कोरोना के डर से हम तो अंदर रहते हैं पर अब कुछ दिन से हमारे यहां बहुत समझदार बंदर आने लगे हैं। पहले बंदरो के आतंक से लोग बहुत परेशान थे क्योंकि वे जिधर से गुजरते थे, उत्पात मचाते हुए जाते थे मसलन बच्चों को काटना, पालतू कुत्तों को सामने बैठ कर चिढ़ाना आदि। गमलों में लगे सजावटी पौधों से तो उनकी खास दुश्मनी थी। उन्हें वे गमलों से निकाल कर बाहर रख देते थे। अगर घर का दरवाजा खुला है तो अंदर जाकर सीधे फ्रिज खोल कर अण्डे खाते और तोड़ते थे। बंदरों को अण्डा खाता देख, लोगों में डिबेट छिड़ जाती कि बंदर शाकाहारी होता है या मांसाहारी और अण्डा शाकाहार में आता है या मांसाहार में। बच्चे खेल नहीं पाते थे। बंदरों को देखते ही बेमतलब पटाखे बजाने पड़ते थे। लोग गार्ड को फोन लगाते, वह डण्डा बजाता आता तो वे छत पर चढ़ जाते। सभी ब्लॉक के गार्ड परेशान थे। अचानक बंदरों का आना बंद हो गया। पता चला कि कोई आदमी लंगूर लेकर आता है। एक लंगूर के डर से इतने बंदर आने बंद हो गए!!
लंगूर वाले की बड़ी इज्जत थी। उसकी साइकिल के कैरियर पर लंगूर बैठा घूमता था। कभी कभी मेरे घर के आगे साइकिल रुकती तो वह पेड़ों से अमरुद, सहजन के पत्ते तोड़ कर खाता या सामने पार्क में घास पर वह सो जाता, लंगूर जामुन के पेड़ पर बैठा जामुन, पत्ते खाता। वह जगह बदल बदल कर, अलग अलग ब्लॉक में जाता था। अब वह बाइक पर राउण्ड लगाता तो ल्रंगूर बाइक की सीट पर बैठने लगा। लोग भी बंदरों के आतंक को भूल गए। अब कोराना महामारी के कारण सब लॉकडाउन में रहे तो पार्क में कोयल कूकने लगी। तरह तरह के पक्षी आने लगे। कुछ दिन पहले मरियल से बंदर आए, मेरे पौधों से कुछ टमाटर खाये, तोड़े चले गए। काफी दिनों तक फिर नहीं आए। हमारा एरिया रेड जोन में है। कोई अंदर नहीं आ सकता। मेन गेट पर पुलिस रोक लेती थी। हम नियमों का पालन करते हुए वहीं से ऑडर किया सामान लाते थे। उसे बाहर धूप में रखते थे। चार दिन पहले आम रक्खे थे। बंदर आए, उन्होंने आम और सब्जी का थैला उठाया
और चले गए। अगले दिन केले उठाए और चल दिए। अब हमने फल सब्जी़ की जगह बदल दी। ब्लॉक के दोनो मेन गेट बंद रहते हैं इसलिए घर के दरवाजे खुले रहते थे। अब वे फ्रिज खोल कर सामान ले जाते थे। अभी संतोष ने तस्वीरें भेजी कि आपकी छत पर बंदर आम और दूध दहीं की थैलियां रख कर मैंगोशेक की पार्टी कर रहें हैं। काफी दिन से हम छत पर भी नहीं गए थे। अब ध्यान दिया।
एक बुढ्डा बंदर पत्तों में छिप कर सबको गाइड करता था। जब कोई नीचे नहीं दिखता तो चारो आकर सामान उठा कर भाग जाते थे। बंदर न आएं इसलिए दरवाजा बंद कर लिया है। अब मैं लंगूर वाले का पता लगा रही थी तो ये पता चला। कुछ लोग बहुत ख़ूराफाती होते हैं। जैसे केले या पपीते बेचने वाला जा रहा होगा तो उसे बुलाने के लिए आवाज़ लगायेंगे,’’ ओ केले, ओ पपीते इधर आ।’’ ऐसे ही लंगूरवाला, लंगूर को पीछे बिठा कर बाइक पर जा रहा होता उसे आवाज लगाते,’’ओ लंगूर इधर आ।’’जब वह आता तो उसे शैंपू की बोतल देकर कहते कि ये तेरे लंगूर के लिए है।
इससे इसको नहलाना। इसका बहुत ध्यान रखा कर। धीरे धीरे उसका नाम भी लंगूर हो गया। दस बजे से पहले और पांच बजे के बाद उसके साथ कभी लंगूर नहीं होता था। तब भी लोग उसे लंगूर ही कहते थे। उसकी शादी हो गई तो उसकी पत्नी को भी लंगूरी कहना शुरू कर दिया। इससे गुस्सा होकर वह उसे छोड़ कर मायके चली गई। वह उसे समझाने गया कि इससे दालरोटी चल रही है। मैं दूसरा काम मिलते ही लंगूर छोड़ आउंगा। उसने टका सा जवाब दिया कि लंगूर के साथ मैं नहीं रहूंगी। उसने लगूर छोड़ दिया। अमुक साहब ने उसकी फैक्टरी में नौकरी लगवा दी थी। अपनी कोठी में रहने को जगह देदी। साहब का इकलौता बेटा विदेश में है। लंगूरी उनका घर सम्भालती है। मैं भी बंदरों को भगाने के उपाय सोचने लगी।
4 comments:
Bahut Sateek Chitran!!! Jaise apane Ghar ki Chat ki baat ho rahi hai !! Langoorwale ki majedar Kahani !!!
हार्दिक धन्यवाद डॉक्टर पांडे
मजे दार लेख
Hardik dhanyvad
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