एक दिन मैं स्कूल से लौटी तो गजराज की झोपड़ी गायब थी। मैं घर जाने से पहले चाचा से पूछने गई। चाचा ने बहुत दुख से बताया कि उस प्लाट का मालिक आया था। कल उसने भूमि पूजन करना है। कोठी बना कर यहां रहने आयेगा। शुक्र है मेरी झोपड़ी इस प्लाट से दस मीटर दूर है। उस समय मैंने गजराज की भट्टी देख कर दूरी रखी थी कि इसका धुंआ आयेगा। गर्मी में भट्टी से और गर्म हो जायेगा तो फल खराब होंगे। देखो हमारे प्लॉट वाला कब बनाता है! उसके बाद दो दिन में सब फल बेच कर, अगले दिन सुबह चाचा झोपड़ी में कुछ फेर बदल कर रहे थे। मेरी बस आ रही थी, मैं स्कूल चली गई। लौटते में फल विहीन चाचा की झोपड़ी आंखों के आगे आ रही थी और चिंता सता रही थी। बस से उतर कर यह देखते ही मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि चाचा एक तख्त पर अपनी उजली सफेद पोशाक में आलती पालथी मारे बैठे, छोटी सी कढ़ाही में समोसे तल रहें हैं। बराबर में सफेद मलमल के कपड़े से ढके तलने के लिए तैयार समोसे रखे हैं। सब कुछ बहुत कम मात्रा में लेकिन बनाने का सामान रखा था। सोनू हैल्पर की तरह काम में लगा था। मैंने चार समोसे देने को कहा। चाचा बड़ी लगन से उन्हें धीरे धीरे तल रहे थे। दो ग्राहक खाने के लिए इंतजार कर रहे थे। चाचा उनसे बोले,’’ए साडी कुड़ी(ये हमारी लड़की) सुबह की गई, अब बच्चे पढ़ा कर लौटी है। कहो तो इसे पहले दे दूं क्योंकि आज पहला दिन है।’’दोनों ने कोरस में जवाब दिया,’’कोई बात नहीं दे दो। हम तो लाइनमैन के इंतजार में बैठे हैं। बिजली लगे तो हम शिफ्ट करें।’’मैं समोसे लेकर आई। चाय चढ़ा कर पड़ोसन को बुलाया। समोसा लाजवाब, कवर पतला मठरी जैसा, अंदर मसाला गज़ब। उसने समोसे की तुलना करोल बाग दिल्ली की किसी मशहूर दुकान से की और मैंने मेरठ के समोसों से की। वह चाय, मीठा कुछ नहीं सिर्फ समोसा ही बेचता था। जब भी जाओ चाहे एक समोसा लो, आपको गर्म ही मिलेगा। परिवार शिफ्ट होते जा रहे थे। चाचा का समोसा भी मशहूर होता जा रहा था, साथ ही कड़ाही का साइज भी बढ़ता जा रहा था। एक दिन सड़क पार सामने के मैदान में नाप जोंक हुई और साथ ही मैदान में डम्पर के डम्पर बिल्डिंग मैटिरियल के पलटे जाने लगे। बच्चे स्कूल से आकर रेत, बजरी, रोड़ी में खेलते। कुछ ही दिनों में वहां एक शानदार मार्किट बन गई। अब चाचा को चिंता होने लगी कि अगर मार्किट में हलवाई की दुकान खुल गई तो!! या जिस प्लाट पर उनकी झोपड़ी है, उसका मालिक कोठी बनवाएगा तो!! ये तो!! उसे बहुत परेशान करने लगी। पर उसके समोसों के स्वाद ने लोगों को समोसे खरीदनेे को मजबूर कर रखा था। एक दिन किसी ग्राहक ने उसके समोसो की बहुत तारीफ की। चाचा ने धन्यवाद के बदले उन्हें अपनी दोनो तो!! और तो!! चिंता बता दी। तीन चार ग्राहकों ने भी सुना। तभी मार्किट की कुछ दुकानों के टैण्डर निकले। एक ग्राहक जिसने उस दिन चाचा की तो!! और तो!!समस्या सुनी थी। वह अखबार लेकर चाचा के पास आया। उसने चाचा से दुकान का टैण्डर भरने को कहा। और भरवाया क्योंकि दुकाने बहुत बड़ी थीं इसलिए मंहगीं थीं। चाचा ने बहुत डरते हुए ये सोच कर भरी कि अगर मिल गई तो बेच देंगे इतनी भारी किश्त देना उनके बस का नहीं है। कमर्शियल जगह है निकलने पर फायदा ही होगा। क्रमशः
No comments:
Post a Comment