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Tuesday 31 May 2022

रेल में हमारी संस्कृति नेपाल यात्रा से वापसी भाग 44 नीलम भागी

    


सीतामढ़ी का स्टेशन बहुत साफ सुथरा है। डस्टबिन रखे हुए हैं पर लोग उसका प्रयोग नहीं करते।


स्टेशन पर राजर्षि जनकजी का हल जोतते हुए और कन्या देवी सीता प्राप्त होने की मूर्तियां ही सीतामढ़ी की कहानी कह देती हैं।

अपनी लोअर सीट के नीचे लगेज़ रख कर और कॉटन के बैग को तकिए की जगह रख कर, मोटी शॉल ओढ़े मैं सो गई। ए.सी. का तापमान ठीक मेनटेन किया हुआ है। आमने सामने सब खाली है। सुबह नींद गर्म गर्म समोसे और चाय वालों की आवाज़ से खुली। ट्रेन का खाना पैकेज़ में नहीं है फिर भी हमें एक पेकैट नमकीन अजवाइन की पूरियों का दिया गया है। दो एक एक किलो आचार के डिब्बे भी न जाने किसके पास हैं। खीरे, टमाटर गुप्ता जी ने खूब ले रखे हैं और थोड़ी ब्रैड बटर भी। गर्मी में सब्ज़ी रास्ते में खराब न हो जाये इसलिए नहीं बनाई। मैंने दो समोसों के साथ चाय पी और फिर सो गई।  

    इकमा स्टेशन से संतोष राय का परिवार मेरे आजू बाजू की सीटों पर आया। सीटों पर सैटल होते ही संतोष राय अपनी मां से कॉल कर रहे हैं। मां उनको मिस कर रहीं हैं और वे उन्हें समझा रहे हैं कि वे उनकी एक कॉल पर आ जायेंगे। मुझे याद आ रहा है मेरे बच्चे भी यही कहते हैं पर हम माएं बच्चों की उनके परिवार के प्रति और कार्यस्थल की जिम्मेदारियों को समझतीं हैं इसलिए उन्हें परेशान नहीं करतीं हैं। ईश्वर से प्रार्थना करतीं हैं कि ये खुश रहें क्योंकि जब भी इन्हें मौका मिलता है ये परिवार सहित मिलने आते हैं। शशांक शेखर, संस्कार शोभित दोनों बेटे अपने चाचा को बहुत मिस कर रहे हैं। मीनू बताने लगीं कि चाचा इनके लिए चॉकलेट खूब लाते हैं। मां से कॉल के बाद संतोष राय कुछ गंभीर हैं पर कब तक! उनका एक अलग व्यक्तित्व है बोलने की कला में माहिर। वे बोलते हुए नहीं हंसते पर सुनने वाला हंसे, मुस्कुराए बिना नहीं रह सकता। साइड लोअर और अपर सीट पर  एक परिवार है पति पत्नी और तीन बच्चे दो लड़के और गोदी की लड़की। संतोष राय ने पति को बुढ़उ ही कहा, उसने बुरा नहीं माना बल्कि इनसे बतियाता भी। उनकी पत्नी को भौजी कहा। हम खूब चर्चा कर रहे हैं। उसमें एंटरटेनमैंट भी संतोष जरुरत के अनुसार मिक्स करते। जैसे गुप्ता जी आये संतोष ने उनका इंटरव्यू लेना शुरु कर दिया। उनकी ब्रैड में फफूदीं लगी है तो उन्होंने पूरी पर मक्खन लगा कर खाया और बताने लगे कि वे 66 साल के हैं न कोई गोली खाते हैं न योगा करते हैं बस व्यस्त रहते हैं और टैरेस गाडर्निंग करते हैं।   

      जो भी बिकने आता बुढ़उ परिवार को खरीद कर देता। लड़के खाते या मोबाइल देखते। न वे आपस में लड़े, न ही उन्होंने कोई शैतानी नहीं की। संतोष ने बुढ़उ से पूछा,’’ये सारे बच्चे तुम्हारे हैं। क्रिकेट टीम बनानी है क्या?’’बुढ़उ ने जवाब दिया,’’ये भाई है, लड़का है, लड़की ऐसे ही हो गई।’’

     नई जगह पर वहां के स्थानीय खाने मुझे पसंद हैं। अब हमारी बिहार के खान पान पर बात चली। मैंने कहा कि यहां छैना की मिठाई या सफेद रसगुल्ला ज्यादा बिकता है। लिट्टी चोखा बिहार से ज्यादा तो नौएडा में बिकता है। उन्होंने तुरंत मीनू से कहा कि इन्हें एटमबम दो। उसने दी जो छैने की बहुत ही लजीज़ मिठाई है। लिट्टी भी तली हुई गज़ब का स्वाद! मेरा पेट भरा हुआ है तब भी इस स्वाद को मैं नहीं भूलूंगी। पिछली दस दिन की बिहार यात्रा पर ये दोनों नए स्वाद छूट गए थे। जो आज जुड गए हैं।


    भौजी जब से आईं हैं। सबकी ओर पीठ करके वे खिड़की से बाहर ही देखती रहीं। कभी भौजी इण्डियन टॉलेट सीट पर बैठने की पोजिशन में बैठी, ऐसे दोनों हाथ चेहरे पर रख कर बाहर देखती हैं जैसे बाइसकोप देख रही हों। ये सीन बहुत मनोरंजक था पर फोटो लेना मैंने उचित नहीं समझा। समझाने के लिए कोई अपनी बाइस्कोप देखती फोटो लगाउंगी।


भौजी ने रात गहराने पर ही खिड़की से बाहर देखना बंद किया। संतोष ने बुढ़उ से पूछा,’’भौजी को घर में कैद रखते हो या बाहर भी आती जाती हैं। बुढ़उ औरतों के पति के बिना घर से बाहर कदम रखने के बहुत खिलाफ़ है। उसने बताया कि काम से लौटते समय हम जो कुछ भी चाहिए, लाकर देते हैं। जब हमारे पास र्फुसत होती है। तब तनिक घूमा भी लाते हैं। प्रयागराज पर गाड़ी काफी देर खड़ी रही। संतोष और बुढ़उ खूब बतियाकर आए। आकर संतोष राय ने बताया कि बुढ़उ ससुराल में दो ढाई लाख रुपया खर्च करके आ रहे हैं। हंसते बतियाते गहरी नींद आने पर ही सब सोए। साढ़े चार बजे हम आनन्द बिहार रेलवे स्टेशन पर उतरे।

      गुप्ता जी स्टेशन पर सामान अधिक होन के  कारण अपने बेटे का इंतजार कर रहे हैं। मैं थोड़ा दिन खुलने के इंतजार में उनके पास खड़ी हूं। इतने में फाइव स्टार सोशल वर्कर आई उसने गुप्ता जी को 145 नेपाली रु दिए। गुप्ता जी ने उसे 100 भारतीय रु दिए। वो बोली,’’232 भारतीय रु दो।’’ हमारे 100₹, 160 नेपाली रु के बराबर हैं। तब भी उन्हें ₹10 फालतू मिल रहे हैं। गुप्ता जी ने तुरंत उनके 145 नेपाली रु लौटा कर, उनसे 100₹  वापिस ले लिए। वो जाते हुए बोल गई आपको हिसाब भी नहीं आता। गुप्ता जी ने हाथ जोड़ कर जवाब दिया,’’नहीं आता बहन जी।’’ अब मैं नेपाल यात्रा की यादें दिल में संजोय, ऑटो लेकर अपने घर चल दी। समाप्त   


2 comments:

Unknown said...

Neelam ji aap ne dobaara se Nepal yatra kara di babut achha likha kuch nhi chhoda 👌👌

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद