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Thursday 8 October 2020

छप्पर से कमर्शियल एरिया की राह, मुझसे शादी करोगी!! भाग 3 नीलम भागी Mujhe se Shadi Karogee Neelam Bhagi

   


ख़ैर चाचा ने दुकान भरी। पांच हजार रु का ड्राफ्ट साथ में जमा हो रहा था। अगर शॉप निकलती है तो ये रूपये किश्त में एडजस्ट हो जायेंगे और यदि टैण्डर इनके नाम का नहीं खुला तो ये पैसे वापिस नहीं मिलेंगे यानि पांच हजार समोसे का नुकसान था! तब एक रुपये का एक समोसा बिकता था। इस चिंता में चाचा को सारी रात नींद नहीं आई। जिस दिन टैण्डर खुलना था, समय से पहले वह जाकर एर्थोटी ऑफिस में बैठ गए। जब उनकी भरी दुकान का टैण्डर खुला तो चाचा के दिल की धड़कन रुकने को हो रही थी। कुछ रुपयों से उनकी भरी कीमत ज्यादा थी इसलिए उनकी दुकान निकल आई। दुकान के पोजैशन वगैहरा मिलने में तो समय लगता है। चाचा ने झोंपड़ी हटा कर, अपनी बंद दुकान के बरांडे में समोसे बनाने शुरु कर दिए। समोसो का स्वाद दूर दूर से ग्राहकों को खींच कर ला रहा था। और प्रोपर्टी डीलर भी रोज उनकी दुकान के लिए ग्राहक ला रहे थे क्योंकि शहर का विकास तेजी से हो रहा था। अब चाचा ने ठान लिया कि दुकान को रखना ही है। तब तो पैसा ही पैसा चाहिए था। पहले एलॉटमैंट, रजीस्ट्री, पोजैश्न फिर पांच साल तक छिमाही किश्त, एक भी किश्त देने में देर हुई तो पैनल्टी साथ में दो। सबसे पहले तो उन्होंने अपनी मदद के लिए अपने पुराने कारीगर राधे को बुलाया ताकि अर्थोटी के चक्कर काटने में दुकानदारी का नुक्सान न हो। वह चाचा की तरह ही समोसा बनाता था। कई दिन तक उसका बनाया पहला समोसा चाचा ने खुद खाया। फिर उसको भट्टी पर तलने को बिठाया लेकिन मसाले पर छौंका खुद ही लगाया। स्वाद के कारण उन्हें यह दुकान मिली थी इसलिये स्वाद से वह कोई समझौता नहीं करते थे| माम्जस्ते में हाथ से मसाले कूटे जाते। रथ या डालडा का एक किलो घी का पैकेट कड़ाही में डाला जाता। खत्म होने पर अगला डलता। आलू और हरी मिर्च, हरा धनिया वे खुद खरीदने जाते थे। चाचा बिल्कुल भी पढ़े लिखे नहीं थे। सब कुछ अपने अनुभव से करते थे, जिसका परिणाम लाजवाब समोसा था। दुकान का पोजैशन और रजीस्ट्री करवाने में मकान बेच कर किराये के घर में आ गए। पर चाचा बहुत खुश थे कि कमर्शियल जगह अपनी हो रही है। पहले दुकान की किश्ते चुका दें ताकि दुकान अपनी हो जाए फिर अपना घर भी हो जायेगा। दूसरे रामू कारीगर के आने पर चाचा ने उसे समोसे भरने और बेलने पर लगा दिया, साथ ही समोसे का रेट भी बढ़ा दिया। कुछ दिन लोग बोलते रहे,’’इससे अच्छा तो चाचा झुग्गी में था, यही समोसा सस्ता था। दुकान में आते ही समोसा मंहगा कर दिया है। पर कोई यह नहीं कह पाता कि ’ऊंची दुकान फीका पकवान।’ दो दुकानदारों की समय पर किश्त की पेमेंट न होने के कारण मार्किट की वे दुकाने कैंसल हो गईं। उनका टैण्डर निकला, एक हमने भरी हमारी निकल आई और हम चाचा के पड़ोसी बन गए। सभी दुकानदार बड़ी मेहनत से दुकानदारी करते हुए परिवार चला रहे थे और किश्त चुका रहे थे। यहां ज्यादातर लोग नौकरीपेशा थे इसलिए शाम को और शनिवार रविवार को खूब ग्राहक होता था। दोपहर में दुकानदार माल लेने या आराम करने घर चले जाते थे। दुकान खुली रहे इसलिए उनके घर की महिलाएं भी बैठ जातीं थी। मैं भी अपनी किताब उठा कर आ जाती थी। क्रमशः          


2 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर लिखा है आपने, बधाई आपको नीलम जी

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार