककथाओं के बाद उत्सव की एक महत्वपूर्ण उत्पत्ति कृषि है। धार्मिक स्मरणोत्सव और अच्छी फसल के लिए धन्यवाद दिया जाता है। रवि की फसल की बुआई सितम्बर से नवम्बर तक हो जाती है। फिर बड़ी श्रद्धा और उत्साह से उत्सव मनाते हैं। इन सभी उत्सवों में प्रकृति वनस्पति और जल है। अक्टूबर से जनवरी वह समय होता है जब पूरे देश को उत्सवमय देखा जा सकता है। रेल विभाग को अतिरिक्त गाड़ियां चलानी पड़ती हैं। हवाई टिकट मंहगी होती है। कुछ उत्सव किसी अंचल में मनाए जाते हैं। कुछ देश भर में, भले ही नाम अलग अलग हों। हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करना, परिवार के साथ सामाजिक समारोहों में जाना, मेलों में खरीदारी करना और उपहार देना, भण्डारे करना, भ्रमण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना और पर्यटन के लिए छुट्टियां भी हैं।

’’सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार’’ मकर संक्राति (15 जनवरी) को गंगा जी जहाँ सागर (बंगाल की खाड़ी) में विलीन होने से पहले, गंगा जी में पवित्र डुबकी लगाने के लिए तीर्थयात्री देश विदेश से गंगासागर पहुँचते हैं। यहाँ 8 जनवरी से 16 जनवरी को लगने वाले मेले को गंगा सागर मेला कहते हैं। लेकिन डुबकी मकर संक्राति को ही लगाई जाती है।

’’विकसित युवा -विकसित भारत’’की थीम पर इस वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस पर 12 जनवरी( स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिवस ) से 16 जनवरी तक कर्नाटक के हुबली-धारवाड़ में आयोजित किया जा रहा है। जिसमें स्वामी विवेकानन्द जो युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं उनके विचारों और दर्शन को अपनाने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करना है। 

अमृतसर में छोटी पतंग को गुड्डी कहते हैं और बड़ी पतंग को गुड्डा कहते हैं। यहां लोहड़ी को पतंगबाजी देखने लायक होती है। इस दिन छुट्टी होती है। बाजार बंद रहते हैं। आसमान गुड्डे, गुड़ियों से भर जाता है। छतों पर माइक लगा कर कमैंट्री चलती है। मसलन लाल गुड्डी दा चिट्टे गुड़डे नाल पेंचा लड़दा पेया। लाल गुड्डी आई बो।(लाल और सफेद पतंग का पेच लड़ रहा है। लाल पतंग कट गई)। आई बो के साथ ही शोर मचता है। घरवालों को पतंगबाजों के खाने पीने की चिंता है तो छत पर पहुंचा दो, ये खा लेंगे, वरना भूखे मुकाबला करते रहेंगे। लेकिन मोर्चा छोड़ कर नहीं जायेंगे, वहीं डटे रहेंगे। शाम को लोहड़ी(13 जनवरी, पंजाब और उत्तर भारत का फसल उत्सव) जलाई जाती है। तब ये पतंगबाज, लोहड़ी मनाने, ढोल पर नाचने के लिए नीचे उतर कर आते हैं। बाकि बची पतंगे संक्रांति को उड़ाते हैं। यहां पर परंपरा का पालन जरुर किया जाता है। लोहड़ी की रात को सरसों का साग और गन्ने के रस की खीर घर में जरुर बनती हैं, जिसे अगले दिन मकर सक्रांति को खाया जाता है। इसके लिए कहते हैं ’पोह रिद्दी, माघ खादी’(पोष के महीने में बनाई और माघ के महीने में खाई) बाकि जो कुछ मरजी़ बनाओ, खाओ। हमारा कृषि प्रधान देश है। फसल का त्यौहार हैैं। इस समय खेतों में गेहंू, सरसों, मटर और रस से भरे गन्ने की फसल लहरलहा रही होती है। आग जला कर अग्नि देवता को तिल, चौली(चावल) गुड़ अर्पित करते हैं। परात में मूंगफली, रेवड़ी और भूनी मक्का के दाने, चिड़वा लेकर परिवार सहित अग्नि के चक्कर लगा कर थोड़ा अग्नि को अर्पित कर, प्रशाद खाते और बांटतें हैं। नई बहू के घर में आने पर और बेटा पैदा होने पर उनकी पहली लोहड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। भोज भी करते हैं। कडा़के की सर्दी में आग के पास ढोलक पर उत्सव के अवसरों पर गाये जाने वाले अलिखित और अज्ञात रचनाकारों द्वारा रचितः अनेकानेक लोकगीत सुनने को मिलते हैं। जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक परांपरा से सुरक्षित हैं। अगले दिन मकर संक्राति को आस पास के नदी सरोवर में स्नान करके, खिचड़ी और तिल का दान करते हैं और खिचड़ी और तिल के लड्डू खाये जाते हैं। स्वाद से खाते हुए बुर्जुग कवित्त बोलते हैं ’खिचड़ी तेरे चार यार, घी पापड़ दहीं अचार’।

  क्योंकि देशभर में कई शहरों में पतंगे मकर संक्रांति को उड़ाने की परंपरा है इसलिए इसे पतंग उत्सव भी कहते हैं। कुछ राज्यों तेलंगाना, गुजरात, राजस्थान, पंजाब में ’पतंग महोत्सव’ मनाया जाता है। उत्तर भारत में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ती है। इस दिन पतंगें उड़ाते हुए, कई घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है।

    94 वर्षीय अम्मा प्रयागराज में बिताए वर्षो के कल्पवास और माघ मेले को याद करती हैं। मकर संक्राति से कल्पवास शुरु है। इस बार यह 52 दिन का माघ मेले को मिला कर हो जायेगा। वे बताती हैं कि त्रिवेणी, संगम, गंगा जी, यमुना जी के किनारे निशुल्क कुटिया इतनी बन गईं कि लगता जैसे कोई गांव बस गया। श्रद्धालू यहां कल्पवास करने आते हैं। कल्पवास में स्नान के साथ यहाँ ज्ञान यज्ञ भी होता है। इनका  आध्यात्मिक जीवन ही नहीं, आर्थिक दृृष्टि से भी बहुत महत्व है। ये आदरणीय लोग स्वेच्छा से न्यूनतम भौतिक साधनों पर जीवन निर्वाह करते हुए, पूरे समाज के सामने सादगी और त्याग का आदर्श रखते हैं। एक समय भोजन करते हैं , ठंड के कारण जगह जगह अलाव जलते हैं। सिंघाड़ा, शकरकंदी और आलू, मूंगफली भून के खाते हैं। र्बेरे की रोटी (जौं चने की मिक्स रोटी), ज्यादा अरहर की दाल, चावल और नमुना(मिक्स वैजीटेबल) प्राय इनका भोजन होता है। कुछ लोग साथ में अपनी बकरियां भी लाते हैं। वहां जरुरत के सामान के लिए अस्थाई दुकाने भी लग जातीं। घर के लोग जब इन्हें मिलने आते तो वे भी अतिआवश्यक सामान दे जाते हैं। रोज तो नहीं पर विशेष दिनों जैसे माघ पूर्णिमा, मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, बसंत पंचमी पर पिता जी के ऑफिस जाने के बाद, अम्मा को लेकर दादी, दो दो आने सवारी के टांगे पर बैठ कर, घर से लोकनाथ तक जाती और आगे पैदल जाकर गंगा स्नान और माघ मेला देख कर आतीं। ये बताते हुए अम्मा के चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे अभी गंगा स्नान करके आ रहीं हों। मैं उनके चेहरे पर आए भाव को देखती रही इसलिए मेरा ऐसा मानना हैं कि अपनी समर्थ के अनुसार तीर्थ यात्रा जरुर करनी चाहिए।

    राधे मिस्त्री काम करते हुए अम्मा को सुन रहा था, बताने लगा,’’जिसके पास गंगाजी नहीं होती वो जो भी पास में नदी होती है। वहीं मकर संक्राति नहान करता है। जैसे हमारा गाँव ननियुरा, जलालाबाद( उसके अनुसार जहाँ परशुराम ने अवतार लिया था) शाहजहाँ पुर, वहाँ से गंगाजी की एक धारा 5 किमी, बहाबुल नदी 2 किमी, रामनगरिया गंगा जी 20 किमी दूर हैं। वहाँ पवित्र दिन स्नान के लिए गाँव से ट्रॉली भर भर के राम नगरिया जाते हैं। रास्ते में कोई पैदल जाता दिखा तो उसे भी बैठने का आग्रह करते हैं। वो पैसे देकर ही ट्रॉली में बैठने को राजी होता है। उसका मानना है कि अगर उसने डीजल के भी पैसे नहीं दिए तो उसका गंगा स्नान का पुण्य तो मुफ्त में, ले जाने वाले को लगेगा न।’’ त्यौहार मनाने का तरीका हमारा उनका एक सा है। वही तिल, गुड़, खिचड़ी आदि।    

पूर्वोत्तर भारत में भोगाली बिहू मनाते हैं। यह मकर संक्राति का उत्सव, माघ बिहू एक सप्ताह तक मनाया जाता हैं। मकर संक्रातिं की पूर्व संध्या को लकड़ी बांस, फूस आदि से मेजी बनाई जाती हैं। वहां पारंपरिक भोज बनाये और खाए जाते हैं। मकर संक्रातिं को सुबह मेजी की प्रदक्षिणा करके उसमें आग लगा दी जाती है। एक दूसरे को गमुछा(गमछा) भेंट करके प्रणाम करते हैं। चिड़वा, दहीं, गुड़ खाया जाता है। हुरुम(परमल), नारियल, तिल के लड्डू बनाते हैं। दावत में तिल नारियल का पीठा जरुर  बनता है। भोगाली बिहू यानि माघ बिहू में अलाव जलाने और भोज खाने और खिलाने की परंपरा है। नये कपड़े  पहनते हैं पर युवाओं का दूसरे के बाड़े से सब्जी चुरा कर तोड़ना शगल है।   

 नवान्न और सम्पन्नता लाने का त्यौहार पोंगल का इतिहास कम से कम 1000 वर्ष पुराना है। दक्षिण भारतीय देश विदेश में जहां भी रहते हैं। पोंगल उत्साह से मनाते हैं। इस त्यौहार का नाम पोंगल इसलिए है क्योंकि सूर्यदेव को जो प्रसाद अर्पित करते हैं वह पगल कहलाता है। तमिल भाषा में पोंगल का एक अर्थ है, अच्छी तरह उबालना। चार दिनों तक चलने वाले पोंगल में वर्षा, धूप, खेतिहर मवेशियों की अराधना की जाती है। जनवरी में चलने वाले पहली पोंगल(15 जनवरी) को भोगी पोंगल कहते हैं जो देवराज इन्द्र( जो भोग विलास में मस्त रहते हैं) को समर्पित है। शाम को अपने घरों का पुराना कूड़ा, कपड़े लाकर आग लगा कर, उसके इर्द गिर्द युवा भोगी कोट्टम(एक प्रकार का ढोल) जिसे भैंस के सींग से बजाते हैं।

दूसरा पोंगल सूर्य देवता को निवेदित सूर्य पोंगल है। मिट्टी के बर्तन में नये धान, मूंग की दाल और गुड़ से बनी खीर और गन्ने के साथ, सूर्य देव की पूजा की जाती है।

 तीसरा मट्टू पोंगल तमिल मान्यताओं के अनुसार माट्टु भगवान शंकर का बैल हैं जिसे उन्होंने पृथ्वी पर हमारे लिए अन्न पैदा करने को भेजा है। इस दिन बैल, गाय और बछड़ों को सजा कर उनकी पूजा की जाती है। कहीं कहीं इसे कनु पोंगल भी कहते हैं। बहने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करतीं हैं। भाई उन्हें उपहार देते हैं। 

चौथा दिन कानुम पोंगल मनाया जाता है। इस दिन दरवाजे पर तोरण बनाए जाते हैं। महिलाएं मुख्यद्वार पर रंगोली बनाती हैं। नये कपड़े पहनते हैं। रात को सामुदायिक भोज होता है। तमिल की तन्दनानरामयाण के अनुसार श्री राम ने मकर संक्रातिं को पतंग उड़ाई थी और उनकी पतंग इन्द्रलोक में चली गई। अब सागर तट पर लोग पतंग उड़ाते और धूप से मुफ्त में प्राप्त विटामिन डी का सेवन करते मिलेंगे। तमिल नाडु से जुड़े होने से यही दिन आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है। 

  केरल में राजा राजशेखर ने अयप्पा को देव अवतार मान कर सबरीमालाई में देवताओं के वास्तुकार विश्कर्मा से डिजाइन करवा कर अयप्पा का मन्दिर बनवाया। ऋषि परशुराम ने उनकी मूर्ति की रचना की और मकर संक्रातिं को स्थापित की। आज भी यह प्रथा है कि हर साल मकर संक्रातिं के अवसर पर पंडालम राजमहल से अयप्पा के आभूषणों को संदूक में रख कर, एक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। जो 90 किलोमीटर तीन दिन में सबरीमाला पहुंचती है।

अंतर्राष्ट्रीय पतंगबाजी महोत्सव(14 -15 जनवरी) साबरमती रिवरफ्रंट अहमदाबाद में पतंगबाज पहुंचेंगे।

