चाचा ने चाची को चुप रहने को कहा और मुझसे बोले,’’मेरी बेटियों की जब से नौकरी लगी है मैंने कभी उनका एक भी पैसा घर में खर्च नहीं किया। उनसे कहा कि मैंने तुम्हें पैरों पर खड़ा कर दिया है। तुम्हारे पैसे तुम्हारी शादी में खर्च होंगे। दुकान के समय इनसे पैसे लिए और फिर दीवाली पर लगाये सब लौटाए है। दुकान के चक्कर में मेरी लड़कियों की शादी लेट नहीँ होगी। कोई रिश्ता आता है तो मेरी पहली शर्त उनसे ये होती है कि मुझे लड़का बेएब चाहिए। मेरे में और मेरे दोनो बेटों में कोई एैब नहीं है इसलिए दामाद भी हमारे जैसा होना चाहिए। फिर मैं लड़कियों की जोड़ी रकम बता कर कहता हूं कि शादी इतने रूपयों में ही होगी, जैसी मरजी हो कर लो। मुझे बात करने या सलाह करने के लिए दस बार बुलाओगे, मैं आउंगा। इसी रकम से आटो या टैक्सी का भाड़ा कटेगा, पहले साफ बात करना अच्छा रहता है। क्या मैं गलत हूं?’’ सुनकर मैं हंसने लगी पर मुझे तो चाचा गलत नहीं लगे। दोनों बेटियों का पैसा कभी नहीं खर्चा, दिवाली पर उनसे उधार लेते थे और उन्हें वापिस करते थे। किश्त के समय जो पैसा कम पड़ता, उनसे उधार लेते और चुका देते। उनके पैसे से इस बीच दोनों बेटियों की शादी भी कर दी। शादी में किसी को नहीं बुलाया सिवाय रिश्तेदारों के। जब मुझसे कोई पूछता,’’आप भी नहीं गई शादी में।’’मैं सीधे जवाब देती कि इनविटेशन नहीं था। वे दिन की शादी करते, अगले दिन दुकान खुलते ही सब कुछ वैसे ही चलता रहता। तीसरी बेटी स्वीटी की पढ़ाई पर चाचा बहुत ध्यान देते थे। वह ट्यूशन वगैरह भी पढ़ती थी। सारा घर मेहनत करता था, तो वह पढ़ाई में मेहनत करती थी। सोनू का रिश्ता आया, यहां भी चाचा ने साफ कहा कि दुकान किश्तों पर है। घर किराये का है। हमें कुछ नहीं चाहिए। हमारे घर खाने को खूब है। र्बवाद करने को कुछ नहीं है। जैसे सब रहते हैं, वैसे ही रहना होगा। बहू भी आकर इनके रंग में रंग गई। चाचा ने पहले दिन ही सोनू को कहाकि तूं अब घर में खाली हाथ नहीं जायेगा, बहू से पूछ कर जो उसकी पसंद का खाने को कहे लेकर जायेगा। हम मिठाइयों में रहते हैं इसलिए हमारा खाने को मन नहीं करता। वो तो हलवाई की बेटी नहीं है न।’’ जब भी कभी वह दुकान पर आती तो चाचा उसे यह कहते हुए बाहर चले जाते,’’पुत्तर तेरा जो दिल करे खा, अपनी दुकान है।’’ वो भी सिर से पल्लू नहीं गिरने देती, शो केस खोल खोल के मिठाइयों पर टूट पड़ती। जब वह प्रैगनेंट हुई तो उसका पेट इतना बड़ा हो गया था कि उसे अपने पैर नहीं दिखाई पड़ते थे। ख़ैर एक साल में उसने चाचा को पोते का दादा बना दिया। जब पोती का जन्म हुआ तो दुकान की सभी किश्तें निपट चुकीं थीं और परिवार ने चैन की सांस ली। स्वीटी की नौकरी लगते ही अच्छा रिश्ता आ गया। अब चाचा ने लड़के वालों को कोई नियम कायदा नहीं समझाया और इस शादी में उन्होंने सब को बुलाया। हलवाई का काम होते हुए भी सारा परिवार स्लिम था। बहू खूब मोटी हो गई और बस लवली की तोंद निकल आई थी। क्रमशः
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