रहन सहन में यहां लोगों का स्तर एशिया में नम्बर वन है और दुनिया में तीसरा स्थान है। इसमें महिलाओं का बहुत योगदान है। यहां तीन तरह के तीन तरह के कल्चर और हैं मलय, भारतीय और चाइनीज़।
चाइनीज़ औरते बड़ी कर्मठ होती हैं। इनका संयुक्त परिवार होता है। महिलाएँ नौकरी करती हैं। जगह कम पड़ने पर पास में ही दूसरा घर लेते हैं। जिसमें बुर्जुग महिला है यदि अकेली रहना चाहे तो रह सकती है। वीकएंड पर सारा परिवार, समय उसके साथ बिताता है। महिला के बच्चा होने पर उसे बच्चे के साथ 40 दिन तक बिल्कुल अलग रक्खा जाता है। खास तरह की आया बुलाई जाती है। जो जच्चा बच्चा की देखभाल करती है। उनका अलग खाना बनाती है, मसाज़ करती है। इस पीरियड के बाद जब जच्चा बाहर आती है तो उसका रुप देखते बनता है।
मलेशियन औरते मुस्लिम हैं ये सिर पर स्कार्फ बाँधती हैं और लम्बा पैरो तक लिबास पहनती हैं ये नौकरी करती हैं शिक्षा और हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश में हैं।
भारतीय महिलाएँ ज्यादातर नौकरी करती हैं। वह पति का सहारा बन कर घर और अपना भविष्य सुरक्षित रखना चाहती हैं। नौकरी के साथ घर के काम और छोटे बच्चे की देखभाल के लिए मेड चाहिए। ये फिलीपीन, इण्डोनेशिया और इण्डिया से एजेण्ट दिलवाता है। जैसे एक बच्चा है पति पत्नी दोनों नौकरी करते हैं। 500 डॉलर प्रतिमाह वेतन और रहना खाना जैसा स्वयं खाते हैं, इलाज़, वाई फाई सब एम्पलायर का। एक साल का कांनट्रैक्ट होता है। यदि आप निकालोगे तो एक महीने का वेतन और उसके घर जाने का किराया देना होगा। महीने में दो सण्डे ऑफ, जिसमें वे घूमने जाती हैं। ऑफ न लेने पर, उन्हें 20 डॉलर देने होंगे। यदि आप देश से बाहर घूमने जाते हैं और उसे घर में अकेले छोडना नहीं चाहते तो मेड को एजेंट के घर छोड़ सकते हैं। वह प्रतिदिन बीस डॉलर लेता है। मेड दिलवाने के भी मेड और एम्लॉयर से एक एक महीने का वेतन लेता है। मेड मैडिकल चैकअप के बाद ही आपको मिलेगी। कामकाजी महिला को घर की बच्चे की मेड के कारण जरा भी चिंता नहीं होती।
महिला नौकरी इनके दम पर करती है। ये घर बच्चा बहुत अच्छी तरह संभालती हैं। कीमती सामान चुरा कर भागने का डर नहीं है। रात 9 बजे से सुबह 6.30 तक इनकी डयूटी ऑफ रहती है, ये अपने रुम में चली जाती हैं। जिन महिलाओं के बच्चे बड़े हैं, वे अपनी सुविधानुसार प्रतिघण्टा कुछ डॉलर पे कर, मेड बुलाकर अपने काम करवा लेती हैं। शिखा मेरी नींद खराब न हो, इसलिये ऐओ को मेरे कमरे से भी सुबह दूर रखती। मेरे खाने पीने का मेरी माँ की तरह ध्यान रखती। अक्सर वह काम करते समय एक गीत गाती जिसके बोल इस प्रकार हैंः
चल गोरी ले जा बु तोके(मुझे) मोर गाँव, बाबा को बताइ दो, दादा को बताइ दो,
के ले जा बु तो के, मोर गाँव, पहाड़ किनारे मोर गाँव, वो गोरी
हरे हरे चाय के बगान......
उसके लोकगीतों में चाय के बागान और पहाड़ जरुर होते थे। वह दार्जिलिंग से थी। शाम को एओ को प्रैम में बिठा कर, हम ईस्ट कॉस्ट पार्क में समुद्र किनारे बनी बैंच पर आकर बैठ जाते। वह बताती कि उसे दुनिया घूमने का शौक है। ये उसका चौथा देश है। क्रमशः
अमर उजाला समाचार पत्र में प्रकाशित |
2 comments:
mast hai , nice one.
हार्दिक धन्यवाद
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