बीकानेर ऊँट महोत्सव(13 से 15 जनवरी) इसकी शुरूवात जूनागढ़ किले के परिसर से ऊँटों के एक रंगीन जुलूस से होती है। 

टुसू महोत्सव(टुसू परब, मकर परब, पूस परब)(15 दिसम्बर से 15 जनवरी) झाड़खंड के कुड़मी और आदिवासियों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। एक महीने तक नाच गानों, कर्मकांडों से मनाया जाता है। अंतिम दिन मकर संक्राति को मनाए जाने वाले इस लोक उत्सव में सुबह नदी में स्नान करके उगते सूरज की प्रार्थना की जाती है। और कुवांरी कन्याओं द्वारा बनाई टुसू देवी की मूर्ति, एक माह तक प्रतिदिन शाम को पूजने के बाद विसर्जित कर दी जाती है।

ृतिरूवल्लूर दिवस तमिलनाडु सरकार ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के प्रसिद्ध तमिल कवि दार्शनिक, तिरूवल्लुर के सम्मान में 15 जनवरी को तिरूवल्लूर दिवस के रूप में मनाती है।

गुरू गोविंद सिंह जयंती(17 जनवरी) सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरू गोविंद सिंह जी का जन्मोत्सव दुनिया भर के गुरूद्वारों में मनाया जाता है।

 तैलंग स्वामी जयंती(21 जनवरी) तैलंग स्वामी अपनी योग शक्तियों और लंबे जीवन के लिए प्रसिद्ध हैं।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती(23 जनवरी) हमारे स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता, आज़ाद हिंद फ़ौज को गठने वाले, देश को राष्ट्रीय नारा ’’जय हिन्द’’ देने वाले नेताजी को इस दिन देश याद करता है।  

शाकंभरी देवी जयंती उत्सव(25 जनवरी) माँ शाकंभरी देवी मंदिर सहारनपुर में मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। 

गणतंत्र दिवस(26 जनवरी) सुबह परेड देखना और दिन भर जगह जगह देशभक्ति के कार्यक्रमों में शिरकत करके राष्ट्रीय त्यौहार को मनाते हैं। 

  इस प्रकार मकर संक्राति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक हमें अलग अलग रुपों में दिखाई देती है। जिसमें प्रकृति के साथ मवेशियों का भी उपकार माना जाता है। 

नीलम भागी

 लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, ट्रैवलर    

यह आलेख प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।







Thursday, 28 December 2023

हरिद्वार की ओर! नीलम भागी Way to Haridwar Part 1Neelam Bhagi

 

अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा हरिद्वार में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'नदी साहित्य' पर 24 और 25 सितंबर को थी  जिसमें मैं भी आमंत्रित थी। एक्सीडेंट के बाद पहली बार यात्रा में जाने का आत्मविश्वास जुटा रही थी। आमंत्रण न होता तो शायद  यात्रा पर निकले को और समय लगता। अंकुर ने शताब्दी एक्सप्रेस में टिकट बुक  करवाई । गाजियाबाद से गाड़ी पकड़नी थी और मैंने पहली बार गाजियाबाद स्टेशन देखना था। वहां गाड़ी से गुजरी तो कई बार हूं पर पहली बार गाड़ी पकड़ रही हूं। अंकुर रात को मुझे अपने घर  ले गया। मैंने उससे कहा, " चिंता मत कर, हरिद्वार में स्टेशन से पिकअप है।" सुबह 7.23  की गाड़ी थी। छोटा अदम्य  साथ में गया। हमेशा की तरह समय से बहुत पहले स्टेशन पहुंचे। जैसे स्टेशन से बाहर कुछ शहरों में गंदगी होती है, वैसे यहां भी थी और स्टेशन भी गंदा था। अदम्य कभी गाड़ी में नहीं बैठा है। उसको  प्लेटफॉर्म टिकट लेना दिखाया। गाड़ी आई अदम्य  को बता रखा था की बोगी नंबर c1 है। वह बड़े ध्यान से एक एक डिब्बा पढ़ रहा था। यहां गाड़ी सिर्फ 2 मिनट रूकती है। मुझे चढ़ा कर अंकुर जल्दी से लगेज उठाकर मेरी सीट नंबर की ओर चलने लगा। मैंने कहा," तू उतर जा अब मैं बैठ जाऊंगी। वह नहीं माना, पीछे पीछे अदम्य भी। सीट पर लगेज  रख, जल्दी से अंकुर ने पैर छुए। कॉपी पेस्ट अदम्य यह देख कर एकदम  वापस मुड़ के पैर छूए। अंकुर जल्दी से उसे लेकर उतरा और गाड़ी चल पड़ी। विंडो  सीट थी। बैठते ही पानी आ गया। कुछ समय बाद जलपान लग गया। यहां शोध पत्र हमें देखकर नहीं पढ़ना था, वैसे ही बोलना था इसलिए थोड़ा पढ़ने लगी। पर गाड़ी में मुझे पढ़ना अच्छा नहीं लगता। अपनी आदत के अनुसार मैं बाहर देखती रही और एक डिब्बे का चक्कर लगा आई। आमने-सामने सीट नहीं थी इसलिए बतियाने का भी सवाल नहीं था। बाजू का लड़का कानों में इयरफोन ठूंस कर  बैठा था। टॉयलेट की पाश्चात्य और भारतीय दोनों सीट में पानी भरा हुआ था। एक बात बहुत अच्छी लगी पूरे रास्ते हरियाली थी। रेल की पटरी के पास तक खेती की गई थी। सहारनपुर में गाड़ी 25 मिनट तक रुकी रही, जिन्होंने गाड़ी में नाश्ता नहीं किया था, वे प्लेटफार्म पर कर रहे थे। यहां मैंने डॉ. जगदीश पंत जी प्रदेश महामंत्री  को फोन किया और बताया कि मैं 11:33 पर पहुंच रही हूं। उन्होंने जवाब दिया," स्वागत है, वहां गाड़ी से उतरते ही फोन कीजिएगा, हम आपको ले लेंगे।" अब मेरी बाजू में एक फौजी भाई आ गए। उन्हें देहरादून जाना था। मैंने उनसे पूछा, "आप मेरी हरिद्वार में उतरने में मदद कर देंगे।" उन्होंने जवाब दिया," जरूर।" हरिद्वार स्टेशन आने से पहले ही उन्होंने मेरा लगेज उठाया, गाड़ी रुकते ही पहले उतर कर, मुझे उतारने में मदद की और पूछा," गेट  तक छोड़ दूं ।"मैंने धन्यवाद करते हुए मना  किया। अब मैंने डॉ. जगदीश पंत जी को पहुंचने की सूचना दी। उन्होंने कहा," आप वहीं रहिए, हम आ रहे हैं।" और कुछ ही देर में वे आ गए। मैंने घर में पहुंचने की सूचना दे दी। गाड़ी में बैठते ही हमारे प्रवीण आर्य जी (राष्ट्रीय मंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद) का फोन आ गया। यह जानने के लिए कि मेरा पिकअप हो गया है। अब हम संगोष्ठी स्थल की ओर जा रहे हैं। मैं कई बार हरिद्वार आने पर भी  हरिद्वार से ऐसे परिचय कर रही हूं, जैसे पहली बार आई हूं। जो मेरे साथी बाहर से आए हैं ,उनसे परिचय भी कर रही हूं। क्रमशः 

#AkhilBhartiyaSahityaParishad










Wednesday, 27 December 2023

माउंट आबू की यात्रा भाग 13, मीडिया महासम्मेलन एवं मेडिटेशन रिट्रीट 2023 नीलम भागी Neelam Bhagi

 

