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Wednesday 31 January 2024

खेती न न न...!दिल्ली से भुवनेश्वर रेल यात्रा भाग 3 नीलम भागी ! Way to Bhuvneshwar Neelam Bhagi Part 3

 


सुधा की एक विशेषता थी कि वह परिचय सबका ले लेती थी। इस नई महिला का भी लिया। महिला का नाम उसने नहीं पूछा उसे दीदी  कहा, अपर्णा जी  को मौसी जी, हमें अब इन सब की आदत नहीं रही। मैं सचमुच इन्हें मौसी भानजी समझती रही। दीदी भुवनेश्वर में कोचिंग सेंटर चलाती हैं। मुझे रास्ते की हरियाली बहुत अच्छी लग रही थी  पानी पोखर ही देखना बहुत भा रहा था। अब सभी लोग उड़ीसा के ही थे। मैंने एक सवाल किया कि यहां की मिट्टी के हर कण में कुछ उगा है पर यहां खेती  कम है। तुरंत जवाब मिल गया कि यहां जो खेती करता है, उसको कुछ नहीं समझते जो पढ़ लिख के या वैसे ही बाहर कमाने गया है उसकी  रिस्पेक्ट है। मुझे बड़ा अजीब लगा कि खेती करना नहीं चाहते। सहयात्रियों ने बताया कि यहां पर ₹2 किलो चावल मिलता है जो गरीब है उनको। अगर कोई खेती करता है तो चावल उगा लेता है, वह भी सरकार को बेचने के लिए मसलन सरकार को 18 रुपए किलो बेचा और ₹2 किलो खरीद लिया यानी ₹16 पर किलो फायदा। इस तरह से कोई खेती को नहीं लेता कि हमें कितनी फसले लेनी हैं। खूब इसी से आमदनी बढ़ानी है ऐसा कुछ नहीं है। अब  मैंने दीदी से पूछा ,"कोचिंग के काम में तो बहुत मेहनत करनी पड़ती है। नौकरी तो है नहीं की कुछ घंटे मेहनत  की और तनख्वाह ले ली। यहां तो रिजल्ट अच्छा देंगे तो अगला  बैच आएगा। दिनभर तैयारी करना क्योंकि यहां बच्चे प्रॉब्लम्स लेकर आते हैं, उसे सॉल्व करना तो घर के काम के लिए मेड वगैरा मिल जाती हैं?" यह पूछ कर तो  मैंने उनकी   दुखती नस पर हाथ रख दिया। इसमें तो अपर्णा जी भी शामिल हो गई। दीदी बोली," मेरी मेड आती है तो मैं पहले उसकी आरती उतारती हूं।" मैं हैरान! तो बोली," मतलब पहले उसको  चाय नाश्ता कराती हूं, अपने हाथ से बना कर फिर वो काम करती है। यहां आप पार्ट टाइम डोमेस्टिक हेल्पर ढूंढोगे तो पहले वह हमसे पूछेगी, कितने लोग हैं, घर में बच्चे कितने हैं? बाहर रहते हैं कि यहां रहते हैं।  उनको ऐसा घर चाहिए जिनके बच्चे बाहर गए हैं। बस सीनियर सिटीजन घर में रह रहे हों। वहां मुंह का स्वाद बदलने को काम करती है और बस कैश के लिए। चावल तो घर में आ ही जाता है इसलिए खाना जो दे दो। अगर हम बनवाते हैं तो इन्हें वही खिलाना है। 

 जैसे हमारे बंगाल में कामकाजी महिला के घर में खूब काम करती हैं। वह बाहर काम करती है। यह घर संभालती हैं। दोनो का काम चलता रहता है। यहां ₹2 किलो चावल ने इनकी काम करने की की जरूरत को खत्म कर दिया है। हां, जिनको बच्चे को बनाने की लगन है, वैसे घर ढूंढते हैं जहां बुड्ढे बुढ़िया हो बस और काम कर लेते हैं। सुधा को भद्रक स्टेशन पर उतरना था। उसमें और बऊ में कुछ उड़िया में वार्तालाप  चल रहा था।  केबिन से स्टेशन आने से काफी पहले वे चली गई। भद्रक प्लेटफॉर्म  पर मैं देख रही थी, सुधा ने साड़ी पहनी हुई, सर पर पल्लू कर रखा था। मैंने चौंक कर देखा। वह मेरी तरफ देखकर हंस पड़ी और मैं भी हंसने लग गई।  दो लोग उनको गांव से लेने आए थे। मैंने सबसे बोला," देखो सुधा  बिल्कुल बदली हुई लग रही है। क्योंकि अंदर वह चूड़ीदार पजामा कुर्ता कार्डिगन पहने बिना दुपट्टे के लड़की सी घूम रही थी। उसने साड़ी किस वक्त पर बांध ली! पता ही नहीं चला।" तो अपर्णा जी बोली कि सास बहू में वार्तालाप चल रहा था कि वहां जैसे मर्जी रहो लेकिन गांव में  तरीके से जाना है। मुझे अच्छा लगा 15 दिन के लिए ही गई है ससुराल, उनके अनुसार रह कर आएगी।  मुझसे पूछा,"आपने कहां जाना है? कैसे जाएंगी? मैंने कहा मुझे लेने आ रहे हैं।  मैंने  पूछा," मुझे 2 दिन में ज्यादा से ज्यादा देखना है क्योंकि मैं जब बीएससी में पढ़ती थी तब परिवार के साथ आई थी। पहली बार मैंने समुद्र पुरी में देखा था। हम लोग 10 दिन तक रहे थे। वहीं से टूरिस्ट बस में भुवनेश्वर कोणार्क वगैरा गए थे। मुझे बहुत अच्छा लगा था। अब मुझे कैसे घूमना चाहिए? वे बताने लगे कि मो  MO बसे चलती हैं, डीलक्स और साधारण। बहुत अच्छी बस सर्विस है। अपनी मर्जी से घूमो और नक्शा समझा दिया। मैंने पूछा आज तो मैं कहीं नहीं जाऊंगी। शाम 6:30 बजे तो घर पहुंचूंगी। कल 17 को भुवनेश्वर देखूंगी। क्या 18 को मैं भुवनेश्वर से पूरी और कोणार्क देखकर भुवनेश्वर आ सकती हूं? क्योंकि 18 की रात को  कार्यक्रम स्थल पर जाना है । 19 को सुबह 9:00 बजे से कार्यक्रम है। भुवन ने एड्रेस देखा, वह खंडगिरि का था। जो रेलवे स्टेशन से दूर था और रेलवे स्टेशन के पास ही हमारा कार्यक्रम स्थल था। उसने कहा आपके घर के पास बरमूडा बस स्टैंड है। भुवनेश्वर, कोणार्क, पुरी यह ट्रायंगल है। आप सबसे पहले सुबह कोणार्क जाना, वहां से पुरी जाना फिर पुरी से भुवनेश्वर आना। आप सब घूम लेंगी। अब कटक आ गया। अपर्णा जी उतर गई। और मेरी आंखें महानदी देखने के लिए बाहर टिक गई क्योंकि जब मैं पहली बार पुरी गई थी मेरे दिमाग में अब तक छाप है गाड़ी उत्कल एक्सप्रेस थी इतनी देर तक पुल पर हम रहे थे किनारा ही नहीं आ रहा था। आज फिर मैं वही देखना चाह रही थी। तब डर लग रहा था नीचे पानी देखकर। भुवनेश्वर प्लेटफार्म पर गाड़ी रुकी। मेरा सामान भी भुवन के साथी ने उतारा। बोगी के आगे ही मीताजी और  मोहंती जी खड़े थे। मैं यह सोच रही थी कि कैसे नीचे उतरूं बिल्कुल सीधी सीधी एक के नीचे दूसरी  सीढ़ी अगला पर पैर कैसे टिकाऊं! ऊपर से कूद नहीं सकती। प्लेटफार्म की तरफ पीठ करके तेजस  से उतरने कोशिश करके उतरी। सामान लेकर तो कोई सीनियर सिटीजन अकेला नहीं उतर सकता। मेरी साथी सवारी मैडम नमस्ते मैडम नमस्ते कर रही थी । मैं पूरी कंसंट्रेशन से प्लेटफार्म पर उतरने की कोशिश कर रही। उतरी मीताजी ने कहा ही आपको नमस्ते कर रहे हैं तो मैंने बाय किया। वे पूछने लग गईं है, ये कौन थे? मैंने कहा कि कोई नहीं सहयात्री। 25 घंटे का सफर, इन सब के साथ बतियाते हुए किया है। अपर्णा जी तो कटक में कहने लगी, आप हमारे पास रहकर जाओ। प्लेटफार्म देखकर मन खुश हो गया। एकदम साफ सुथरा, कोई दुर्गन्ध नहीं। सीनियर सिटीजन के लिए गाड़ी! उस पर हम बैठे, उसने हमें बाहर एग्जिट पर उतार दिया। क्रमशः 












 



Tuesday 30 January 2024

चॉकलेट ऑफर!दिल्ली से भुवनेश्वर रेल यात्रा भाग 2 नीलम भागी Chocolate offer! Way to Bhuvneshwar Neelam Bhagi Part 2

 


सुबह आंख खुलते ही देखा साइड लोअर सीट खाली थी। मैंने तुरंत सुधा को कहा कि उस सीट पर शिफ्ट हो जाए, जब तक अगली सवारी नहीं आती। मन में सोचा शायद परकाला यहां पर लंबी सीट पर टिकी रहेगी और मैं मैसेज देखने लगी। हमारे प्रवीण आर्य जी (राष्ट्रीय मंत्री) ने डॉ. संतोष कुमार महापात्रा (महामंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद उड़ीसा) का कांटेक्ट नंबर भेजा था। मैंने प्रवीण जी को कॉल किया तो उन्होंने कहा कि कोई परेशानी हो तो इन्हें फोन कर लेना। वे सब लोग 17 को चलकर 18 की शाम को पहुंचेंगे। अब यहां गाड़ी ज्यादा स्टेशनो पर रुक रही थी। दोनों लड़के  अपर सीट पर सो रहे थे। लोअर पर  दो-दो सवारी थीं । अब हमारा बतियाना शुरू हो गया। परकाला लंबी खिड़की पर मस्त हो गई या ऊपर लेटे लड़कों ने उसे डरा दिया। वह ऊपर की तरफ देख ही नहीं रही थी। सुधा कहने लगी, "यह हमेशा फ्लाइट से आती है ना, दिसंबर सीजन होता है, कोस्टल एरिया है, टिकट बहुत महंगी हो गई थी।" हमारे साथी मनोज शर्मा 'मन' ने  नवंबर  में फ्लाइट बुक कराई थी। आयोजन की डेट शिफ्ट होने पर पुरी का चक्कर लगाकर गए। क्योंकि डोमेस्टिक में रिफंड बहुत कम मिलता है तो उन्होंने जगन्नाथ जी का दर्शन कर लिया।  वे कल सबके साथ आ रहे हैं । अब सब मुझसे पूछने लगे मैं भुवनेश्वर क्यों जा रही हूं? मैंने उन्हें बताया कि #अखिल भारतीय साहित्य परिषद के द्वारा आयोजित , 'सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह' में जा रही हूं। अपर्णा मोहंती भी रिटायर्ड टीचर हैं और उनके परिवार में प्रभादेवी मशहूर लेखिका  हैं जो शायद पांचवी तक ही पढ़ी हैं। वे भी  हिंदी का उड़िया में अनुवाद करती हैं। हम बातों में मशगूल थे। एक वेंडर ट्रे में सजा के चॉकलेट लाया और सब के आगे बिना बोले, ट्रे ऐसे कर रहा था मानो ऑफर कर रहा हो।  परकाला ने दोनों हाथों से चॉकलेटें उठाली बाकियों ने उसकी तरफ  देखा ही नहीं। सुधा एकदम बोली," कल भी तुमने ऐसे ही ले ली थी और उसी समय सभी खा ली थीं।"  