देख कर वो बहुत खुश हुई। और वह बताने लगी कि ये पौधा हवा को शुद्ध करता है। इसके जरा भी नखरे नहीं है यानि ज़ीरो मेनटेनेंस। हानिकारक विशैली गैसों को ये अवशोषित कर लेता है। वो तो फायदे बताती जा रही थी। मैंने उसे कहा कि इसके बारे में ये सब तो मुझे नहीं पता था पर इसे अपने सामने देखना अच्छा लग रहा है। मेरा मूड बिना किसी बात के अच्छा है। कॉल खत्म करते ही मुझे याद आया कि पिछले फ्लॉवर शो से मैं कुछ ऐसा ही एक पौधा, मैं एक प्लास्टिक के गमले में लगा हुआ खरीद कर लाई थी। देते समय उसने कहा था कि इसे तो बहुत कम पानी देना पड़ता है। इस पर धूप छांव का भी कोई फर्क नहीं पड़ता। लाकर मैंने बाहर पौधों में रख दिया। कभी जरा सी खाद डाल दी और पानी दे दिया। अब रात के बारह बज रहे थे। मैं बाहर गई। उपेक्षित सा ये गमला सुपर सान्सेवीरिया के पौधों से भरा हुआ था पर फटा नहीं था। मैं बड़े प्यार से उसे उठा कर अंदर लाई। किनारे वाली थाली में पानी भर कर उसमें गमले को रखा और मन में उससे माफी मांगी कि मेरे कारण छोटे से गमले में इतने पौधे कितने कष्ट में रहें होंगे? बस आज रात और सह लो, कल पहला काम इन्हें अलग करने का करुंगी। गर्मी में मैं सीरैमिक के पॉट में पौधे नहीं लगाती। यहां गर्मी बहुत पड़ती है इसलिए। गर्मी जा रही है। कोरोना के कारण गमले वाले भी नहीं आ रहे हैं। मेरे पास जितने पाट रखे थे। सब निकाले। गमला पानी में रहने से सब पौधे निकालने आसान हो गए। ग्यारह पौधे मैंने अलग किए। एक पौधा और एक गमला। कब एक और एक ग्यारह हो गए!!
बस इनको अलग करने की धुन थी इसलिये भूल गई, अलग करने से पहले फोटो लेना। जब तीन सुपर सान्सेवीरिया गमले में रह गए तब याद आया। तब फोटो ली।
अदम्य और शाश्वत ने भी मुझसे ले जाकर अपनी स्टडी टेबल पर रख लिया।