मेरा 9 तारीख को राजधानी में 8 नंबर वेटिंग लिस्ट में था। 5 मई को वह पांच हो गया। उसके बाद पांच पर ही रहा। बी.के मेधा दीदी ने सौगात देने के लिए बुलाया। मैंने उन्हें बताया कि मेरा वेटिंग में है। उन्होंने समझाया कि टेंशन करने से कुछ नहीं होगा। लास्ट ऑप्शन सोच लो और यहां जो कर रहे हो, उसे पूरे मन से करो। टिकट कंफर्म नहीं हुई तो 10 तारीख को मोदी जी उद्घाटन के लिए आ रहे हैं वह अटेंड कर लेना और हंसने लगीं। मैं भी मस्त हो गई। मैंने भी घबराना बंद कर दिया। नोएडा में अंकुर तो कोशिश कर ही रहा था। उसने कहा कि टिकट कंफर्म नहीं हुआ तो अहमदाबाद या उदयपुर से फ्लाइट बुक कर दूंगा। अब 9 तारीख को लास्ट चार्ट का इंतजार था। मुझे बहुत अच्छा लगता, बीच-बीच में मेधा दीदी फोन करके पूछती कि मैं टैंस तो नहीं हूं और कहती शांति वन में दस तक हमारे पास रुकना। इसलिए मैं पूरे मन से माउंट आबू से परिचय कर रही थी। 8 मई को हमारा घूमने का दिन था इसलिए डाइनिंग हॉल में खाना हर वक्त था। जिन लोगों ने लौटना था, उनके लिए रास्ते में खाने के लिए पैकेट थे। आने के बाद डिनर करके रूम में गई। मेरी रूम पार्टनर जयश्री भी आ चुकी थी। उन्होंने हमसे ज्यादा पॉइंट देखें। जो छूट गए थे वह मैंने नोट कर लिए दुखी नहीं हुई। मैं कौन सा मरने वाली हूं फिर जाना होगा तो देख लूंगी। जय श्री तो सुबह ही निकल गई, उन्हें महाराष्ट्र जाना था। 3:00 बजे  हमें गाड़ियों से शांतिवन आबू रोड ले जाया गया। वहां मेधा दीदी ने फोन से पूछा कि मुझे स्टे मिल गया। मैंने बताया मिल गया। उसी समय मेरी टिकट कंफर्म होने का मैसेज आ गया। बी.के ज्योति पॉल ने अपनी मित्र स्वाति से मेरा परिचय कराया था। अब हम दोनों साथ थीं। हमने खूब बातें की और जो गाड़ी पहले आ रही थी उसी से बहुत पहले स्टेशन आ गए। बड़ी मुश्किल से टिकट कंफर्म हुई थी, डर था कि गाड़ी छूट न जाए। यहां भी बतियाते रहे। मैं अपनी सीट पर पहुंची कोई गुजराती ग्रुप था। उन्होंने गेट के पास साइड सीट अपनी मुझे देकर, आप मेरी सीट ले ली। उन्हें अपने ग्रुप के साथ सीट मिल गई। वह बहुत खुश थे। अटेंडेंट पानी की बोतल पकड़ा के  डिनर देने ही नहीं आया। जब मैंने कहा तब बोला आपका डिनर लिखा नहीं है मैंने टिकट आगे की फिर सॉरी सॉरी करता हुआ लेकर आया। क्योंकि वह खाना मेरी ओरिजिनल सीट पर जो सज्जन बैठे थे, उनको दिया था। वे खा कर डकार भी ले चुके थे। मेरी एक्सचेंज सीट पर खाना नहीं था पर मुझे मिल गया आइसक्रीम देने आया तो चम्मच नहीं। जब तक मांगने पर चम्मच आया, आइसक्रीम दूध में बदल गई थी, मैंने पी ली। कुछ देर बाद एक अटेंडेंट मेरे पास आया बड़ी रिक्वेस्ट से बोल कि एक फैमिली में,  सबकी टिकट कंफर्म हो गई, बस एक उनकी लड़की की नहीं हुई है क्या आपकी सीट के आगे यहां लेट जाएं, कपड़ा बिछा कर लड़की है ना इसलिए आपसे कह रहा हूं। जवाब  मेरे ऊपर वाले ने दिया कि फैमिली से बोलो लड़की को अपनी सीट दे दे, जैसे आपने टॉयलेट के रास्ते में लोगों को बिठा, लिटा रखा है। उनके मेल फैमिली मेंबर को भी, वहां बैठा दो। वह चुपचाप चला गया। अब एक आदमी झगड़ा करने लगा कि मेरा शाम का नाश्ता दो। उसने पता नहीं कितना पेमेंट कर रखा था। कह रहा था कि डिनर इतने का नहीं है। वह सारी बात ठेकेदार पर डाले जा रहा था कि हम तो मुलाजिम हैं।  बाकि अब राजधानी में पहले जैसी बात नहीं है। वही हॉकर आवाज लगाकर सामान बेच रहे थे। और मैं दिन भर ज्ञान सरोवर में, शांतिवन में घूमती रही अब थकी हुई इसलिए बार-बार मेरे सिर पर दरवाजा खुलने का भी असर नहीं था और मैं सो गई । मधुर स्मृतियां लेकर वहां से लौटी हूं। ॐ शांति 













सनसेट पॉइंट! माउंट आबू की यात्रा भाग 12 मीडिया महासम्मेलन एवं मेडिटेशन रिट्रीट 2023 नीलम भागी

पांडव भवन से दो किमी दूर और नक्की झील के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सूर्यास्त बिंदू से डूबते हुए सूर्य के सौंदर्य को देखने हम चल पड़े । नक्की झील के बाजू में अच्छी बनी साफ़ सुथरी सड़क से पैदल, खच्चर या धकेलने वाली गाड़ी से जाया जा सकता है। हम बहुत  लेट थे। धकेल में तो मैं बिल्कुल ही नहीं बैठ सकती थी। श्रद्धा थकी सी चल रही थी। अमित और प्रवीण भाई तेज़ी से सनसेट प्वाइंट की ओर चल दिए। मैं तो वैसे ही पता नहीं क्या देखती हुई, स्लो मोशन में हो जाती हूं। यहाँ से दूर तक फैले हरे भरे अरावली पर्वतमाला के दृश्य आँखों को शांति पहुँचाते हैं। सूर्यास्त के समय आसमान के बदलते रंगों की छटा देखने सैकड़ों पर्यटक यहाँ आते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य का नैसर्गिक आनंद देनेवाली यह झील चारों ओऱ पर्वत शृंखलाओं से घिरी है। यहाँ के पहाड़ी टापू बड़े आकर्षक हैं। जैसे-जैसे शाम होती जा रही है, वैसे ही खाली ठेले वालों से भी मोलभाव शुरू हो जाता है।  सनसेट पॉइंट को कुछ लोग हनीमून प्वाइंट भी कह रहे थे। जो नौजवान जोड़े थे, उनमें महिला धकेल का मोल भाव कर रही थी लेकिन पुरुष बैठने को राजी नहीं होता क्योंकि उससे कम उम्र का लड़का ही तो धकेल रहा था। महिला ने शॉर्ट पहना हुआ था और उसमें बैठकर अपना वीडियो बनाने लगी और साथ में उसको कहे जल्दी चलो, मेरा वीडियो लंबा हो जाएगा। और सूखा सा लड़का पूरी ताकत लगाकर मोहतरमा को सनसेट दिखाने ले जा रहा था। पति तो बहुत दूर रह गया था। रास्ते में खाने-पीने का भी सामान खूब बिक रहा था। अचानक चलते-चलते मेरे दिमाग में आया यह तो ढलान है। मैं अभी गई तो लौटते समय तो चढ़ाई होगी। मेरे लिए तो मुश्किल हो जाएगा और मैं वापस हो ली। 

https://youtu.be/u_HiJHaE3SQ?si=-saxcawELnsYCnI_

वही झील के किनारे उसकी सुंदरता और पर्यटकों को देखते हुए लौट पड़ी। श्रद्धा के मिलने पर हम दोनों बैठ गईं। अमित और प्रवीण भाई के इंतजार में। झील को विभिन्न रंगों में जल फव्वारा लगाकर आकर्षक बनाया गया है। जिसकी धाराएँ ८० फुट की ऊँचाई तक जाती हैं। झील में नौका विहार की भी व्यवस्था है। झील के किनारे  शाम के समय घूमने और नौकायन के लिए पर्यटकों का हुजूम उमड़ा हुआ है। दोनों के आते ही हम गाड़ी के लिए चल दिए। मई के महीने में भी मौसम बहुत अच्छा था । गाड़ी आ गई और अब हम ज्ञान सरोवर पहुंच गए। क्रमशः 







Tuesday, 26 December 2023

पांडव भवन मधुवन! माउंट आबू की यात्रा भाग 11, मीडिया महासम्मेलन एवं मेडिटेशन रिट्रीट 2023 नीलम भागी, Neelam Bhagi

 


  


पांडव भवन मुख्य बाजार  से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हम ॐ शांति भवन गए। बरामदे में खड़े होते ही  ग़ज़ब की हवा थी। मैं और श्रद्धा वहीं कुर्सी पर बैठ गए। अमित और प्रवीण भाई आए और बोले, "चलो यूनिवर्सल पीस हॉल। इस विशाल हॉल में 5000 लोगों की बैठने की क्षमता है और 16 भाषाओ में अनुवाद होता है। इमारत तो आकर्षक है ही और जिसकी खूबसूरती उनकी मेहनत से की गई हरियाली है जो और भव्यता बढ़ा रही है। सड़क पार सामने पांडव भवन है। यह मधुबन के नाम से भी प्रसिद्ध है। जहां शिव बाबा ने आध्यात्मिक जीवन बिताया। यह अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय है। यहां ध्यान कुटिया, शांति मीनार हैं। मेजबानी के लिए रसोई, कपड़े धोने और  परिवहन जैसे अलग-अलग विभाग हैं। सबसे बड़ी विशेषता है  इस परिसर का शांतिपूर्ण वातावरण। यहां के हरे भरे बगीचे में बैठना  तो अपने आप में अद्भुत अनुभूति है। मैं तो मुख्य द्वार से कुछ दूरी पर अकेली बैठ गई और देखती रही। जो भी वहां से गुजरता, उसके  चेहरे पर असीम शांति और सौम्यता नजर आती है और सफेद रंग तो वैसे ही शांति का प्रतीक है। बीके ज्योति पाल ने मुझे देख लिया फिर तुरंत मेरे पास आई और मुझे चाय के लिए ले गई। मैंने कहा," आपकी बस मिस हो जाएगी।" वो बोली," यहां परिवहन व्यवस्था बहुत अच्छी है। थोड़ी देर हम बातें करेंगे फिर मैं निकलूंगी।" हम लोग चाय के लिए गए। उन्होंने मुझे  एक चाय की ओर इशारा किया और कहा कि यह वाली लीजिए। मैंने  ले ली और साथ में नमकीन। वो चाय मैंने पहले कभी नहीं पी थी, बहुत लज़ीज़ थी। काफी समय हो गया है उसे चाय का नाम नहीं याद आ रहा है। नमकीन भी यहां के खाने की तरह, तीखा नहीं पर बेहद स्वाद।  ज्योति के जाते ही मैं परिसर में घूमने लगी। प्रवीण भाई का फोन आया," गाड़ी पर पहुंचे आपने यहां बहुत समय लगा दिया है। अब सिर्फ सनसेट प्वाइंट  देख पाएंगे।" मैं बाहर आ गई। क्रमशः