अब वह चॉकलेट वाला बोला," हम तो बाबू के लिए लाए हैं।" सुधा ने उसके हाथ से लेकर चॉकलेट उसकी ट्रेन में रख दीं। अब बच्चों के पास तो एक ही अस्त्र होता है जो शस्त्र की तरह काम करता है, वह है  'रोना' परकाला ने भी इसका इस्तेमाल किया और चीख चीख  कर रोने लगी। सुधा ने एक ले दी।  यह कल भी हो ऐसे ही लेकर आया था। मैंने नहीं ली थी बाकि सबने तमीज से एक-एक उठा ली थी फिर वह पूरी गाड़ी का राउंड लगा कर आया और सबसे उसके पैसे ले ने आया। खाने वालों ने चुपचाप दे दिए। टिकट के साथ कैटरिंग के पैसे जमा करने के बाद मैं पढ़ लेती हूं कि मुझे क्या-क्या मिलेगा। उसमें चॉकलेट कहीं शामिल नहीं थी। मैंने नहीं ली। बाकियों ने सोचा की महंगी टिकट की गाड़ी है, शायद ऑफर होती हो। बेचने का तरीका मुझे लाजवाब लगा। हर वेंडर कई बार आवाज लगाते, निकल जाते हैं। सावरियां रेट पूछती और लेती थीं। प्लेटफार्म का वेंडर तो इसमें चढ़ ही नहीं सकता है। 24 घंटे के रास्ते में यह सिर्फ दोबारा आया। कल गाड़ी चलने के बाद वह भी बिना बताए, बोले ऑफर मैथड से चॉकलेट बेच गया। इस पर चर्चा चली तो मेरे बाजू  में बैठे भुवन ने उसकी सेल्समैनशिप की प्रशंसा की। वह भुवनेश्वर में बच्चों के साइंस के मॉडल बनाने  का काम करता है इसलिए दिल्ली आता जाता है। वहां  #लाजपत राय मार्केट से इलेक्ट्रॉनिक का सामान लाता है। उसके साथ दो-चार लोग और भी थे अलग-अलग, यह मुझे भुवनेश्वर आने पर पता चला जब उन्होंने अपने बड़े-बड़े बैग उतारे। मुझे रेलवे की एक बात समझ नहीं आई। दिसंबर का महीना है डिनर में भी आइसक्रीम और लंच में भी आइसक्रीम। आधे से ज्यादा लोग तो ठंड में वापस कर देते हैं। क्या भारत में आईआरसीटीसी IRCTC को सिवाय आइसक्रीम के मीठे में और कुछ नहीं दिखाई देता? पश्चिम बंगाल के किसी स्टेशन से एक महिला चढ़ी जो सुधा के साथ लोअर सीट की एक सीट पर बैठकर गई। इतना लंबा सफर था और एक बार भी घड़ी देखने की जरूरत नहीं पड़ी। बहुत अच्छा रास्ता बीत रहा था। क्रमशः












बेबी फ़ूड! दिल्ली से भुवनेश्वर यात्रा भाग 1 नीलम भागी Baby Food way to Bhuvneshwar Neelam Bhagi पार्ट 1


अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन 19, 20, 21 दिसंबर को भुवनेश्वर उड़ीसा में किया गया। पहले कार्यक्रम नवंबर में होना था लेकिन माननीय मोहन भागवत जी की व्यस्तता के कारण बदलना पड़ा। हमने  रिजर्वेशन भी कैंसिल करा कर, बदला।  खैर मुझे तेजस राजधानी में 15 दिसंबर का रिजर्वेशन मिल गया। मैं 16 तारीख की शाम को पहुंच रही थी। वहां मेरी बेटी उत्कर्षनी की सहेली संचिता मोहंती के घर रुक रही थी। और 2 दिन जितना घूमा जा सकता था, घूमना था। 19 से लेकर 21 तक सभी सत्रों को अटेंड जो करना था।  समारोह स्थल के पास ही, हम सबके रहने की व्यवस्था थी। 15 को 5:00 बजे से मेरी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से गाड़ी थी। मैसेज आया की प्लेटफार्म नंबर वन पर गाड़ी मिलेगी। कोई सवारी छोड़ने आया ऑटो गेट पर ही दिख गया, मैंने उसे रोक लिया। प्लेटफार्म नंबर 1 पहाड़गंज की तरफ से पड़ता है। मैंने ऑटो लिया उसे कहा कि मुझे पहाड़गंज की तरफ से स्टेशन में पहुंचना है। बहुत समय पहले ही हम निकल गए। जिसका मुझे फायदा मिला। स्टेशन से काफी दूर पहले चींटी की चाल से रुक रुक कर गाड़ियां चल रही थी। ड्राइवर बोला, "बहुत टाइम लग जाएगा, इतनी देर में तो आप पैदल ही  पहुंच जाती।" पर मुझे तो पता था। मेरे पास बहुत टाइम है। दूसरा सर्दी के कारण और रिजर्वेशन  के कारण दो दिन ज्यादा रुकने से सामान अधिक था। इतना उठाकर मैं वहां तक नहीं जा सकती थी। इतनी दूर से  कुली भी नहीं मिलता है। स्टेशन पहुंच गई। प्लेटफार्म नंबर 16 था। बाद में पता चला कि मैसेज में  प्लेटफार्म नंबर एक लिख देते हैं, जो पहाड़गंज के पास होने से वहां खूब जाम लगा रहता है। समय पर गाड़ी आई। उसमें चढ़ने का  प्रावधान बहुत ही बकवास सीनियर सिटीजन तो बड़ी मुश्किल से चढ़ते हैं। खैर ऐसी बोगी, जिसने अप्रूव की होगी उसको कोसते हुए चढ़ी। जब  सेलेक्ट करते हैं तो दिखते नहीं है कि चढ़ने में क्या परेशानी होगी? लेकिन साफ सुथरी  गाड़ी थी। सफाई का ध्यान रखा जा रहा था। सवारियां  दूर तक की थी, भुवनेश्वर के आसपास की। एक 5 साल की बच्ची थी। थोड़ी देर में उस बच्ची ने सबको व्यस्त कर दिया। वह टिक कर बैठी ही नहीं रही थी। बार-बार सीढ़ियां चढ़ती। अपर सीट पर बैठकर कूदने लगती है फिर नीचे उतरती। उसे जबरदस्त खांसी थी। सब चिंतित रहते की गिर ना जाए। लड़की थी या तूफान! हमारे यहां ऐसी शैतान लड़की को प्यार में, परकाला कहते हैं। जिसका मुझे मतलब नहीं पता। दो लड़के थे उन्होंने बिना कहे ड्यूटी ले ली थी। जब  परकाला चढ़ने लगती,  उसे उठाकर ऊपर रख देते हैं, जब नीचे उतरने लगती  तो उसे उठाकर नीचे रख देते।  और वह इधर-उधर वह खुद आती रहती। सबकी नजर परकाला पर रहती कि नजरों से ओझल न हो जाए। बहुत कम स्टेशन पर गाड़ी रुकती थी। उस समय  उसकी मां सुधा परकाला को  हाथ पकड़ कर बिठा लेती थी। मेरे सामने  बैठी महिला को सुधा  बहू बोलती थी, परकाला भी बहू बोलती। मैंने सुधा से पूछा कि ये आपकी कौन है? उसने जवाब दिया," सास।" मैं  हैरान! मैंने सुधा से फिर पूछा कि तुम्हारे यहां सास को बहू बोलते हैं। वो  बोली," हां।"अपर्णा मोहंती से पूछा यहां सास को बहू क्यों बोलते हैं? उन्होंने जवाब दिया," बेटा  मां को बहू बोलता है तो बहू  भी सास को बहू बोलती है।" इतने में कानपुर स्टेशन आ गया गाड़ी रुकी। मैंने अपर्णा जी को कहा, "मुझे बड़ा अजीब लग रहा है बहू जब परिवार में आएगी तो सास अलग से नजर आएगी, उसे बहू कहा जाएगा।" 

वे बोली बहू नहीं बऊ, उड़िया में मां को बऊ कहते हैं। शायद गाड़ी के शोर में बऊ को बहू सुना जा रहा था। मैंने उनकी सांबलपुरी साड़ी की तारीफ की। 

परकाला की खांसी की परवाह न करके जो भी वेंडर आता, सुधा उसे  लेकर देती।  परकाला उसे थोड़ा खाकर दादी को पकड़ा देती। चाय इवनिंग स्नैक्स,  डिनर सर्व हो गया, खा लिया। अब बतियाने लगे। मैंने सुधा की तारीफ में कहा कि आप को तो इनाम मिलना चाहिए। इतनी शैतान बच्ची को संभालती हैं। सबने मेरी हां में हां मिलाई। शायद सुधा को बुरा लग गया। उसने परकाला  की इतनी तारीफ की कि लिख नहीं सकती।  स्कूल में पैरंट टीचर मीटिंग में जाती हूं तो  सब टीचर  उसकी तारीफ करते हैं। घर में बिल्कुल शांत रहती है। लोग दूर-दूर तक तारीफ करते हैं कि इसके जैसा कोई बच्चा नहीं है। अब सुधा  एक डिब्बा निकाल कर बोली,  "गर्म पानी मिल जाय तो।"  एक लड़का बऊ से बोतल लेकर पैंट्री से गर्म पानी ले आया। सुधा ने चमचमाते डिब्बे में से एक पाउडर सा, गिलास में डाला और उसमें गर्म पानी मिलाया। इस घोल को जल्दी-जल्दी परकाला के  मुंह में भरती जा रही थी और वह निगलती जा रही थी। बेबी फूड के बारे में पूछा तो उसने मुझे बताया कि सारे मेवे और चने का सत्तू, कुछ बिस्किट पीसकर यह बनाया था।  इसमें घर में दूध मिला दो, बाहर गर्म पानी, बच्चों का खाना तैयार हो जाता है जबकि बच्ची के अच्छे भले दांत थे। उसने मां दादी के साथ खाना भी खाया था। मैंने कहा आप आराम से खिलाओ, जल्दी-जल्दी क्यों खिला रही हो। वह बोली," यह पानी डालते ही फूलने लग जाता है। मैं जल्दी-जल्दी इसलिए खिला रही हूं ताकि इसके पेट में जाकर फूले और यह ज्यादा  खा ले। परकाला रोने लगी और चम्मच नहीं ले रही थी पर उसकी मां उसका मुंह भरे जा रही थी।  इधर हमें आइसक्रीम सर्व हुई। उधर परकाला ने इतनी भयानक उल्टी की कि सुधा मेरे बराबर बैठी थी इसलिए उसने  हाथ से मेरी तरफ उल्टी आने को रोक रखा था। बऊ की साड़ी, अपर्णा की साड़ी, आधा मेरा लगेज और बीच के रास्ते में सब की चप्पल उल्टी की बाढ़ में डूब गई थी। मैं जल्दी-जल्दी जो भी अखबार मिल रही थी ऊपर डाली। सुधा ने दोनों की साड़ियां साफ करनी शुरू की, पर गीली तो रही। अब उसने मेरा लगेज पोछा उसके बाद जो गंदा था, मैंने सैनिटाइजर की बोतल निकाल चप्पल में धोकर लगेज के ऊपर सब पर डाला।  सफाई हो गई। आइसक्रीम के  ऊपर कोई छीटा नहीं था और वहां कोई खा नहीं सकता था। मैं दूसरे केबिन में गई उनसे कहा, "आप  खा लीजिए।" बेड लगे शुरू हो गए। सुधा की  मेरे सामने अपर बर्थ थी। उसे चिंता सताने लगी कि परकाला ने जो खाया था, वह तो सब निकल गया, अभी भूखी होगी। मैंने कहा, "सुधा कोई भूखा नहीं रहता, वह बेबी फ़ूड खा नहीं रही थी। तुम जबरदस्ती खिला रही थी। अब इससे पूछो कि भूख लगी है तब इसको देना क्योंकि ऊपर से अगर यह उल्टी करेगी तो सबका नाश हो जाएगा। और खांसी उसे वैसे ही है।" एक बात मैंने देखी कि बऊ कुछ बोलती नहीं थी। उल्टी कांड के बाद मिडिल सीट खुल गई। सबने बिस्तर लगा लिया, लाइट बंद हो गई। परकाला और सुधा सो गई। मैंने अपर्णा जी से कहा कि आप किसी तरह साड़ी बदल लो। वे बोली साड़ी पैकिंग हो रखी है। बदलूंगी भी कहां?  मैं सारा गीला हिस्सा बाहर को करके सो जाऊंगी। सुबह तक यह सूख जाएगी। हम दोनों ने कुछ देर तक खूब बातें की। मैंने उनसे कहा आप सोने से पहले, मुझे ठीक से कंबल उड़ा देना भारी है। मेरे एक हाथ से ढंग से ओढ़ा नहीं जाएगा। सोने से पहले वॉशरूम गई देखा 7 नंबर सीट पर तीन पुलिस वाले बिल्कुल तैनात बैठे हैं। आकर सीट पर लेटी अपर्णा जी ने बहुत अच्छे से कंबल में  मुझे पैक कर दिया। मैं इतनी गहरी नींद सोई कि सुबह बैड टी वाले ने चाय को पूछा और मेरी नींद खुली। क्रमशः 








Monday 29 January 2024

लाजवाब मीठी शकरकंद बिना पानी छुए उबालना नीलम भागी

 


आलू और शकरकंदी अच्छी तरह से धोकर लें ।प्रेशर कुकर के नीचे आलू रखें। उसके ऊपर शकरकंदियां रख दें। इतना पानी डालें की आलू आधे डूबे। अब प्रेशर कुकर का ढक्कन लगा दें और गैस की फ्लेम हाई पर रखें। जब प्रेशर अच्छी तरह बन जाए, सीटी बजाने वाली हो तो गैस स्लो कर दें और 4 मिनट  के बाद गैस बंद कर दें । प्रेशर नहीं निकाले प्रेशर खत्म होने पर शकरकंदियां निकालना और  इन शकरकंदियों को आपने भाप में पकाया है। जरा भी की मिठास पानी में नहीं निकली। खाने में एकदम लज़ीज़ होती हैं । वीडियो देखें। 


https://youtu.be/nKxfZkipEhA?si=iIcnTz75KoASojyj


Sunday 28 January 2024

लाज़वाब कार्यक्रम

 


 *#पंजाबी विकास मंच* के द्वारा सामुदायिक केंद्र सेक्टर 56 नोएडा में  *विशाल पंजाबी समाज* को संगठित करके #लोहड़ी का विशुद्ध *पंजाबी सांस्कृतिक* कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिसे

हमारे *प्रथम* *पंजाबी* *रत्न* आदरणीय चेयरमैन *दीपक विग* जी की सूझ बूझ से कार्यक्रम ने नोएडा में पंजाबियों का *परचम* लहरा दिया।


 प्रथम बार नोएडा में सभी *राजनैतिक व सामाजिक* *गणमान्य* *अतिथियों* के द्वारा *आपसी सद्भाव* से लोहड़ी के कार्यक्रम में एक *मंच से* *सहभागिता* की गई,ये नोएडा में एक *मिसाल* कायम हो गई है। 


हमारे आदरणीय मुख्य अथितियों में *हमारा* *संसद हमारा अभिमान* *डॉक्टर* *महेश शर्मा* जी ने *मंच* से *पंजाबी विकास मंच* की *भूरी भूरी प्रशंशा* की जिसका श्रेय  सर्वप्रथम *2017* से पंजाबियों को जोड़ने के लिए *_पंजाबी रत्न_* *आदरणीय* *दीपक विग* जो को ही जाता है। हम सभी पंजाबी *सौभाग्यशाली* है की हमे *पंजाबी विकास मंच* का सदस्य बनने का *सौभाग्य* प्राप्त हुआ है।


हम अपने सभी *आदरणीय सामाजिक* , *__राजनैतिक विशिष्ठ__* *अथितियो ,* *पदाधिकारियों* व हमारे *पंजाबियों के दिल* *की धड़कन* हमारे *आदरणीय* *सदस्यगणो* का बहुत बहुत *धन्यवाद* व *_आभार_* प्रकट करते है जिन्होंने *लोहड़ी* के कार्यक्रम में *चार चांद* लगा दिए और *पूर्ण विश्वास* रखते है कि भविष्य में भी हमे आप सभी का *प्यार व* *आशीर्वाद*  मिलता रहेगा। 

एस.पी.कालरा & जी. एम. सेठ #punjabivikasmanchnoida , #पंजाबीविकासमंचनोएडा 

🙏🙏🙏🙏❤️❤️
























Wednesday 10 January 2024

हम कहीं भी रहे अपनी भारतीय जीवन शैली नहीं छोड़ते नीलम भागी Part 6

 


मनीषा रामरक्खा(अवकाश प्राप्त प्रवक्ता यूनीर्वसटी ऑफ फीज़ी) से मैंने उनसे पूछा,’’ आपके तीनों बच्चे अलग अलग देशों में सैटल हैं अब आप वहाँ अकेली फी़जी में हो भारत आ जाओ परिवार में।’’उन्होंने उत्तर दिया कि वे शादी करके वहाँ गई थीं। हिंदी के लिए काम किया उनकी वह कर्म भूमि है। जो संस्कृति हमारे भारतीय पूर्वज अपने साथ लेकर गए थे वे आज भी संस्कारों में उसका पालन करते हैं। भारत मे विवाह आदि पर आती हूँ बहुत कुछ बदल गया है पर फीज़ी में भारतीय लोक जीवन की वही छवि है। जिसे पर्यटकों से भी सराहना मिलती है। 

उत्कर्षिनी वशिष्ठ (इस वर्ष दो राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार, जी सिनेमा अर्वाड, फिल्म फेयर अर्वाड, दो आइफा अर्वाड से सम्मानित अंर्तराष्ट्रीय लेखिका) का कहना है कि हमारा परिवार जमीन से जुड़ा है। हम जहाँ भी जायेंगे अपनी भारतीय जीवन शैली नहीं छोडते। अमेरिका में रहती हूँ पर उत्सवों में घर में फैली पकवानों की महक दिमाग पर छाने लगती है। वही महक मैं यहाँ पकवान बना कर फैलाती हूँं। मेरी बेटियाँ मदद करती हैं। त्यौहारों पर सुनी कहानियाँ गीता अपने मित्रों को सुनाती है और उन्हें बुलाती है। हमारे पर्वों का मित्र इंतजार करते हैं। हमारी भारतीय लोक जीवन शैली की विश्व में छवि का ही तो प्रभाव है कि कात्या मूले बुढ़ापा अपने देश के ओल्ड एज होम की जगह परिवार में काटना चाहती है। यूनी भारतीय खाना बनाना सीखना चाहती है। गीता के नन्हें मित्र भी हमारे त्यौहारों का इंतजार करते हैं। धर्म, कर्म और संतुष्ट रहना भारतीय लोक जीवन का आधार है। समाप्त

यह आलेख मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित इंगित पत्रिका के राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक से भारतीय जीवन शैली का वैश्विक रूप से लिया गया है।