परिवार में शांति बनी रहे इसलिए शांति की कीमत चुकाने के लिये चाचा दुकान पर बहुत समय देते थक कर चूर होने पर ही घर जाते थे। स्वास्थ्य भी उनका गिरता जा रहा था। एक दिन अचानक तेल मशीन और पूरा ताम झाम ट्रक में लोड हो गया। बस शामू रह गया। मार्किट में किसी ने उनसे कोई प्रश्न नहीं किया। अगले दिन लकड़ी का ट्रक और बढ़ई आए, दुकान में शानदार लकड़ी का काम होने लगा। काम खत्म होते ही जनरल मर्चेंट, किराना का सामान आया और रात रात में ही दुकान सामान से भर गई। दो चार दिन बाद पता चला कि इस दुकान की एक ब्रांच भी खुली है, साइज़ में छोटी है और वो किराये पर ली है। दोनों दुकानों पर बिजली का सामान हमारी दुकान से गया। सोनू वहां बैठता है, लवली यहां पर और चाचा यहां, वहां दोनो जगह पैदल नापते रहते। चाचा गर्दन झुकाए धीरे धीरे चलते, उनके हाथ में झोला होता, उसमें एक दो संतरे, नमक और पानी की बोतल रहती। जिसकी जब जरुरत होती मुंह में रख लेते। लवली ने माल से दुकान लबालब भर ली। बहुत वैराइटी का सामान रखा। सपलायर जो दिखाते वो शॉप पर रख लेता। जब वे उसके द्वारा दी गई तारीख पर पेमेंट लेने आते तो इसकी टोपी उसके सर और उसकी टोपी इसके सर। हमारे भी इलैक्ट्रिकल के सामान की पेमेंट नहीं आई थी। इतने सालों का साथ था, जब हिसाब होता था तो सब क्लियर करके उठते थे। हम तो इस पैसे को बैंक में जमा समझकर बैठे थे। कि नया काम लगाया है। जब होंगे तो दे देंगे। कॉफी समय निकल गया पर चाचा, की हंसी गायब रहती थी। कोई ध्यान भी नहीं देता था। सब अपने अपने व्यापार में लगे रहते थे। एक दिन दुकान बढ़ाने के समय लवली आया और बोला,’’आपका कितना पैसा देना है?’’ भाई ने जवाब दिया,’’लिखा हुआ है पर टोटल नहीं किया।’’वो बोला,’’बहुत पुराना हो गया है, अभी कर लो।’’ भाई बोला,’’कर लेंगे न, कल दोपहर को आ जा।’’लवली बोला,’’अब मैं देने आया हूं। अब आप हिसाब बना ही लो।’’ वो पेमेंट देकर ही गया। अगले दिन लवली की दुकान को शामू ही संभाल रहा था। कोई भी चाचा या लवली के बारे में पूछता,’’वो कहता अभी आ रहें हैं।’’और वो लगातार ड्राइफ्रूट खा रहा था। जिन लोगों ने पेमेंट लेनी थी उन्होंने दोपहर तक पता लगा लिया कि चाचा परिवार शहर छोड़ कर चला गया है। किसी को नहीं पता। सलोनी के मायके वालों को भी नहीं पता की वे कहां गए हैं? सलोनी का बाप खूब रो रहा था। शाम को पता चला कि दुकान बिक चुकी थी। मालिक जिसके नाम अब रजीस्ट्री थी, वो भी आ गया। अब तो लेनदारों की भीड़ लग गई। नये मालिक ने कहा कि जिसका जो निकलता है वो दूंगा पर साबित करना होगा। बड़ी हैरानी हो रही थी कि इतनी मंहगी दुकान बिक गई न कोई प्रॉपर्टी खरीदी। न जाने कैसे गणित बिगड़ा और छिप कर भागना पड़ा। नये पड़ोसी ने एक हफ्ते में सब की देन दारियां निपटाईं। हमारे साथ भी उनके परिवार की महिलाएं मिलने आईं। हमने भी शुक्र किया कि बहुत अच्छे पड़ोसी आएं हैं। पर चाचा परिवार के जाने की जिज्ञासा नहीं शांत हो रही थी। एक दिन मेरे एक पुराने स्टूडेंट की मां अपनी एक सहेली के साथ दोपहर मार्किट में शॉपिंग के लिए आई। मुझे देख कर मिलने आ गई। मैंने दोनों को बिठाया और बोली,’’आप बहुत दिन में दिखाई दीं।’’ उसने कहा कि पहले वह चाचा के समोसे लेने आती थी तो कभी आप से भी मिलना हो जाता था। साथ की महिला बोली,’’उसे तो उसके बेटों ने बरबाद कर दिया।’’मैंने पूछा’’कैसे?’’वो बताने लगी कि हमारे यहां कुछ ऐसे लोग हैं जो बिना गारंटी के दस परसेंट ब्याज पर पैसा देते हैं क्योंकि वे वसूलना जानते हैं। लवली के बाप की इतनी बड़ी दुकान देख कर, लवली जो मांगता गया वो देते गए। अब ब्याज का पैसा तो बहुत जल्दी बढ़ता है। अब जिसने खरीदी है वो रजीस्ट्री के समय जो कागज़ मांगे,वो भी किसी को देकर लवली ने उधार ले रक्खा था। इसे दुकान बहुत महंगी पड़ी। कमर्शियल जगह है। दिन प्रतिदिन रेट बढ़ रहा है। इस लिए ये खुश है। इन्होंने कहा कि किसी को बताना मत थोड़े समय में सब ठीेक कर लेंगे और उससे इस दुकान को किराए पर ले लिया। इस दुकान को दिखा कर इन्होंने खूब उधार माल उठाया। दोनों लड़को ंने बेच के चुकाया नहीं, जेब में रक्खा। सोनू अगर अपना कमीनापन छोड़ कर, बाप का साथ देता तो दोनों मिल के लवली को जूतियाते, चाचा इतनी बड़ी दुकान के कोने में समोसे बेच कर ही सब ठीक कर लेते। वो तो चलीं गईं। और मुझे शौक़ बहराइची का शेर याद आया,’बर्बाद गुलिस्ता करने को बस एक ही उल्लू काफी़ है, हर शाख पे उल्लू बैठें हैं, अंजामें ए गुलिस्ता क्या होगा।’ समाप्त
2 comments:
Very Nice
हार्दिक धन्यवाद
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