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Wednesday, 7 October 2020

आने पर खुशी, मुझसे शादी करोगी!! भाग 1 नीलम भागी Ane ke khushi Mujhse shadi Karogi Part 1 Neelam Bhagi

 


जब हम अपने घर में शिफ्ट हुए तो इस सेक्टर में हमारा पांचवा घर था। अभी तो इस घर में लाइट भी नहीं थी। ये सोच कर रहने चले गए कि वहीं रह कर काम करवा लेंगे। हमें देखते ही, हमसे चार घर छोड़ कर पड़ोसन इतना खुश हुई कि मैं लिख नहीं सकती। वे तुरंत हमारे लिए ठण्डा पानी और हाथ का पंखा लेकर आईं, जिसकी उस समय हमें सख्त जरूरत थी। हमारे कहने से पहले ही उनके पति लाइन मैन और सीवर खोलने वालों को और लौहार को लेकर आ गए। दोनो काम करवा कर, आंगन पर भारी जाल और मजबूत लोहे के जाली वाले मुख्य दरवाजे का अर्जेंट आर्डर भी उसे दिलवाया। यहां नये कंकरीट के बने जंगल में हमारा आना मजबूरी था। इस घर की किश्त और दिल्ली के घर का मोटा किराया, हम दे नहीं सकते थे। बस बचत के कारण हम आ गए। बस स्टैण्ड घर के पास ही था। सुबह स्कूल के लिए निकली तो देखा। वहां एक पेड़ के नीचे गजराज की झोंपड़ी थी। उसने मुझे देखते ही बैठने को स्टूल देते हुए कहा,’’बैठ कर बस का इंतज़ार करो, बस यहीं से दिख जाएगी। मैं बैठ गई। वह ब्रैड पकोड़े बनाने में लग गया। सुबह वह एक ही बार बनाता था और बड़े से थाल में उन्हें सजा देता था। आपको ताजे खाने हैं तो सुबह खरीद लो। एक बार बनाने के बाद वह कभी दोबारा नहीं बनाता। ये हमारी किस्मत है कि अगर हमारा शाम को ब्रैड पकोड़ा खाने का मन है तो उसके थाल पर दिन भर की धूल मिट्टी फांकता हुआ, वह पकौड़ा अगर बचा होगा तो मिलेगा पर वह कभी गर्म करके भी नहीं देता था। चाय उसकी बिकती रहती थी। वो साथ के साथ बनती रहती थी। गजराज की एक बहुत बड़ी विशेषता थी कि अगर कोई फल या सब्जी वाला सड़क से गुजर जाता तो उसे ब्लॉक के अंदर घरों के नम्बर देकर भेजता, जहां परिवार रह रहे थे। मैं दोपहर को स्कूल से आती तो कोई न कोई पड़ोसी मेरी भी खरीदारी कर लेता। आज जो बातें मामूली लगती हैं। उस समय हमारे लिए उनका बहुत महत्व था क्योंकि तब कोई मार्किट तो थी नहीं। जब भी कोई नया परिवार रहने आता, सब बहुत खुश होते। कुछ दिन बाद गजराज की झोपड़ी के पास एक और छप्पर बन गया। उसमें बहुत अच्छी क्वालिटी के फल बिकने लगे। फल विक्रेता को सब चाचा कहते थे, उनके सारे बाल सफेद थे। वे एक दम साफ सफेद रंग की कमीज, पजामा पहनते और ज्यादा पंजाबी बोलते थे। उनकी तीन बेटियां और दो बेटे थे। दोनो बड़ी बेटियां नौकरी करतीं थीं। बड़ा बेटा सोनू पिता के साथ काम में मदद करता था। छोटा बेटा लवली और बेटी स्वीटी स्कूल जाते थे। चाचा बहुत नियम कायदे वाले इनसान थे। एक दाम की उनकी दुकान थी। किसी को फल छूने नहीं देते थे। आपने कहा कि एक किलो सेब। वे आप ही निकाल कर एक किलो सेब आपको देंगे। अब आप उसमें कोई कमी निकाल सकते हो। पर कोई कमी ही नहीें होती थी। जरा से भी नुक्स वाले फल को वे अलग रखते जाते थे। जिसको चाहिए कम दामों पर ले जाओ। बेकार ग्राहक अटैण्ड ही नहीं करते थे। घर खुलते जा रहे थे। चाचा का छप्पर फलों की वैराइटी से सजता जा रहा था। गजराज के ब्रैड पकोडों की संख्या भी खूब बढ़ गई पर वे बनते सुबह एक ही बार थे। दोबारा उसने कभी नहीं बनाए। क्रमशः


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