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Saturday, 31 October 2020

एक और एक ग्यारह सुपर सान्सेवीरिया का पौधा, एयर पुरिफाइंग प्लांट नीलम भागी Super Sansevieria Plant] Air Purifyer plant Neelam Bhagi




मेरी गीता ने गिफ्ट में मुझे पौधा भेजा जो सफेद सीरैमिक के पॉट में लगा हुआ है। उसके नीचे प्लेट भी रखी हुई है। मैंने तुरंत उसे अपनी स्टडी टेबल पर रखा। उसे रखने से मुझे अच्छा लगने लगा। मेरा घर हरियाली से घिरा हुआ है पर कभी इन्डोर प्लांट मैंने नहीं रखा था। इस इकलौते प्लांट को अपने सामने रखना मुझे अच्छा लग रहा था। मैं कुछ लिखने में व्यस्त थी इसलिए गीता को तुरंत धन्यवाद भी नहीं किया। मुझे तो इस पौधे का नाम भी नहीं पता था। रात को गीता का फोन आया। हैलो करते ही उसने पूछा,’’कैसा लगा सुपर सान्सेवीरिया का पौधा? उसे बाहर पेड़ पौधों की भीड़ में तो नहीं रखा न। इसे अपनी स्टडी टेबल पर ही रखना।’’मैंने जबाब में वीडियो दिखाया कि ये मेरी आंखों के सामने ही है।

देख कर वो बहुत खुश हुई। और वह बताने लगी कि ये पौधा हवा को शुद्ध करता है। इसके जरा भी नखरे नहीं है यानि ज़ीरो मेनटेनेंस। हानिकारक विशैली गैसों को ये अवशोषित कर लेता है। वो तो फायदे बताती जा रही थी। मैंने उसे कहा कि इसके बारे में ये सब तो मुझे नहीं पता था पर इसे अपने सामने देखना अच्छा लग रहा है। मेरा मूड बिना किसी बात के अच्छा है। कॉल खत्म करते ही मुझे याद आया कि पिछले फ्लॉवर शो से मैं कुछ ऐसा ही एक पौधा, मैं एक प्लास्टिक के गमले में लगा हुआ खरीद कर लाई थी। देते समय उसने कहा था कि इसे तो बहुत कम पानी देना पड़ता है। इस पर धूप छांव का भी कोई फर्क नहीं पड़ता। लाकर मैंने बाहर पौधों में रख दिया। कभी जरा सी खाद डाल दी और पानी दे दिया। अब रात के बारह बज रहे थे। मैं बाहर गई। उपेक्षित सा ये गमला सुपर सान्सेवीरिया के पौधों से भरा हुआ था पर फटा नहीं था। मैं बड़े प्यार से उसे उठा कर अंदर लाई। किनारे वाली थाली में पानी भर कर उसमें गमले को रखा और मन में उससे माफी मांगी कि मेरे कारण छोटे से गमले में इतने पौधे कितने कष्ट में रहें होंगे? बस आज रात और सह लो, कल पहला काम इन्हें अलग करने का करुंगी। गर्मी में मैं सीरैमिक के पॉट में पौधे नहीं लगाती। यहां गर्मी बहुत पड़ती है इसलिए। गर्मी जा रही है। कोरोना के कारण गमले वाले भी नहीं आ रहे हैं। मेरे पास जितने पाट रखे थे। सब निकाले। गमला पानी में रहने से सब पौधे निकालने आसान हो गए। ग्यारह पौधे मैंने अलग किए। एक पौधा और एक गमला। कब एक और एक ग्यारह हो गए!!

बस इनको अलग करने की धुन थी इसलिये भूल गई, अलग करने से पहले फोटो लेना। जब तीन सुपर सान्सेवीरिया गमले में रह गए तब याद आया। तब फोटो ली।

अदम्य और शाश्वत ने भी मुझसे ले जाकर अपनी स्टडी टेबल पर रख लिया।   


Friday, 30 October 2020

बस एक ही उल्लू काफ़ी है......मुझसे शादी करोगी!! भाग 18 नीलम भागी Bus Ek He Ullu Kaffee Hai.... Mujhe Se Shadi Karogi Part 18 Neelam Bhagi



परिवार में शांति बनी रहे इसलिए शांति की कीमत चुकाने के लिये चाचा दुकान पर बहुत समय देते थक कर चूर होने पर ही घर जाते थे। स्वास्थ्य भी उनका गिरता जा रहा था। एक दिन अचानक तेल मशीन और पूरा ताम झाम ट्रक में लोड हो गया। बस शामू रह गया। मार्किट में किसी ने उनसे कोई प्रश्न नहीं किया। अगले दिन लकड़ी का ट्रक और बढ़ई आए, दुकान में शानदार लकड़ी का काम होने लगा। काम खत्म होते ही जनरल मर्चेंट, किराना का सामान आया और रात रात में ही दुकान सामान से भर गई। दो चार दिन बाद पता चला कि इस दुकान की एक ब्रांच भी खुली है, साइज़ में छोटी है और वो किराये पर ली है। दोनों दुकानों पर बिजली का सामान हमारी दुकान से गया। सोनू वहां बैठता है, लवली यहां पर और चाचा यहां, वहां दोनो जगह पैदल नापते रहते। चाचा गर्दन झुकाए धीरे धीरे चलते, उनके हाथ में झोला होता, उसमें एक दो संतरे, नमक और पानी की बोतल रहती। जिसकी जब जरुरत होती मुंह में रख लेते। लवली ने माल से दुकान लबालब भर ली। बहुत वैराइटी का सामान रखा। सपलायर जो दिखाते वो शॉप पर रख लेता। जब वे उसके द्वारा दी गई तारीख पर पेमेंट लेने आते तो इसकी टोपी उसके सर और उसकी टोपी इसके सर। हमारे भी इलैक्ट्रिकल के सामान की पेमेंट नहीं आई थी। इतने सालों का साथ था, जब हिसाब होता था तो सब क्लियर करके उठते थे। हम तो इस पैसे को बैंक में जमा समझकर बैठे थे। कि नया काम लगाया है। जब होंगे तो दे देंगे। कॉफी समय निकल गया पर चाचा, की हंसी गायब रहती थी। कोई ध्यान भी नहीं देता था। सब अपने अपने व्यापार में लगे रहते थे। एक दिन दुकान बढ़ाने के समय लवली आया और बोला,’’आपका कितना पैसा देना है?’’ भाई ने जवाब दिया,’’लिखा हुआ है पर टोटल नहीं किया।’’वो बोला,’’बहुत पुराना हो गया है, अभी कर लो।’’ भाई बोला,’’कर लेंगे न, कल दोपहर को आ जा।’’लवली बोला,’’अब मैं देने आया हूं। अब आप हिसाब बना ही लो।’’ वो पेमेंट देकर ही गया। अगले दिन लवली की दुकान को शामू ही संभाल रहा था। कोई भी चाचा या लवली के बारे में पूछता,’’वो कहता अभी आ रहें हैं।’’और वो लगातार ड्राइफ्रूट खा रहा था। जिन लोगों ने पेमेंट लेनी थी उन्होंने दोपहर तक पता लगा लिया कि चाचा परिवार शहर छोड़ कर चला गया है। किसी को नहीं पता। सलोनी के मायके वालों को भी नहीं पता की वे कहां गए हैं? सलोनी का बाप खूब रो रहा था। शाम को पता चला कि दुकान बिक चुकी थी। मालिक जिसके नाम अब रजीस्ट्री थी, वो भी आ गया। अब तो लेनदारों की भीड़ लग गई। नये मालिक ने कहा कि जिसका जो निकलता है वो दूंगा पर साबित करना होगा। बड़ी हैरानी हो रही थी कि इतनी मंहगी दुकान बिक गई न कोई प्रॉपर्टी खरीदी। न जाने कैसे गणित बिगड़ा और छिप कर भागना पड़ा। नये पड़ोसी ने एक हफ्ते में सब की देन दारियां निपटाईं। हमारे साथ भी उनके परिवार की महिलाएं मिलने आईं। हमने भी शुक्र किया कि बहुत अच्छे पड़ोसी आएं हैं। पर चाचा परिवार के जाने की जिज्ञासा नहीं शांत हो रही थी। एक दिन मेरे एक पुराने स्टूडेंट की मां अपनी एक सहेली के साथ दोपहर मार्किट में शॉपिंग के लिए आई। मुझे देख कर मिलने आ गई। मैंने दोनों को बिठाया और बोली,’’आप बहुत दिन में दिखाई दीं।’’ उसने कहा कि पहले वह चाचा के समोसे लेने आती थी तो कभी आप से भी मिलना हो जाता था। साथ की महिला बोली,’’उसे तो उसके बेटों ने बरबाद कर दिया।’’मैंने पूछा’’कैसे?’’वो बताने लगी कि हमारे यहां कुछ ऐसे लोग हैं जो बिना गारंटी के दस परसेंट ब्याज पर पैसा देते हैं क्योंकि वे वसूलना जानते हैं। लवली के बाप की इतनी बड़ी दुकान देख कर, लवली जो मांगता गया वो देते गए। अब ब्याज का पैसा तो बहुत जल्दी बढ़ता है। अब जिसने खरीदी है वो रजीस्ट्री के समय जो कागज़ मांगे,वो भी किसी को देकर लवली ने उधार ले रक्खा था। इसे दुकान बहुत महंगी पड़ी। कमर्शियल जगह है। दिन प्रतिदिन रेट बढ़ रहा है। इस लिए ये खुश है। इन्होंने कहा कि किसी को बताना मत थोड़े समय में सब ठीेक कर लेंगे और उससे इस दुकान को किराए पर ले लिया। इस दुकान को दिखा कर इन्होंने खूब उधार माल उठाया। दोनों लड़को ंने बेच के चुकाया नहीं, जेब में रक्खा। सोनू अगर अपना कमीनापन छोड़ कर, बाप का साथ देता तो दोनों मिल के लवली को जूतियाते, चाचा इतनी बड़ी दुकान के कोने में समोसे बेच कर ही सब ठीक कर लेते। वो तो चलीं गईं। और मुझे शौक़ बहराइची का शेर याद आया,’बर्बाद गुलिस्ता करने को बस एक ही उल्लू काफी़ है, हर शाख पे उल्लू बैठें हैं, अंजामें ए गुलिस्ता क्या होगा।’ समाप्त                           