Monday, 25 December 2023

नक्की झील! माउंट आबू की यात्रा भाग 10, Neelam Bhagi

 


प्रवीण भाई बोल लंच के लिए चलते हैं और गाड़ी आकर ज्ञान सरोवर पर रुकी। मैं बोली," लंच टाइम तो निकल गया है।" वे  बोल, "आज भ्रमण का दिन है न यहां खाना जब आएंगे तब मिलेगा।" जब हम हॉल में गए खाना वैसे ही परोसा जा रहा था। सभी लंच करने यहां आ रहे थे और फिर घूमने चल दे रहे थे। लंच के बाद हम लोग ब्रह्माकुमारी द्वारा बनाया हॉस्पिटल देखने गए। अस्पताल के सामने ही  के नाम से "मेजर शैतान सिंह परमवीर चक्र" पार्क है। यहां से नक्की झील के पास पहुंच कर ब्रह्माकुमारी  म्यूजियम देखा। यहां काफी समय हमें लगा। क्योंकि जो दिखा रहे थे, वह बहुत अच्छा डिमॉन्सट्रेशन दे रहे थे। यहां से हम पैदल  नक्की झील की ओर  चल पड़े दोनों ओर  बनी दुकानों से राजस्थानी शिल्प का सामान खरीदा जा सकता है। यहाँ संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियां और सूती कोटा साड़ियाँ काफी लोकप्रिय है। यहाँ की दुकानों से चाँदी के आभूषणों की खरीददारी भी की जा सकती है। मुझे याद आया 3 साल तक मेरे मुंबई नोएडा बहुत चक्कर लगे। जब भी आबू रोड स्टेशन आता तो आवाज आती "आबू की राबड़ी, आबू की राबड़ी" और मैं रबड़ी जरूर खाती। इतनी शुद्ध रबड़ी होती है कि कभी मेरी तबीयत खराब नहीं हुई। यह याद आते हैं मैंने  रबड़ी खाई। नक्की झील माउंट आबू का एक सुंदर पर्यटन स्थल है।  यह झील, राजस्थान की सबसे ऊंची झील हैं। टॉड रॉक व नन रॉक नक्की झील की मुख्य चट्टाने हैं। यह सर्दियों में अक्सर जम जाती है। कहा जाता है कि एक हिन्दू देवता ने अपने नाखूनों से खोदकर यह झील बनाई थी। इसीलिए इसे नक्की (नख या नाखून) नाम से जाना जाता है। झील से चारों ओर के पहाड़ियों का दृश्य अत्यंत सुंदर दिखता है। इस झील में नौकायन का भी आनंद लिया जा सकता है। यहां बने पार्क में लोग  पिकनिक मना रहे थे। पर्यटक यहां खूब थे। कहीं गिटार पर गया जा रहा था।https://youtu.be/MG0Gc306Ueg?si=wpO_JGdM2biVgN9q

 यहां भी मुझे श्री गुरु शिखर पर जो फौजी परिवार मिला था, वह पति-पत्नी मिले। अब बाकि परिवार के लोग














अलग घूम रहे थे। श्रद्धा अमित  अलग घूम रहे थे। मैं तो वैसे ही अकेली हो जाती हूं। प्रवीण भाई का फोन आया कि गाड़ी पर आ जाइए।  चारों एक ही समय पर पहुंचे और गाड़ी पर बैठे। प्रवीण जी ने ड्राइवर को पांडव भवन जाने को कहा। क्रमश: