छटंकी ने घर तक पहुंचाने से पहले, हमसे पूरी जानकारी ले ली। हमारा क्या रिश्ता हैं? हम कहां से आएं हैं? आदि। तब तक घर भी आ गया। दुमंजिले घर में ऊपर तिवारी जी का परिवार रहता है। छटंकी ने नीचे से आवाज लगाई,’’ओजी थवाडा नानका मेल आ गया(शादी की लड़की के ननिहाल के रिश्तेदार आ गए, शादी में आने वाले पिता पक्ष के रिश्तेदारों को दादका मेल, मां के रिश्तेदारों को नानका मेल कहते हैं।)।’’घर के सभी लोग बाहर आए। स्वागत में दरवाजे के दोनो ओर तेल चुआया(डाला)। छटंकी लगेज़ रख कर जाने लगा, उसका मुंह मीठा करवाए बिना नहीं जाने दिया। नीतू उत्कर्षिनी की हम उम्र हैं। दोनों घुल मिल गई। डिम्पू हमारे लिए खाने की थालियां लगा लाई। अमृतसर का खाना तो वैसे ही मशहूर है। इस महाराज के हाथों से बने खाने का तो गज़ब का स्वाद था। मैं खाना खाकर थोड़ा आराम करना चाहती थीं क्योंकि सुबह पांच बजे हम नौएडा से निकले थे। उत्कर्षिनी मेरे कान में कुनमुनाने लगी कि नीतू ने कहा है कि पास में ही है जलियांवाला बाग, अभी चलो। वो जलियांवाला बाग के बारे में सब पढ़ कर आई थी। मैं भी चल दी। दिल्ली से यहां अकेले आने के कारण हम दोनों में बहुत आत्मविश्वास आ गया था। वो पंजाबी बोलती नहीं थी, समझती थी। यहां वह बहुत खुश थी। रास्ते में मैंने उसे समझाया कि अपना कॉनवेंट नौएडा के लिए छोड़ दे। सबसे पंजाबी में बात कर, बोलना भी सीख जायेगी और तूं बहुत एंजॉय करेगी। अब पंजाबी में रास्ता तूं ही पूछेगी। वो बोली,’’ठीक है मम्मा, यहां कितने अच्छे लोग हैं। रास्ता पूछने पर सामान उठा कर घर तक छोड़ने आए। गुड्डी मासी की बेटियां कितनी अच्छी है!! हमसे एक बार नहीं पूछा कि खाना खाओगे या चाय लोगे, थाली परोस के ही ले आई। जनरल डायर ने कैसे इतने खुशमिजा़ज़ यहां के लोगों पर गोलियां चलाई, वो भी वैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को। उत्कर्षिनी पंजाबी में रास्ता भी पूछती जा रही थी। हम जलियांवाला बाग पहुंच गए। एक ही प्रवेश द्वार था, बेटी मेरी गाइड थी। पंजाबी में बता रही थी,’’मम्मा यहां से गोलियां चलाई। जान बचा कर जाने का कोई रास्ता नहीं था।
ये कुंआ शवों से भर गया था। 300 लोगों की जान गई थी, 1000 घायल हुए थे। गोलियों के
निशान देखे। मन बहुत दुखी हुआ क्योंकि पंजाब में वैसाखी से गेहूं की कटाई शुरु होती है। देशवासियों के ,दिल में दुख होता है , इसे याद करके इतना बड़ा नरसंहार !! अब यहां पार्क और संग्राहलय है। 2 स्मारक हैं रोती हुई मूर्ति और अमर ज्योति। इसकी व्यवस्था जलियांवाला बाग ट्रस्ट देखता है। गर्मियों में यहां सुबह 9 से सायं 6 बजे तक और सर्दियों में सुबह 10 से सायं 5 बजे प्रवेश का समय है। बाहर आकर मैंने कहा कि अब चौक पासियां मासी जी को मिलने चलते हैं। मैंने उत्कर्षिनी को कहा, "बेटी, नई बसावट तो सब जगह, लगभग एक सी होती है। मल्टी स्टोरी फ्लैट्स, कोठियां आदि। हम तो अम्मा, दादी, नानी से सुने पुराने अम्बरसर से परिचय करेंगे। क्रमशः
4 comments:
बहुत शानदार लिख रही हैं आप, खास तौर पर आपकी बिहार सिरीज बेहतरीन है।
Hardik dhanyvad
Good rememberance. I had many visits to Jalianwalabagh. Golden Temple is also nearby.
हार्दिक धन्यवाद
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