 


Thursday, 29 October 2020

करके देख लो, मुझसे शादी करोगीे!! नीलम भागी भाग 17 Ker Ke Dekh Lo, Mujhe Se Shadi Karogi Part 17 Neelam Bhagi



कुछ दिन बाद आंटी दुकान पर आईं। उसी समय ममता भी आ गई। मैंने सलोनी के बारे में पूछा, आंटी ने जवाब दिया कि अच्छी लड़की है। जो कहो करती हैं, जवाब नहीं देती फिर ममता से बोलीं कि सलोनी ने कहा है कि अब वह पार्लर नहीं आयेगी। आंटी के जाते ही ममता ने खुश होते हुए कहा कि हमारा पार्लर लकी है। यहां आने पर सलोनी की मन पसंद शादी हुई और पिता की हैसियत न होने के कारण जो वह अपने लंगड़ेपन को दूर करने के लिए इलाज के सपने देखती थी। वो सब उसने पूरे करके शादी की है। हम खुश थे कि चाचा परिवार ने भी उसको, उसकी कमी के साथ स्वीकारा है। चाचा परिवार तेल के व्यापार से खुश नहीं था। लोगों को तो शुद्ध तेल मिल रहा था पर इन्हें मुनाफा नहीं हो रहा था और व्यापार तो मुनाफे के लिए किया जाता है। क्योंकि सरसों मंहगी थी। इस मशीन से 12 प्रतिशत तेल तो खली में चला जाता है। कमर्शियल बिजली से मशीन चलती है। एक लड़का शामू मशीन पर रक्खा। गांव में कोल्हू से जो  बैल तेल निकालते हैं उसे कच्ची घानी का तेल कहते हैं। उसकी खली में 14 प्रतिशत तेल चला जाता है। पर वे खली को खाद में और पशुओं को खिलाने में इस्तेमाल करते हैं जिससेे दूध में फैट की मात्रा बढ़ जाती है। सरसों भी आस पास से मिल जाती है। यहां तो मंहगी सरसों और ढुलाई। बड़ी मिल के लिये पैसा और जगह दोनों चाहिए, उससे लाभ होता है। उसमें खली में एक आध प्रतिशत तेल जाता है। अपनी नौकरी बचाने के लिए और हमदर्दी से शामू ने बताया कि पहले जहां वो काम करता था। वे दुकान के आगे, एक बड़ी तिरपाल पर सरसों सूखाने के लिए फैलाए रखते हैं। थोड़ी देर मशीन चलाते हैं फिर जिस ड्रम में मशीन से कच्ची घानी का तेल गिरता है उसमें बड़ी मिल के तेल के कनस्तर पलट देते। अब इनके ड्रम से भी तेल तो कच्ची घानी के तेल के रेट से बिकने लगा। ये तरकीब भी शुरु हो गई पर जो गल्ले में पैसा आता, लवली जाते समय अपनी जेब में रख कर चल देता। अब जब लवली उठायेगा तो सोनू क्यों नहीं उठायेगा भला। चाचा जितनी देर बैठते, वे भी जाते समय गल्ला साफ कर जाते क्योंकि उन्हें तो समय पर शामू का वेतन, मिल का तेल, सरसों, घर और दुकान के खर्चे चुकाने थे। इसलिये वे ज्यादा से ज्यादा समय दुकान पर बैठते। सोनू दांव लगा कर बैठता कि जितना लवली ने अब तक खर्च किया है, सब यहीं से वसूलूंगा। यह सब देख कर भी चाचा चुप्पी लगा जाते। वे चाहते थे कि सोनू उनका साथ दे तो दोनों मिल कर लवली को ठीक कर दें। फिर समय से सब कुछ पटरी पर आ जायेगा। पर सोनू जरा भी बड़प्पन नहीं दिखा रहा था। लवली की बेवकूफी के कारण, सोनू से बेइज्जती के डर से शायद चाचा उसे कह नहीं पा रहे थे। न चाहते हुए भी चाचा कच्ची घानी के नाम पर मिल का तेल बेच रहे थे। बेहद थकने पर ही दुकान छोड़ते थे। एक दिन मैंने कह ही दिया कि चाचा थोड़ा आराम ही कर आया करो। सुन कर चाचा उस समय चुप ही रहे पर घर जाते समय मुझसे बोले,’’बिना किसी तजुर्बे के ये तेल का बिजनेस करके देख लिया।’’यानि लवली ने करके देख लिया| क्रमशः         

 


Tuesday, 27 October 2020

बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है, मुझसे शादी करोगी!! नीलम भागी भाग 16 Mujhe se Shadi Karogi Neelam Bhagi Part 16



दूसरे के नोट नाच नाच लुटाते हुए, हमारे तीनों कारीगर आज अपने आपको किसी शहंशाह से कम नहीं समझ रहे थे। बैण्डवाला दो ही गाने बार बार बजा रहा था ’आज मेरे यार की शादी है और ले जायेंगे, ले जायेंगे, दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे।’ बरात आते ही शायद ही कोई लड़की का रिश्तेदार पण्डाल में बैठा रह गया हो। सभी बरात के स्वागत में बाहर खड़े, हैरानी से दूल्हे और बरातियों को देख रहे थे। सलोनी की दोनों बड़ी बहनों के चेहरे पर मैंने खुशी की जगह विस्मय देखा। बैण्ड मास्टर बजाता जा रहा था और  तीनों शहंशाह नाचते जा रहे थे। जैसे ही नोटबंदी हुई, साथ ही बैण्ड बंदी हो गई। सेहरे लगा लवली घोड़ी से उतरा, सलोनी के रिश्तेदारों की सैंकड़ो आंखें उस पर टिक गईं। दूल्हा बना लवली बहुत ही जच रहा था। वैडिंग चेयर पर बैठे उसे काफी देर हो गई। सलोनी जयमाला के लिए बड़ी देर में बाहर आई। गाना बजने लगा, ’’बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया हैए मेरा महबूब आया है’’ सलोनी ने चेहरे पर इस समय ऐसा भाव बना रखा था, मानों वह बिल्कुल खुश नहीं है, जयमाला डाल क रवह किसी पर अहसान करने जा रही है। डण्डी के बिना चल सकती थी पर चाल में कमी तो थी ही। जैसे जैसे उसके कदम स्टेज़ की ओर बढ़ रहे थे। बाराती हैरान होते जा रहे थे। ब्राइडल मेकअप करने में पारंगत ममता के हाथ  से सजी सुन्दरी सलोनी को आज रुप क्यों नहीं चढ़ा। मैं उसे घूरते हुए सोच रही थी कि जब से यह लवली के संर्पक में आई है ,इसके चेहरे से हमेशा खुशी टपकती थी। इन दिनों तो इसके चेहरे पर ग्लो रहता था। दुल्हन बनने पर तो साधारण नैन नक्श की लड़की भी लावण्यमयी लगती है। और सलोनी!! इतने में ममता आकर मेरे कान में फुसफुसाते हुए, कहने लगी कि आज पहली बार अपने हाथ से तैयार की ब्राइड से वह संतुष्ट नहीं है। और पूछने लगी,’’आज आपको सलोनी कैसी लग रही है?’’जवाब में मैंने कहा,’’तुम्हारे किए मेकअप का जवाब नहीं।’’विवाह संस्कार होने लगे, सालियां जो नेग मांगती लवली तुरंत देता। जूती छिपाई पर तो लड़कियों को मुंहमांगी रकम मिली। चाचा की बेटियां अपने ससुराल वालों की आव भगत में लगी हुईं थीं। पम्मी अपने मायके वालों की सेवा में थी वे तो वैसे ही सलोनी और उसका मायका देख कर बहुत ही खुश थे। चाचा और आंटी जो जैसा कह रहा था, करते जा रहे थे। सप्तपदी के बाद मैंने बधाई दी। जवाब में चाचा बोले,’’आज बच्चों की जिम्मेवारी से फाारिग हो गया। ये खुश रहें।’’तारों की छांव में, बाबुल की दुआएं लेकर, सलोनी ने चाचा के सुखी संसार में प्रवेश किया। सुबह चाचा दुकान खोल कर बैठ गए। मैंने कहा,’’चाचा रात भर जागे हो, आज आराम कर लेते।’’ जवाब में वे हंसते हुए बाले,’’सोनू आते ही सो गया है। घर में औरतों के ही सगुन रिवाज चल रहें हैं। सोनू आ जायेगा तो मैं जाकर सो जाउंगा।’’क्रमशः  


Monday, 26 October 2020

महानगर वाले, मुम्बई में सब गांव वाले, संस्कृति नीलम भागी Culture Neelam Bhagi







शुरु में मुम्बई में कोई मुझसे पूछता?’’आप किस गांव से ? मैं तपाक से उन्हें सुधारने के लहजे़ में जवाब देती,’’मैं दिल्ली से हूं।’’फिर वो बाकियों से परिचय करवाते हुए कहतीं, इनका गांव बैंगलोर, इनका गांव कोलकता है यानि हमारे देश के महानगरों वाले, मुम्बई में सब गांव वाले। बाद में मुझे भी आदत हो गई थी। जब दिल्ली से लौटती तो कोई पूछता,’’दिखी नहीं!!’’मेरा जवाब होता,’’गाँव गई थी।’’वो बताती मैं भी आज ही गांव से लौटी हूं।’’मैं पूछती,’’तुम्हारा गांव का नाम? वो जवाब देती,’’चेन्नई।’’लेकिन त्यौहार में सारे गांव एक देश में तब्दील हो जाते हैं। नवरात्र के व्रत सबने कन्या पूजन से सम्पन्न किए। यानि हमारी एक  ही संस्कृति हमें जोड़ती है। ये देखकर ही ताो कहते हैं कि भारत सभ्यताओं का नहीं, संस्कृति का राष्ट्र है। सभ्यताओं में संघर्ष हो सकता है पर संस्कृति हमें जोड़ती है। हमारी गीता इस दिन बहुत खुश रहती। छोटी सी गीता का उससे बड़ा पर्स गले में लटकाए रहती। लोखण्डवाला में अपनी सोसाइटी में एक दिन पहले ही उसका बुलावा, समय के साथ आता। बड़े दुलार से घरों में नौ देवियों के स्वरुप में नौ कन्याओं का पूजन होता।


सबके साथ गीता पैर धुलवाती, कलावा बंधवाती और तिलक लगवाती। सबसे छोटी थी जो दस वर्ष तक की कन्या दीदियां कहतीं वो करती यानि खा भी लेती।  अपना गिफ्ट से उसे कोई मतलब नहीं, पर अपनी दक्षिणा तुरंत पर्स में रख लेती, जबकि पैसे गिनने उसे नहीं आते थे। उस दिन वह पर्स टांग कर बहुत गुमान में रहती थी। यू. एस. जाने पर रामनवमीं के दिन उत्कर्षिणी राजीव और उत्कर्षिणी की स्कूल की सहेली अंजली भी इनके पास आकर तीनों गीता को जिमातें हैं। वो बड़ी खुशी से अपना पूजन करवाती है। उसे हमेशा इस दिन का इंतजार रहता है। भारत आने पर श्वेता अंकूर उसे घघरा चोली चुनरी देते हैं। जिसे वह कन्या पूजन नवमीं पर पहनती है। इस बार उसने अपनी यूक्रेनियन सहेली को भी कन्यापूजन पर बुलाया। उत्कर्षिणी राजीव ने उसके माता पिता को भी पूजा में आमन्त्रित किया।

सहेली को गीता ने बड़े प्यार से अपना लंहगा चोली चुनरी पहनवाई क्योंकि गीता हमेशा त्यौहारों पर भारतीय पोशाक पहनती है। यूक्रेनियन सहेली ने लहंगा पहली बार पहना था इसलिए वह कभी कभी उसे शॉट की तरह कर लेती थी। 

दोनों का कन्या पूजन किया। उसके माता पिता  बहुत खुशी से इसमें शामिल हुए। पूजन के बाद  सबसे पहले मातारानी का प्रशाद हलुआ, छोले और पूरी को खाया फिर जो मरजी साथ में खाओ। 

 इस बार गीता की छोटी बहन दित्या का कन्या पूजन किया।


का पहला कन्या

 


Tuesday, 20 October 2020

दिल वाले की दुल्हनिया भाग 15 मुझसे शादी करोगी!! नीलम भागी Dilwale ke Dulahniya Part 15 Mujhe /se Shadi Karogi Neelam Bhagi

 




अब डिनर के बाद पम्मी भी दोनों बच्चे लेकर दुकान पर आ जाती और सोनू को साथ लेकर घूमने  चली जाती। वो चलती भी जाती और लगातार पतर पतर सोनू के कान में बोलती भी जाती। सोनू चुपचाप सुनता रहता। फिर वे भी अपनी मरजी से घर जाते। पम्मी के मायके वालों ने भी अपने दामाद सोनू के हितचिंतक बन कर काफी आना जाना शुरु कर दिया। लवली का दुकान से जाने का कोई समय नहीं था। कभी भी चल देता, हमें कह कर कि दुकान का ध्यान रखना, हममें से कोई उधर चला जाता। एक दिन ममता खुशी से कूदती हुई आई, आते ही ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह सुनाया कि सलोनी का इलाज़ करवाने वाला सरप्राइज़ लवली है। देखो हम दोनों को तो सामने रह कर भी नहीं पता चला। इसकी फैमली चाहती थी कि इसकी टांग का इलाज, शादी से पहले हो, लवली ने करवा दिया। सुन कर मैंने पूछा,’’अब ये शादी कब कर रही है?’’ममता तपाक से बोली कि मैंने भी इससे यही पूछा। जब ये जवाब में मुस्कुरा दी तो मैंने कहा कि उसने तेरे हाथ से डण्डा छुड़वा दिया। इससे ऊपर आज की तारीख में इलाज ही नहीं होता। बस तेरे चलने में नुक्स रह गया है। भगवान ने चाहा तो वो भी ठीक हो जायेगा। अच्छा अब बता तेरा ब्राइडल मेकअप मुझे कब करना है? और तेरी ब्राइड की ड्रैस मेरी तरफ से।’’ ये सुन कर बदले में वो खी खी खी हंसते हुए बोली,’’मेरी बहने भी मुझे हलवाइन कह कर छेड़तीं हैं।’’पता नहीं क्यों हलवाइन शब्द मेरे कान में बजने लगा। ममता लवली की तारीफों के पुल बांधते हुए कहने लगी कि लवली जैसा लड़का आज कल के जमाने में मिलना मुश्किल है। उस दिन, हमेशा की तरह दिन भर समोसे बनते रहे, कोई न कोई दुकान देखने आता रहा। अगले दिन दुकान गई तो वहां कोई कारीगर नहीं था। रात से मशीन की फिटिंग चालू थी। एक ट्रक सरसों की बोरियों का उतरा। पूजा हुई। लवली ब्राण्डेड कपड़े पहने काम करवा रहा था। मशीन चलने का शोर मचा।  आगे काउण्टर के पास एक ड़ªम में सरसों का तेल पाइप से गिरने लगा। किसी ने पूछा,’’चाचा क्या काम लगाया है?’’ चाचा ने जवाब दिया,’’ये कोल्हू नहीं है, उसे तो बैल चलाते हैं। यहां मशीन से तेल निकलता है, मिल लगाई है।, आयल कौंपनी हैं। तीन बहुत शानदार कुर्सियां काउण्टर के पीछे लगीं। पर चाचा के चेहरे पर वो खुशी नहीं थी जो पहली बार उन्हें समोसे तलते हुए मैंने देखी थी। ममता बहुत खुश थी कि फेस पैक के लिए सरसों की खली लेने गाजी पुर नहीं जाना पड़ेगा। सलोनी की खुशी तो चेहरे टपक रही थी। पार्लर की साथिने उसे छेड़ रहीं थी कि हम तो हलवाइन ही कहेंगी। चाचा के ग्राहक भी खुश थे कि शुद्ध सरसों का तेल मिलेगा। जल्दी ही हमारे हाथों में लवली की सलोनी से शादी का कार्ड आया,  जो भी उस खूबसूरत र्काड को हाथ में लेता तो उसका मुंह खुला रह जाता। शादी से पहले हमारे कारीगर भी दुकान पर आने बंद हो गए। वे सलोनी के घर पर लवली के निर्देशन में शादी की व्यवस्था में लगे थे। बारात में सबसे ज्यादा पैसे हमारे कारीगर लुटा रहे थे। सलोनी के घर के आगे तो उन्होंने नागिन डांस करते हुए नोट लुटाने में हद ही कर दी। मुझसे नहीं रहा गया। मैंने रामऔतार को बुला कर डांटते हुए कहा,’’क्यों इतने नोट लुटा रहे हो?’’उसने जवाब दिया कि हम तीनों को लवली भैया ने लुटाने को गड्डियां दी थीं।’’क्रमशः                            


Monday, 19 October 2020

मैं सब कुछ लूटा दूंगा, तेरी चाहत में, मुझसे शादी करोगी भाग 14 नीलम भागी Mein Sab Kutch Loota doonga, Tere Chahat Mein, Mujhe Se Shadi Karogi Part 14 Neelam Bhagi




मैं घर जा रही थी साथ ही मेरे दिमाग में प्रश्न चल रहे थे। कौन सलोनी का इलाज करवा रहा है? अब समोसे लेने सलोनी नहीं आ रही थी। ममता बड़ी खुशी से मेरे पास आई और कहने लगी कि मैंने उससे पूछा कि तेरा इलाज़ कौन करवा रहा है? उसने कहा कि ये सबके लिए सरप्राइज़ होगा। देखो कैसा सरप्राइज़ होगा!! उसके मैडिकल टैस्ट हो रहें हैं। टैक्सी से ही आती जाती है। इधर मैं देख रही थी कि ये दुकानदारी के समय ही जाती थी और शाम को हलवाई तीन लोग होते थे। अब सोनू और चाचा ही होते थे। लवली बे टाइम आता था। ममता को जो भी सलोनी के बारे में पता चलता वो अपनी खुशी मुझसे शेयर करने आती। उसने बताया कि डाक्टर ने सलोनी को बैंगलोर के किसी डॉक्टर का पता दिया है और कहा है कि जहां तक मैं कर सकता था किया, अब इससे आगे बैंगलोर में उन डॉक्टर को दिखाना होगा। अब फ्लाइट से सलोनी बैंगलोर गई है। लवली भी नहीं दिखाई दिया। पर इनकी दुकान पर जो ब्याज पर पैसा देते हैं, वे आते और मार्किट का चक्कर लगा कर चले जाते। बैंगलौर से टांग का ऑपरेशन करवा कर सलोनी आई। उसने ममता को बताया कि अब उसे अपना वजन डॉक्टर के बताए वजन के अनुसार रखना होगा क्योंकि ये टांग बहुत कमजोर है, बिना डण्डी के चलने की धीरे धीरे कोशिश करनी है। इधर चाचा की आवाज़ का वाल्यूम कम होने लगा। आंटी और चाचा धीरे धीरे कोई चर्चा करते रहते थे। उनकी लाडली बहू प्रमिला जिसे इनके यहां प्यार का नाम पम्मी मिला वो भी अपने बेटे के साथ दुकान पर जासूसी करने आने लगी कि उसका पति क्यों दुकान पर इतनी लंबी ड्यूटी करता है? और साथ ही मां बेटे बर्फी और ड्राइफ्रूट से पेट भर लेते। दुकान पर बैठने वाला लवली, उसे तो बहुत लोग पहचानते थे। अब एक दिन एक बेहूदा ग्राहक हमारी शॉप से सामान लेने आया, उसी समय लवली आया एक ट्यूबलाइट लेकर जाते हुए बोला,’’भाई साहब लिख लेना।’’ ये सामान लेते रहते थे हम लिखते रहते थे। किसी भी दिन सबकी पेमैंट कर देते। लवली के जाते ही वो बेहूदा ग्राहक बोला,’’बताओ जी, ये चाचा का लड़का शाम को उधर गली में जो लंगडी रहती है न, उसे बिना डण्डी के स्टेडियम में  चलना सिखाता है। दो चार कदम चल कर वो गिरने लगती है तो ये उसे बांहों में ले लेता है। जब तक ये उसे प्रैक्टिस करवाता है। हमारी फुटबॉल की प्रैक्टिस नहीं हो पाती। लड़के बस इनकी पिक्चर देखते रहतें हैं।’’उसको  सामान देकर चलता किया। अब जैसे हमें पता चला है कि लवली कहां गायब रहता है। ऐसे इसके परिवार को भी तो कोई बता गया होगा। दो चार दिन बाद लवली आया तो चाचा ने उसे टोक दिया कि तूं दुकानदारी के समय मत जाया कर, शाम को हम दोनों से काम नहीं सम्भलता। लवली ने जरा ग्राहकों का लिहाज़ नहीं किया बोला,’’तुम्हें किसने कहा दो दो रुपए के समोसे बेचो। माल लाओ, तैयार करके लोगो की पसंद का स्वाद दो। सुबह से रात तक लगों। कोई छुट्टी नहीं। दुनिया में इतने काम हैं।’’चाचा ने उस समय चुप रहना ही मुनासिब समझा। क्र्रमशः             


