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Sunday 11 October 2020

सामनेवाला ब्यूटीपार्लर, मुझसे शादी करोगी!! भाग 7ं नीलम भागी Samnewala Beautiparlor Mujh Se Shadi Karogi!! Neelam Bhagi Part 7

 


दुकान की इन्सटॉलमैंट निकालने और स्वीटी की शादी करने के बाद उनको कमाने का और जोड़ने का  बंहुत अनुभव हो गया था। अब चाचा ने कहा कि छोटा घर लेगे, बड़े घर के चक्कर में दिमाग पर देनदारी का बोझ नहीं रखेंगे। प्रशासन की रिहायशी घर की जो भी स्कीम निकलेगी उसे भरेंगे। साथ ही चाचा आस पास की जानकारी पूरी रखते थे। एक दिन मार्किट के ग्राउण्ड में एक महिला ने गाड़ी पार्क की और सड़क पार सामने के घर की मालकिन ने उसे अपना ग्राउण्ड फ्लोर दिखाया। उस महिला ने मार्किट का राउण्ड लगाया। अगले दिन उस घर में ये महिला बढ़इयों से अपनी देखरेख में खूब काम ले रही थी। स्कूल के बाद जब मैं  घर जाने लगी तो चाचा मेरे पास आए और पूछने लगे," ये सामने नई मैडम कौन है? और यहां क्या काम करेगी?" मैंने जवाब दिया कि मुझे नहीं पता। यह सुनते ही चाचा चेहरे से परेशानी टपकाते चले गए। शाम को मैं शॉप पर गई। चाचा ने मुझे बताया कि वहां ब्यूटीपार्लर खुल रहा है। तुम्हारे  इलैक्ट्रिशियनो को मैडम ने बिजली का ठेका दिया है। शाम को मैडम दुकान पर आई। बहुत आर्कषक व्यक्तित्व की महिला, साफ बिना मेकअप के चेहरा, हल्के प्रिंट की शिफॉन की साड़ी में वह बहुत जच रही थी। अपना नाम ममता बताया। मैंने उसे बैठने को कुर्सी दी। हमारी बातें शुरु हो गई। साउथ दिल्ली में उसका नामी ब्यूटीपार्लर था। रेजीडेंशियल एरिया में वह कमर्शियल एक्टिविटी नहीं कर सकती इसलिये वो यहां खोल रही है। मैंने उस समय तक जो भी मेकअप आर्टिस्ट देखी थी। उसके मुंह पर खूब मेकअप होता था। ये सबसे अलग थी। तरह तरह की उसने मशीने लगाई। दूर दूर तक उसके जैसा पार्लर नहीं था। आईब्रो का रेट तब दस रुपये था वो तीस रुपये लेती थी। सब काम के बहुत ज्यादा रेट, पार्लर खुलते ही चल पड़ा। अंदर से वो बाहर का सब देखती रहती पर उसके शीशे से बाहर से अंदर का कुछ दिखाई नहीं देता। अगर वह मुझे पार्लर के आगे से गुजरते देख लेती तो हाथ पकड़ कर अंदर ले जाती। गाने भी मेरी पसंद के टेप में बज रहे होते। सुबह ग्यारह बजे वह पार्लर खोलती, शाम को छह बजे जितने मर्जी क्लाइंट हों वह बंद कर देती क्योंकि इस समय तक उसके बच्चों की स्कूल ट्यूशन सब हो जाती थी और पति ऑफिस से आ जाते थे। सब जगह मंगल की छुट्टी होती थी, वह संडे की रखती थी। दो लड़कियां मेरे सामने कोर्स करने आई। ममता से फीस सुनकर वह झटका खा गई। एक बोली,’’ आप नोट्स देंगी!!’’उसने जवाब दिया कि दो महीने मैं क्लांइट को छूने नहीं दूंगी। बस देखोगी। फिर जैसे मैं कहूंगी वैसे करोगी। उसके बाद मैं देखूंगी तुम काम करोगी। आने वाले को ऐसे लगे कि तुम यहां काम करती हो, न कि ट्रेनी, नही तो कोई तुमसे काम नहीं करवायेगा। वे चलीं गई तो मैंने पूछा,’’तुम नोट्स क्यों नहीं देती हो?" वो बोली,’’लिखाई पढ़ाई के काम मेरे बस के नहीं हैं।’’मैं समझ गई कि इसने कॉलेज की शक्ल नहीं देखी पर अपने काम में माहिर है| मैंने कहा कि तुम मेरे सामने जो भी काम करोगी, मैं लिखती जाया करुंगी। तुम फाइल बना लेना। जो सीखने आए उसे फोटो स्टेट करा कर देना। ये सुनकर वो बहुत खुश हो गई। मैं जैसे कैमिस्ट्री प्रैक्टिकल की फाइल बनाया करती थी। वैसे ही मैंने उसे पार्लर के काम की बना दी। फिर वह सिखाने के साथ नोट्स भी देने लगी। अब मुझे साहित्य पढ़ने से ज्यादा उसके पार्लर में महिलाओं की बातें सुनने में मजा आता। आते ही उसने दो हैल्पर तो रख ही लीं थीं। बातें ये  बहुत बढ़िया करती थी। शाम को वह इलैक्ट्रिक केतली में चाय बनाती और चाचे का एक समोसा जरुर खाती। दोपहर में पार्लर में भीड़ रहती, मार्किट में कम। कुछ लोगों का काम हो गया था, पार्लर से निकलने वाली महिला को निर्विकार भाव से घूर घूर कर देखना। क्रमशः         


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