Sunday, 18 October 2020

वो दिल कहां से लाऊँ, तेरी याद जो भूला दे। मुझसे शादी करोगी!! भाग 13 नीलम भागी Mujhe Se Shadi Karogi Part 13 Neelam Bhagi


पार्लर में मैं ममता की बातें सुन रही थी पर नज़रें मेरी सलोनी का पीछा कर रहीं थीं। पहले दिन जैसे ही उसका स्टाइल था, लवली के स्कूटर की सीट पर बैठ कर गर्म समोसों का इंतज़ार करना। ख़ैर वह समोसे लेकर आ गई। अचानक बैल बजी सलोनी ने  अपने पर्स में से मोबाइल निकाला और सुनने अंदर के कमरे में चली गई। जल्दी ही कुछ फुसफुसाकर आ गई। उसके आते ही ममता ने उसे समझाते हुए कहाकि सबको यहां के लैंड लाइन का नम्बर दे दिया कर क्योंकि इसमें तो सुनने के भी पैसे लगते हैं। तेरे घर में फोन नहीं है वहां इनकमिंग सुनना तो मजबूरी है। उसने जवाब के बदले मुस्कुराहट दी। मैं सोच में पड़ गई कि मोबाइल और इसका बिल!! इसके पिता की तो बहुत ही मामूली नौकरी है और इसके हाथ में भी कोई कौशल नहीं है कि कमा ले। जो ममता दे रही है, वही बहुत है और टांग का ऑपरेशन!! दो तीन दिन बाद मैं दुकान पर आई तो लवली बिना शेव बनाए, मजनू सा बना दुकानदारी कर रहा था। टेप पर दिल टूटे, मनहूस से गाने बज रहे थे। उनकी धुन के अनुसार कारीगरों के भी धीरे धीरे हाथ चल रहे थे यानि वातावरण ग़मगीन था। सलोनी के समोसे खरीदने आने का समय भी हो गया था। वह पार्लर से तो खिलखिलाती निकली, स्कूटर पर बैठने तक बेहद गंभीर हो गई और उसी समय अगला गाना बजा, ’’वो दिल कहां से लाऊँ तेरी याद जो भूला दे, मुझे याद आने वाले कोई रास्ता बता दे’’सलोनी समोसे लेने के बाद जैसे ही मुड़ी उसकी मुस्कान नहीं रुक रही थी। सामने से चाचा, आंटी और उनके साथ एक पति पत्नी और थे। आते ही बोले,’’ ओ टेप बंद कर, बात करने दे।’’ उन्होंने अंदर बाहर दुकान देखी और चारो हमारी शॉप के आगे ही बैठ कर बतियाने लगे। उन्होंने पूछा,’’और जी आपकी कोई डिमाण्ड तो नहीं है।’’अब चाचा तो घोषणा करते हुए बोलते हैं, वैसे ही बोले,’’पंजाबी कभी औलाद की कसम नहीं खाता और न ही बेटे की शादी में डिमाण्ड करता है। पाकिस्तान से खाली हाथ आए थे। बच्चे पाल लिए और अपना ठिया बना लिया, घर किराए का है वो भी अपना हो जायेगा। और शादी लवली को लड़की दिखा कर उसकी पसंद से होगी। लवली अभी बाइस साल का है और हम चाहते हैं कि अपना मकान बना लें तब इसकी शादी करें। आप आये हो आपकी बड़ी मेहरबानी उन्हें अच्छी तरह नाश्ता करवा कर भेजा। पर लवली अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था। पता नहीं उसने यह वार्तालाप सुना या नहीं। वह चला गया। अगले दिन मैं शॉप पर गई तो लवली के समय सोनू बैठा हुआ था लेकिन लवली का स्कूटर वहीं खड़ा था। समोसे लेने भी सलोनी नहीं आई, अलका आई। बड़ा अजीब लगा, उसे देखने की आदत जो हो गई थी। अलका जैसे और समोसे की खरीदार लड़कियां आतीं हैं। वैसे ही खड़ी रही। समोसे मिलते ही चली गई। जब घर लौटने लगी तो ममता मेरे पास बड़ी खुशी से चहकती हुई आई और आते ही बोली,’’तुम्हें पता है आज सलोनी का डॉक्टर से एपांमैंट है। देखो वो क्या कहता है? भगवान बस इसकी टांग ठीक करदे। जो करवा रहा है न, उसने इसको ले जाने के लिए टैक्सी भेजी। मैंने पूछा,’’किसने भेजी? कौन करवा रहा है?’’ उसने बताया कि सुबह से इस बारे में कोई बात नहीं हुई थी। जब टैक्सी आई तो जाते हुए बताया कि टांग के इलाज के लिए जा रही हूँ। क्रमशः          



Saturday, 17 October 2020

दिल क्या करे जब किसी को किसी से प्यार हो जाए! मुझसे शादी करोगी!! भाग 13 नीलम भागी Dil Kya Kare Jab Kisi Ko Kisi Se Pyar Ho Jaye Part 13 Mujhe Se Shadi Karo Ge Neelam Bhagi



मैंने कहा,’’मैं तो किसी को नहीं जानती।’’वो बहुत गम्भीर था सुनकर चुपचाप चला गया। मेरी जुबान पर आते आते रूक गया कि सलोनी ने अपने आप को नहीं देखा!! फिर सोचने लगी कि जैसे ये बात मेरे दिमाग में आई है, वैसे लवली के दिमाग में भी तो आई होगी। पर लगता है नहीं आई होगी क्योंकि यह इसका पहला पहला प्यार है और ये प्रेमी है, ये दिल की बात मानेगा और दिल इसका सलोनी पर आ गया है। अब मैंने कुछ दिन बाद लवली देखा तो उसका पेट अंदर था। मुझे देखते ही वो मेरे पास आया और पूछा,’’दीदी मेरा पेट नहीं दिख रहा है न! मैंने कहा,’’हां।’’सुन कर वह खुशी से अपनी दुकान पर चला गया। मुझे घर जाते समय ममता ने देख लिया, वह हाथ पकड़ कर मुझे पार्लर ले गई। सलोनी का समोसे खरीदने जाने का समय हो गया था। उसने संवरे हुए बालों में फिर से कंघी की। कई बार शीशा देखा और लाठी उठा कर चल दी। आज मुझे उसका चेहरा बहुत अलग सा लगा। मैंने ममता से पूछा,’’सलोनी का चेहरा कुछ अलग सा नहीं लग रहा है!! ममता ने जवाब दिया,’’पार्लर में जो सफाई करती है वो भी यहां आने के बाद बदलने लगती है। अब ये तुम्हारी अक्ल पर है। तुम किसको एडमायर करती हो? किसके जैसा दिखना चाहती हो? इसने अब आई ब्रो बनवानी बंद कर दी है। पर पूरे फेस की थ्रैडिंग करवाती है। कुछ लड़कियां यहां आती हैं, वे सिम्पल फैशन से दूर दिखना चाहती हैं। वे आइब्रो की शेप नहीं तराशने देतीं। दो चार बाल जो बहुत खराब हों, उन्हें निकलवा कर, पूरे फेस की थ्रैडिंग करवाती हैं। ये भी वैसे ही करने लगी है। इसे देख कर लवली सोचता होगा कि पार्लर में रह कर भी कितनी सिम्पल है अगर सजेगी तो!!’’वो बोलती जा रही थी, मेरी आंखों के सामने सरकारी स्कूल की यूनीर्फाम में स्कूल से आते ही चाचा के साथ, काम में हाथ बटाता लवली आ रहा था। जिसकी घर और दुकान से बाहर कोई दुनिया ही नहीं थी। अब उसके सामने उसके स्कूटर की सीट पर विराजमान सलोनी, उसके दिल में स्थापित हो गई थी। ममता बोली,’’पेट कम होने से लवली और जचने लगा है।’’ ये सर्जरी तो बहुत मंहगी होती है। पार्लर में लेडीज़ मुझसे पूछेंगी,’’हम क्या करें कि हमारा पेट कम हो जाए, अब आपका तो पेट ही नहीं है।’मैं उन्हें कहती हूं कि मैं कुछ नहीं करती। दिनभर यहां पर काम फिर घर पर काम, अपने लिए अलग कुछ करने के लिए मेरे पास टाइम ही नहीं है। हां आपको तुरंत कम करना है तो एक डॉक्टर का नम्बर है मेरे पास।’’ इसने सुन लिया था बस सलोनी ने मुझसे लिया था। कोई डॉक्टर दे गया था जब मेरा साउथ दिल्ली में पार्लर था तब।’’सलोनी ने देखा कितनी सुन्दर सुन्दर ड्रैसेज ली हैं!!मैं बोली,’’हां, वो तो मैं देख ही रही हूं।’’ममता कहने लगी कि मोहनी मिली थी, वो भी बहुत खुश है। कहने लगी कि जब से सलोनी आपके पार्लर आने लगी है, इसका स्वभाव बदल गया है। उसकी भी शादी हो गई है। अब देखो इसके लिए भी कितनी अच्छी उम्मीद भरी बात हुई है। आज बता रही थी कि कल उसकी मासी का लड़का आया था। उसने सलोनी के पापा से कहा कि एक डॉक्टर है जो पोलियो से खराब टांग को ठीक कर देता है। सलोनी की टांग ठीक करवा कर फिर इसकी शादी कर देंगे। मेरे दोस्त को सलोनी पसंद है। वो कह रहा है कि मैं शादी के बाद इसकी टांग ठीेक करवा लूंगा। भाई ने साफ मना कर दिया कि हम इसकी टांग ठीक करवा कर ही, शादी करेंगे। हमारा सगा भाई तो है नहीं। इसी को हम राखी टीका करते हैं। उसकी बात उसके पापा बहुत मानते हैं। क्रमशः


Friday, 16 October 2020

तेरे चेहरे में वो जादू है..... मुझसे शादी करोगी!! नीलम भागी भाग 12 Tere Chehrey mein wo Jadu Hai , Mujhe Se Shadi Karogi Neelam Bhagi Part 12

  


उस दिन तो मुझे लवली दिखा नहीं। दो दिन के बाद मैं शॉप पर गई तो लवली, गल्ले पर था। मैंने सोचा पहले सलोनी समोसे ले जाए फिर लवली से बात करूंगी। सलोनी आई, डण्डी को स्कूटर के सहारे टिका कर बड़ी मेहनत से तशरीफ उसकी सीट पर रखी। पता नहीं उस दिन मुझे क्यों लगा कि राधे समोसे बहुत ही धीमी आंच में तल रहा है। बड़ी मुश्किल से वह सीट से उतर कर समोसे लेकर जाते समय मुझे देखा पर आज सलोनी ने नमस्ते न करके, बहुत प्यारी मुस्कान के साथ हाथ हिलाया और चल दी। उसके जाते ही मैंने लवली को बुलाया। उससे पूछा कि उसने सलोनी से पूछा है,’’मुझसे शादी करोगी, तुम्हारे घर में किससे बात करुं?’’ उसने जवाब दिया,’’हां दीदी।’’मैंने पूछा,’’तूने इसे क्यों पसंद किया?’’कुछ देर वह सोचता रहा फिर बोला,’’दीदी, ये बड़ी तकलीफ़ से स्कूटर पर चढ़ती है, उतरती है, मैं रोज देखता हूं। इस बिचारी से कौन शादी करेगा? मैं इससे शादी करके इसका सहारा बनूंगा। ये सुनकर सलोनी बहुत खुश होगी। इसलिये मैंने जाकर सीधे ही कह दिया। लगता है शरमा रही है अभी तक जवाब नहीं दिया। देखो कब तक नहीं देती! मैं भी उसके जवाब का इंतजार करता रहूंगा।’’सामने से चाचा आ रहे थे। उसके जाने का समय हो गया और वो चला गया। जैसे ही मेरे दोनो भाई आये मैंने उन्हें सलोनी लवली का प्रसंग सुनाया। सुनते ही दोनों ने मुझे सख्ती से समझाया कि तुम उन्हें बुला कर, दोनों से कुछ नहीं पूछोगी और न ही कोई सलाह दोगी। तुम्हें सुनाने कोई आयेेगा तो सुन लेना।’’ अभी ये लोग संर्घष से मुक्त हुए हैं। लवली हमेशा हमारी आंखों के सामने रहा है। इसके लिए बहुत अच्छे रिश्ते आ रहें हैं। हमसे लड़की वाले इन्क्वायरी करते हैं। अच्छा हुआ तुमने हमें बता दिया। हम दोनों पड़ोसी हैं। लवली सीरियस है तो ये शादी करके मानेगा। दिल का मामला है। तूं समझायेगी तो ये शादी के बाद महान बनने को सलोनी को बतायेगा कि तुमने भी मना किया था कि लंगड़ी से शादी मत कर। वो बेमतलब तेरी दुश्मन बन जायेगी। और पड़ोस की दुश्मनी अच्छी नहीं होती।’’मैंने ध्यान से सुना और मनन किया। मैंने भाइयों को नहीं बताया कि मैंने लवली को बुला कर पूछा था। मुझे ममता के पास बतियाना बहुत अच्छा लगता है पर अब मैं कम जाती हूं क्योंकि वो मुझसे लवली परिवार की बातें पूछती है। एक दिन लवली आया वो बहुत खुश था और उसने ट्रैक सूट पहना हुआ था उसे देख मुझे याद आया, मार्किट के सामने बहुत शानदार कोठी बनी। गृहप्रवेश पर उसने दुकानदारों को निमंत्रण दिया। उसे सब पहचान गए क्योंकि पहले वो रेडियो फिर टी.वी. पर क्रिकेट मैच की कमैन्ट्री बोलते थे। सुनते ही चाचा बोले,’’मेरा लवली भी स्कूल में क्रिकेट के मैच जीत कर बनियाने, कप इनाम में लाता था।’’शायद फिर इसने खेलना शुरु कर दिया। मुझे देखते ही आकर बैठ गया और बोला,’’दीदी स्टेडियम के कई चक्कर लगाता हूं पर पेट कम नहीं हो रहा है। किसी डॉक्टर को आप जानतीं हैं जो पेट की चर्बी निकाल कर पेट फ्लैट कर दे। मैंने कहा,’’हो जायेगा कम ऐसे ही दौड़ लगाता रह। ऐसी क्या मुसीबत आ गई है जो पेट कम करने के लिए ऑपरेशन करवायेगा!!’’उसने जवाब दिया कि उसने फिर सलोनी से जवाब मांगा तो उसने कहा कि और सब तो ठीक है पर आपका पेट बाहर निकला हुआ है।  क्रमशः                      


Thursday, 15 October 2020

चेहरा है या चांद खिला , मुझसे शादी करोगी!! भाग 11 Mere Dil Ko Tum Bha Gaye] Mujhe Se Shadi KarogePart 11


 पेलियोग्रस्त सलोनी एक हाथ से डण्डी के सहारे, दूसरे हाथ में समोसों की थैली लटकाए चलती आई। तो ममता ने उसे प्यार से कहा कि किसी और को भेज दिया करो न। उसने ममता को ऐसे देखा, जैसे कह रही हो वो किसी से कम नहीं है, वो सब कुछ कर सकती है। अब उसने सबको अपने हाथ से समोसा दिया फिर चाय दी। अगले दिन मैं गई तो मुझे देखते ही ममता ने भीगी खली का डिब्बा निकाला। मैंने चम्मच से मिलाया वही गंध। ममता तो बहुत खुश, उसने उस फेशियल का न जाने क्या नाम रखा और  कण्डीशन! इसके लिए पहले एपायंमेंट लेना होगा क्योंकि फेस पैक बनाने में टाइम लगता है। उसने थोड़़ी थोड़ी खली पेस्ट तीन हिस्से में बांटा और किसी में मुल्तानी मिट्टी, किसी में गुलाव की पत्तियां, किसी में चंदन पाउडर मिला तीन पैक बनाये। बारी बारी से सबको अपने चेहरे पर लगा कर, बीस मिनट तक बैठी मुझसे बतियाती रही। चेहरा साफ करने के बाद, उसने लिस्ट में इस फेश्यिल का नाम जोड़ा। दो रुपए की खली, चेहरे पर लगते ही 200 रूपए की हो गई। खली का मिक्सी में पाउडर बना कर सिरैमिक के खूबसूरत जार में रखा। सबसे जरुरी औजार था खरल वो बड़ी प्यारी सी खरीदी गई। 


फेस पैक को बेमतलब खरल में घोटा जाता। मुझे यह देखने में बहुत मज़ा आता। सलोनी समोसे लेने निकलती, पता नहीं क्या ऐसा था? उसी समय राधे कढ़ाही में समोसे डालता, जो उस समय गर्म निकले होते उसके ग्राहक खड़े होते। सलोनी लवली के स्कूटर की सीट पर बैठ कर इंतजार करती। अगर मैं अपनी शॉप पर बैठी होती वो मुझे अनदेखा कर देती। समोसे लेने के बाद मुझे देखती और चौंक कर नमस्ते करती। अगर चाचा आ जाते तो लवली जाकर स्कूटर के पास खड़ा हो जाता फिर वो बड़ी मुश्किल से उतरती। लवली स्कूटर स्टार्ट कर, ये जा वो जा क्योकि घर जा कर रैस्ट करके उसे और सोनू को आना है, शाम को दुकानदारी जो तेज होती है। एक दिन मेरे पास संदेश आया कि ममता ने आपसे जरूरी बात, आपकी दुकान पर ही करनी है। तीन दिन बाद जब दुकान पर मेरी जरूरत थी, मैं चली गई। उसी समय ममता आ गई। आते ही बोली,’’ जो बात बताने जा रही हूं सुन कर हैरान हो जाओगी।’’ मैंने पूछा,’’ऐसा क्या हुआ?’’ वह  बोली लवली ने सलोनी से पूछा है,’’मुझसे शादी करोगी, तुम्हारे घर में किससे बात करुं?’’मैंने पूछा,’’फिर।’’ ममता बोली,’’यह कह कर स्कूटर र्स्टाट करके चला गया।’’मैंने पूछा,’’अब सलोनी समोसे लेने आती है?’’ उसने जवाब दिया,’’हां, वैसे ही पहले की तरह आती है।’’ममता कहने लगी कि उस बेचारी से मजा़क तो नहीं कर गया। ये मार्किट में इतनी बड़ी अपनी दुकान वाले, लड़का बिल्कुल स्वस्थ ठीक, कोई  जिम्मेवारी नहीं। सलोनी का परिवार तो इनके आगे कुछ भी नहीं है। सलोनी ने आते ही मुझे यह बात बताई। मैं तो तब से हैरान हूं। और तुम भी नहीं आईं।’’ मैंने पूछा,’’सलोनी क्या कह रही है?’’ममता ने जवाब दिया,’’मुझे ये बताकर, उसके बाद कभी इस बात का  उसने जिक्ऱ भी नहीं किया । जब भी मैं उसको देखती हूं तो मंद मंद मुस्कुरा रही होती है। शीशे में अपने को खूब निहारती है। मुझे तो इसकी चिंता हो रही है। अगर ये मजा़क होगा तो ये कैसे सहेगी?’’ सुन कर मैं भी सोच में पड़ गई और मुझे यकीन नहीं आ रहा था कि लवली जैसा भला लड़का ऐसा मजा़क करेगा। दुकान पर होता तो मैं उसी वक्त उसे बुला कर पूछ लेती। क्रमशः           


Wednesday, 14 October 2020

र्हबल फेस पैक यानि उबटन भाग 10 मुझसे शादी करोगी!! नीलम भागी Herbal Face Pack Mujhe Se Shadi Karogi Part 10 Neelam Bhagi



गाड़ी में बैठते ही ममता बोली,’’फेशियल तो ठीक था, मसाज़ में रैपट बहुत जोर जोर से मार रही थी। लगता था जैसे किसी से लड़ कर आई हो। वैसे गैजेट्स नहीं थे। पर फेस पैक बनाने मे सचमुच हकीमों वाले औजा़र में कूट रही थी। पर कूटा क्या इसने?’’ मैंने जवाब दिया कि जो भी उसने पैक बनाया था उसकी गंध मेरी बहुत परिचित है पर याद नहीं आ रही किसकी!! मुझे सोच में डूबा देख कर, वो भी चुपचाप ड्राइविंग करती रही। अचानक रोड पर गायों का झुण्ड देखते ही मुझे अपनी गंगा गाय याद आ गई और साथ ही फेस पैक की गंध। मैं ममता को बताने लगी,’’ मेरठ में मैं तब बी.एड कर रही थी। रात दस बजे की सानी हमेशा मैं ही बनाती थी। अगर मैं कोर्स की किताब पढ़ती तो मुझे नींद आ जाती, जिससे कई बार गंगा भूखी रह जाती और वह भी आधी रात को मां मां करने लगती। तब अम्मा पिताजी मुझे कोसते कि बेजुबान को मैंने भूखा रक्खा, जिसकी सजा थी एक हफ्ते तक सुबह पाँच बजे की सानी भी मुझे बनानी पड़ती थी। अच्छी कहानी पढ़ते समय मुझे कभी भी नींद नहीं आती इसलियेेे मैं एक कहानी की किताब छिपा कर रखती थी। सब सो जाते थे तो मैं कहानी की किताब पढ़ने लगती और गंगा को समय पर सानी मिलती थी। ंसुबह कॉलिज जाने से पहले मैं सरसों की खली भिगो कर जाती, सानी के समय वह अच्छी तरह फूल जाती थी फिर मैं बाल्टी में बांह डाल कर उसे एक सार करती। पहले दिन बनाने लगी तो मेरी दादी ने समझाया एक दिन बाई बांह से घोलना है, दूसरे दिन दाई से वरना दानों बाहों में फर्क आ जायेगा। उसमें यही गंध थी। एक दिन सब लड़कियां बैठीं थीं। एक ने पूछा,’’ तुम अपनी बांहों में कौन सी क्रीम लगाती हो बड़ी शाइन करतीं हैं।’’ मैंने जवाब दिया कि गाय की सानी बनाने के बाद पानी से धोती हूं। ऐसे ही चिकनी हो जातीं है। सुनते ही सब लड़कियां मुंह बिचका कर हंसने लगीं। ये शत प्रतिशत सरसों का पेस्ट था। इतने ड्रामें की जरुरत नहीं हैं। सरसों की खली मिल जाये मैं वही गंध दे दूंगी। दिल्ली की पली बढ़ी ममता, मदर डायरी का दूध पीने वाली। उसने सरसों की खली देखी नहीं थी। मर्स्टड केक कहा तब भी उसे नहीं पता। बिजनैस में वह बहुत पक्की थी। अब उसे सरसों की खली के सिवाय कुछ नहीं समझ आ रहा था। वह मेरठ जाने को तैयार थी। मैंने कहा जहां पशुओं के चारे का सामान मिलता है। वहां मिलेगी। तब गुगल बाबा तो थे नहीं। हमें पता चला कि गाजीपुर, घड़ौली दिल्ली में डायरीर्फाम हैं, वहां दुकाने हैं। अरे! वो तो नौएडा के पास है। हमारे रास्ते में ही पड़ रहा था। हम सरसों की खली खरीद कर ही लाये। ममता ने उसे गाड़ी में ही रखा। मुझसे कहा जितना लेना है ले लो, किसी को दिखाना नहीं। पार्लर पहुंचते ही चाय रखी। सलोनी ने ड्रार से रुपये लिए, बालों में ब्रश किया, कई बार शीशा देखा और लाठी के सहारे समोसे लेने चल दी। समोसे कड़ाही में थे। वह लाठी की मदद से लवली के स्कूटर की सीट पर इंतजार में बैठ गई। ममता ने अपने लंच बॉक्स में खली डाल कर मुझे पकड़ाया। मैंने उसमें पानी डाला। उसने ढक्क्न बंद करके अपनी अलमारी में रख कर बंद कर दिया। किसी को देखने को नहीं मिला कि क्या भिगोया है? क्रमशः      


Tuesday, 13 October 2020

तुमको देखा तो ये....., मुझसे शादी करोगी भाग 9 नीलम भागी Tumko Dekha toh Ye ....Mujhe Se Shadi Karo gee Part 9 Neelam Bhagi


सलोनी को सामने से आते मैं देख रही थी। पास आते ही उसने मुझे देखते ही नमस्ते करके जोर से राधे से कहा,’’6 समोसे पैक करदो।’’ और हमारी शॉप में आ गई आते ही मुझसे बोली,’’दीदी आप भी चलो न, चाय बन रही है। आपके लिए भी समोसा लिया है।’’मैंने कहाकि मेरे दोनो भाई इस समय नहीं हैं इसलिए मैं शॉप नहीं छोड़ सकती।’’साथ ही मैं सलोनी को निहारने लगी। कल और आज में, उसमें जमीन आसमान का र्फक था। शेप में आइब्रो, ब्लीच, फेशियल किया चेहरा, हाथों में मैनिक्योर, पैरों में पैडिक्योर, बालों में ड्रायर किया हुआ था। कहते हैं न कि ’पुत के तो दीवार भी सुन्दर लगती है।’ सलोनी तो अत्यंत सुन्दरी है। ममता की तरह चेहरा उसने मेकअप के बिना रखा था। चाचा दुकान पर आए तो लवली का ऑफ हो गया। लवली ने नया टू विलर लाल रंग का काइनिटिक होंडा लिया था वो जब भी उस पर जाता तो पहले उस पर कपड़ा जरुर फेर कर चमकाता था। आज भी चमकाते हुए, मुझे देखते ही बोला,’’दीदी नमस्ते और स्कूटर र्स्टाट करके चल दिया। सलोनी ने गर्दन घूमा कर उसे ध्यान से देखा। लवली ने इसकी पीठ थी इसलिए नहीं देखा और ये समोसे लेकर धीरे धीरे लाठी टेकती चल दी। इसके पहुंचते ही ममता दो कप चाय दो समोसे लेकर मेरे पास आ गई। और आते ही बोली,’’सलोनी ने बताया कि आप दुकान पर हो, मैं तो सुनते ही यहां आ गई। मेरे पीछे कोई बात होगी तो सलोनी को चुगली का काम भी मिल जायेगा। दोनों हंसने लगीं। मैंने कहाकि सलोनी तो बहुत खुश लग रही थी। वह बोली,’’ दोनो ट्रेनी को तो आज इसने अपने ऊपर ही लगाये रखा। समोसे कहती कि मैं लेकर आउंगी। बेचारी से चला तो जाता नहीं है। पर मैंने मना नहीं किया इसकी खुशी, शायद बैठे बैठे उकता गई होगी।’’ फिर मुझ बताया कि अमुक पार्लर का फेशियल बहुत मशहूर है, वहां जो फेस पैक लगाते हैं। उसमें सब कुछ उसी समय कूट कर तैयार करते हैं सब कुछ नैचुरल। कल चलोगी? मैं तुरंत तैयार हो गई। अगले दिन हम अमुक पार्लर गए। उन्होंने कैबिन बना रखे थे। ममता कभी रेट नहीं पूछती थी। उसके साथ फेशियल कैबिन में मैं जाने लगी। तो उसने मना कर दिया। ममता ने कहा कि ये मेरा देखने के बाद करवायेंगी अगर इन्हें मुझमें कोई चेंज दिखा तो। उसने चुपचाप वहां मेरे बैठने के लिए स्टूल रख दिया। मैं देखती रही। जब फेस पैक लगाने का समय आया तो उसने खरल निकाली। थोड़े से भीगे हुए बारीक दानों का अच्छी तरह कूट कूट कर बारीक पेस्ट बनाया। शायद उसके पास थोड़ा सा पहले का बचा पेस्ट भी था जो रखने से फरमैंट हो गया था और मैं इन दोना पेस्ट की गंध से अच्छी तरह परिचित थी। पर मुझे याद नहीं आ रहा था। एम.एस.सी कैमिस्ट्री का एक साल किया था। वहां लैब में कई तरह की गंध से परिचित थी इसलिए कनफूयज़ हो रही थीं। उसने ममता के चेहरे पर खरल में बनाये पेस्ट को लगा कर, उसने ममता से पूछा कि कुछ र्हबल सी स्मैल नाक में लग रही होगी। आंखे मत खोलना। ममता ने हां में सिर हिलाया। जैसे ही वह बाहर गई। मैंने अच्छे से उसके चेहरे पर लगे पैक को सूंघा। मुझे याद आ गया। इसने सरसों के भीगे दाने पीसे हैं। पंद्रह मिनट बाद उसने चेहरा साफ करके, आखिर में गुलाव जल से पोंछा। मुझसे पूछा आप करायेंगी। मैंने कहा फिर आउंगी। पेमेंट करके हम चल दीं। क्रमशः                

 

Monday, 12 October 2020

चुगलखोरी की नौकरी, मुझसे शादी करोगी भाग 8 नीलम भागी Chugalkhori ki Naukari Mujhe Se Shadi Karogi Part 8 Neelam Bhagi



ममता हमेशा मौसम के अनुसार कॉटन, सिल्क और शिफॉन की साड़ी पहनती थी। शाम को घर जाते समय भी उसकी साड़ी में एक भी सलवट नहीं होती थी। पता नहीं उसके व्यक्तित्व में क्या था! क्लाइंट पर सारा काम हैल्पर करतीं थीं। हैल्पर के हो गया कहने पर वह उठती, काम का बड़ी गहरी नज़रों से मुआयना करती फिर उस पर जरा सा फेर बदल करती। मेरे हिसाब से कुछ नहीं करती थी। बस एक लाइन में उसको किसी हिरोइन जैसा बताती। बदले में कंजूस से कंजूस महिला भी मोटे बिल के साथ लड़कियों को टिप देकर, बड़े आत्मविश्वास से इतराती हुई जाती थी। कटिंग और हेयर स्टाइल को छोड़ कर हर काम के दो रेट थे। क्योंकि दूसरे रेट के आगे र्हबल जो लगा होता था। कोई भी नई कटिंग, फेशियल या मेकअप सुनते ही वह उसे सीखने या करवाने पहुंच जाती थी। मुझे साथ चलने को कहती, मैं भी चल पड़ती। उससे मिलने से पहले मैं कभी ब्यूटीपार्लर नहीं गई थी। अब उसके साथ नये नये पार्लर जाती। जो वह करवा कर आती, अगले दिन से लिस्ट में वो भी ममता के पार्लर में होना शुरु हो जाता और मैं झट से नोट्स लिख देती और ममता उसे सीखाने के अलग पैसे लेती। सिखाती वह हमेशा जोड़े में थी। ताकि वे एक दूसरे पर प्रैक्टिस करें। मैं तो वहां कभी थोड़ी देर के लिए जाती,पर जब घर से बुलावा आता तब ममता आने देती। एक बड़ी सुन्दर सी लड़की मोहनी काम करवाने आई। आते ही बोली,’’दीदी मेरा जल्दी करवा दो। सब लड़कियां बिजी थीं। ममता उसका काम खुद करने लगी। फिर वह बोली,’’ पीछे ही डण्डी पकड़े सलोनी आ रही होगी। ऑफिस के अलावा मैं कहीं भी जाऊं, मेरा पीछा करते पहुंच जायेगी। पढ़ी न लिखी, घर का कोई काम नहीं करती । कहती है  कि यह नौकरी करती है तो मैं क्या घर की नौकरानी हूं? मैं घर का काम भी करती हूं और नौकरी भी।’’ ममता ने हैरानी से पूछा,’’सलोनी कुछ नहीं करती क्या?’’ मोहनी ने चिड़ कर जवाब दिया,’’करती है न समाज सेवा।’’सुन कर ममता ने पूछा,’’किस तरह की समाज सेवा?’’ मोहनी बोली,’’ब्लॉक में लोगो के मनोरंजन का इंतजाम करना। उसके लिए चुगलखोरी करके, लोगों को आपस में लड़वाना और तमाशा देखना। इतने में एक बहुत सुंदर, गोरी सुनहरे घुंघराले बालों वाली बड़ी मुश्किल से डण्डी के सहारे चलती सलोनी अंदर आई। भगवान ने उसे रुप देने में जरा भी कंजूसी नहीं की थी। बैठते ही उसने डण्डी साइड में रख कर, हमें हाथ जोड़ कर नमस्ते की। मोहनी का काम हो गया था। सलोनी ने बिल पूछा। ममता ने बहुत ही कम पैसे बताए। सलोनी ने अपने पर्स में से  दिए। दोनों बहनों के बाहर जाते ही ममता ने मोहनी जहां बैठी थी, उस दराज से पैसे निकाले। हम दोनों सबसे अलग बतियाने बैठ गये
इतनी सुन्दरता के साथ लंगड़ापन देखकर मेरा मन अजीब सा हो गया था। मैंने धीरे से कहा कि तुमने मोहनी से बहुत कम पैसे लिए! ममता ने बताया कि वह फोन पर मुझसे रेट पूछ कर कहती है कि आप सलोनी को ये बताना बाकि के रूपये मैं ड्रार में रख जाउंगी। उसकी रिसैप्शनिश्ट की जॉब है। उसे तो काम करवाना होता है। दिन भर की थकी वह आती है। मां इनकी मर गई है| बड़ी बहन की शादी हो गई। पापा इनके प्राइवेट नौकरी में हैं। घर में शांति रहे इसलिए सब कुछ सलोनी के हिसाब से चलता है। फिर मुझसे पूछने लगी,’’ये ऐसा क्यों करती है?’’मैंने वैसे ही कह दिया कि सलोनी को करने को कुछ नहीं है शायद इसलिए। ममता ने मुझसे पूछा,’’इसे अपने पार्लर में लगा लूं। यहां चार लड़किया तो हमेशा होती हैं। मुझे आना जाना रहता है। यह समय से पार्लर खुलवा लेगी, मुझसे लड़कियों की चुगली कर लिया करेगी और मैं शाम को इसे घर छोड़ते हुए चली जाया करूंगी। पार्लर में पहले दिन ही सलोनी शाम की चाय के साथ समोसे लेने डण्डी के सहारे, चाचा की दुकान पर चल दी।  क्रमशः            


Sunday, 11 October 2020

सामनेवाला ब्यूटीपार्लर, मुझसे शादी करोगी!! भाग 7ं नीलम भागी Samnewala Beautiparlor Mujh Se Shadi Karogi!! Neelam Bhagi Part 7

 


दुकान की इन्सटॉलमैंट निकालने और स्वीटी की शादी करने के बाद उनको कमाने का और जोड़ने का  बंहुत अनुभव हो गया था। अब चाचा ने कहा कि छोटा घर लेगे, बड़े घर के चक्कर में दिमाग पर देनदारी का बोझ नहीं रखेंगे। प्रशासन की रिहायशी घर की जो भी स्कीम निकलेगी उसे भरेंगे। साथ ही चाचा आस पास की जानकारी पूरी रखते थे। एक दिन मार्किट के ग्राउण्ड में एक महिला ने गाड़ी पार्क की और सड़क पार सामने के घर की मालकिन ने उसे अपना ग्राउण्ड फ्लोर दिखाया। उस महिला ने मार्किट का राउण्ड लगाया। अगले दिन उस घर में ये महिला बढ़इयों से अपनी देखरेख में खूब काम ले रही थी। स्कूल के बाद जब मैं  घर जाने लगी तो चाचा मेरे पास आए और पूछने लगे," ये सामने नई मैडम कौन है? और यहां क्या काम करेगी?" मैंने जवाब दिया कि मुझे नहीं पता। यह सुनते ही चाचा चेहरे से परेशानी टपकाते चले गए। शाम को मैं शॉप पर गई। चाचा ने मुझे बताया कि वहां ब्यूटीपार्लर खुल रहा है। तुम्हारे  इलैक्ट्रिशियनो को मैडम ने बिजली का ठेका दिया है। शाम को मैडम दुकान पर आई। बहुत आर्कषक व्यक्तित्व की महिला, साफ बिना मेकअप के चेहरा, हल्के प्रिंट की शिफॉन की साड़ी में वह बहुत जच रही थी। अपना नाम ममता बताया। मैंने उसे बैठने को कुर्सी दी। हमारी बातें शुरु हो गई। साउथ दिल्ली में उसका नामी ब्यूटीपार्लर था। रेजीडेंशियल एरिया में वह कमर्शियल एक्टिविटी नहीं कर सकती इसलिये वो यहां खोल रही है। मैंने उस समय तक जो भी मेकअप आर्टिस्ट देखी थी। उसके मुंह पर खूब मेकअप होता था। ये सबसे अलग थी। तरह तरह की उसने मशीने लगाई। दूर दूर तक उसके जैसा पार्लर नहीं था। आईब्रो का रेट तब दस रुपये था वो तीस रुपये लेती थी। सब काम के बहुत ज्यादा रेट, पार्लर खुलते ही चल पड़ा। अंदर से वो बाहर का सब देखती रहती पर उसके शीशे से बाहर से अंदर का कुछ दिखाई नहीं देता। अगर वह मुझे पार्लर के आगे से गुजरते देख लेती तो हाथ पकड़ कर अंदर ले जाती। गाने भी मेरी पसंद के टेप में बज रहे होते। सुबह ग्यारह बजे वह पार्लर खोलती, शाम को छह बजे जितने मर्जी क्लाइंट हों वह बंद कर देती क्योंकि इस समय तक उसके बच्चों की स्कूल ट्यूशन सब हो जाती थी और पति ऑफिस से आ जाते थे। सब जगह मंगल की छुट्टी होती थी, वह संडे की रखती थी। दो लड़कियां मेरे सामने कोर्स करने आई। ममता से फीस सुनकर वह झटका खा गई। एक बोली,’’ आप नोट्स देंगी!!’’उसने जवाब दिया कि दो महीने मैं क्लांइट को छूने नहीं दूंगी। बस देखोगी। फिर जैसे मैं कहूंगी वैसे करोगी। उसके बाद मैं देखूंगी तुम काम करोगी। आने वाले को ऐसे लगे कि तुम यहां काम करती हो, न कि ट्रेनी, नही तो कोई तुमसे काम नहीं करवायेगा। वे चलीं गई तो मैंने पूछा,’’तुम नोट्स क्यों नहीं देती हो?" वो बोली,’’लिखाई पढ़ाई के काम मेरे बस के नहीं हैं।’’मैं समझ गई कि इसने कॉलेज की शक्ल नहीं देखी पर अपने काम में माहिर है| मैंने कहा कि तुम मेरे सामने जो भी काम करोगी, मैं लिखती जाया करुंगी। तुम फाइल बना लेना। जो सीखने आए उसे फोटो स्टेट करा कर देना। ये सुनकर वो बहुत खुश हो गई। मैं जैसे कैमिस्ट्री प्रैक्टिकल की फाइल बनाया करती थी। वैसे ही मैंने उसे पार्लर के काम की बना दी। फिर वह सिखाने के साथ नोट्स भी देने लगी। अब मुझे साहित्य पढ़ने से ज्यादा उसके पार्लर में महिलाओं की बातें सुनने में मजा आता। आते ही उसने दो हैल्पर तो रख ही लीं थीं। बातें ये  बहुत बढ़िया करती थी। शाम को वह इलैक्ट्रिक केतली में चाय बनाती और चाचे का एक समोसा जरुर खाती। दोपहर में पार्लर में भीड़ रहती, मार्किट में कम। कुछ लोगों का काम हो गया था, पार्लर से निकलने वाली महिला को निर्विकार भाव से घूर घूर कर देखना। क्रमशः         


Saturday, 10 October 2020

सच हुए सपने, मुझसे शादी करोगी!!भाग 6 नीलम भागी Sach Hue Sapne Mujhe Se Shadi Karogi Part 6 Neelam Bhagi



चाचा ने चाची को चुप रहने को कहा और मुझसे बोले,’’मेरी बेटियों की जब से नौकरी लगी है मैंने कभी उनका एक भी पैसा घर में खर्च नहीं किया। उनसे कहा कि मैंने तुम्हें पैरों पर खड़ा कर दिया है। तुम्हारे पैसे तुम्हारी शादी में खर्च होंगे। दुकान के समय इनसे पैसे लिए और फिर दीवाली पर लगाये सब लौटाए है। दुकान के चक्कर में मेरी लड़कियों की शादी  लेट नहीँ होगी। कोई रिश्ता आता है तो मेरी पहली शर्त उनसे ये होती है कि मुझे लड़का बेएब चाहिए। मेरे में और मेरे दोनो बेटों में कोई एैब नहीं है इसलिए दामाद भी हमारे जैसा होना चाहिए। फिर मैं लड़कियों की जोड़ी रकम बता कर कहता हूं कि शादी इतने रूपयों में ही होगी, जैसी मरजी हो कर लो। मुझे बात करने या सलाह करने के लिए दस बार बुलाओगे, मैं आउंगा। इसी रकम से आटो या टैक्सी का भाड़ा कटेगा, पहले साफ बात करना अच्छा रहता है। क्या मैं गलत हूं?’’ सुनकर मैं हंसने लगी पर मुझे तो चाचा गलत नहीं लगे। दोनों बेटियों का पैसा कभी नहीं खर्चा, दिवाली पर उनसे उधार लेते थे और उन्हें वापिस करते थे। किश्त के समय जो पैसा कम पड़ता, उनसे उधार लेते और चुका देते। उनके पैसे से इस बीच दोनों बेटियों की शादी भी कर दी। शादी में किसी को नहीं बुलाया सिवाय रिश्तेदारों के। जब मुझसे कोई पूछता,’’आप भी नहीं गई शादी में।’’मैं सीधे जवाब देती कि इनविटेशन नहीं था। वे दिन की शादी करते, अगले दिन दुकान खुलते ही सब कुछ वैसे ही चलता रहता। तीसरी बेटी स्वीटी की पढ़ाई पर चाचा बहुत ध्यान देते थे। वह ट्यूशन वगैरह भी पढ़ती थी। सारा घर मेहनत करता था, तो वह पढ़ाई में मेहनत करती थी। सोनू का रिश्ता आया, यहां भी चाचा ने साफ कहा कि दुकान किश्तों पर है। घर किराये का है। हमें कुछ नहीं चाहिए। हमारे घर खाने को खूब है। र्बवाद करने को कुछ नहीं है। जैसे सब रहते हैं, वैसे ही रहना होगा। बहू भी आकर इनके रंग में रंग गई। चाचा ने पहले दिन ही सोनू को कहाकि तूं अब घर में खाली हाथ नहीं जायेगा, बहू से पूछ कर जो उसकी पसंद का खाने को कहे लेकर जायेगा। हम मिठाइयों में रहते हैं इसलिए हमारा खाने को मन नहीं करता। वो तो हलवाई की बेटी नहीं है न।’’ जब भी कभी वह दुकान पर आती तो चाचा उसे  यह कहते हुए बाहर चले जाते,’’पुत्तर तेरा जो दिल करे खा, अपनी दुकान है।’’ वो भी सिर से पल्लू नहीं गिरने देती, शो केस खोल खोल के मिठाइयों पर टूट पड़ती। जब वह प्रैगनेंट हुई तो उसका पेट इतना बड़ा हो गया था कि उसे अपने पैर नहीं दिखाई पड़ते थे। ख़ैर एक साल में उसने चाचा को पोते का दादा बना दिया। जब पोती का जन्म हुआ तो दुकान की सभी किश्तें निपट चुकीं थीं और परिवार ने चैन की सांस ली। स्वीटी की नौकरी लगते ही अच्छा रिश्ता आ गया। अब चाचा ने लड़के वालों को कोई नियम कायदा नहीं समझाया और इस शादी में उन्होंने सब को बुलाया। हलवाई का काम होते हुए भी सारा परिवार स्लिम था। बहू खूब मोटी हो गई और बस लवली की तोंद निकल आई थी। क्रमशः    


जो दिखता है वो बिकता है, मुझसे शादी करोगी!! भाग 5 नीलम भागी jo Dikhta Hai Vo Bikta Hai, Mujh Se Shadi Karogi!! Part 5

      


छोटी दिवाली को हम सुबह दुकान खोलने आए, देखा मार्किट ग्राउण्ड में बड़ा टैंट लगा हुआ है और मिठाइयां सजी हुई हैं। आंटी गल्ले पर बैठी हैं। चाचा सेल पर, लवली टैंट और दुकान के बीच में मैसेंजर का काम कर रहा हैं। सोनू कारीगरों पर और दुकान देख रहा है। राधे पुराना और पहला कारीगर है इसलिए वह परिवार की तरह काम कर रहा है और वह दुकान के पीछे काम भी कर रहा है और सबसे काम भी ले रहा है। इंडस्ट्रियल एरिया है। सभी ने कर्मचारियों को मिठाई देनी है इसलिए वहां से भी खूर्ब आडर मिला। सबके लिए अब खाना चाय घर से आ रही थी। जो बेटी खाना या चाय लाती, आंटी उसे कैश थमा देती। साथ के साथ गल्ला भी खाली होता जाता। दिवाली के दिन राधे और रामू भी टैंट में मदद के लिए आ गए। मिठाई बनानी बंद कर दी गई क्योंकि तैयार मिठाइयां बिकनी जरुरी थी। सब दुकान से टैंट में राधे के ऑडर पर मिठाई की ट्रे सजा कर लाते थे। राधे उसे टैंट में सजाता। साथ में रामू को समझाता ’’जो दिखता है वो बिकता है’’ टैंट से बाहर एक लड़का डिब्बों की पैकिंग के लिए बिठा रखा था। मार्किट की दूसरी दुकानें दिखें इसलिए कनाते नहीं लगाई गई थीं। पूजा के समय सेल में थोड़ा ठहराव आया और अब उनकी अपनी दुकान में साथ के साथ मिठाइयां सजने लगी और धीरे धीरे टैंट खाली होने लगा। जो वैराइटी नहीं होती, उसके लिये चाचा ग्राहक को दुकान दिखाते। दुकान सजने पर चाचा दुकान के गल्ले पर आ गए। चाचा की तो फेस वैल्यू थी जहां चाचा वहां ग्राहक, आंटी घर चली गई क्योंकि सब कुछ दुकान में जो सिमट गया था। अगले दिन से समोसे बनने शुरु हो गए। भाईदूज तक इन्होंने खूब काम किया। मुनाफे ने इनकी थकान सारी सोख ली थी। सबकी देनदारी निपटाई। किश्त का चालान आ चुका था। बैंक खुलते ही इन्होंने पहली किश्त भरी। अब अगली किश्त की तैयारी में जुट गए। दिवाली का बहुत सहारा मिला। चारों कारीगरों को लेबर और इनाम देकर विदा किया। अब तो दिवाली एक साल बाद आयेगी। सब कुछ पहले की तरह चलने लगा। बस एक बदलाव आया। लवली ने पढ़ना छोड़ दिया। चाचा ने भी जोर नहीं दिया। अब ये छोटी छोटी केटरिंग लेने लगे, जिसमें कोई खाना बनाने घर नहीं जायेगा। यहीं से खाना बन कर जायेगा। आबादी अभी इतनी नहीं थी। ये काम रैगुलर भी नहीं था। इसलिये कारीगरों को बिठाकर रखने की गुनजाइश भी नहीं थी। जैसे भी करके मकसद सिर्फ किश्त निकालना था , स्वीटी को पढ़ाना था और बड़ी दोनों बेटियों की शादी करना था।

दिवाली के बाद सोनू के रिश्ते आने लगे। चाचा का एक ही जवाब होता कि पहले दोनो बेटियों की शादी करुंगा फिर सोनू की शादी होगी। नियम कायदे के पक्के चाचा से मैंने एक दिन पूछा कि दुकान की किश्तें भी देनी हैं, इसके साथ बेटियों की शादी भी करनी हैं कैसे होगा सब!! सुन कर जवाब आंटी ने दिया,’’बेटियाँ तो कल ब्याही जाएं, इनका लड़के वालों से इतना साफ बोलना बात बिगाड़ देता है। मैंने पूछा,’’कैसे?’’ क्रमशः


Friday, 9 October 2020

पल पल का संर्घष, मुझसे शादी करोगी!! नीलम भागी भाग 4 Pal Pal Ka Sangharsh Mujh Se Shadi Karogi Neelam Bhagi Part 4



 मैंने देखा कि चाचा सुबह आते थे और रात को ही घर जाते थे। दोपहर में कारीगर खाना बनाते थे, वही खाना चाचा भी खाते थे। हम और चाचा तो शहर बसने की शुरुवात से थे इसलिए हमारे और उनके परिवार का आपस में सुख दुख का साथ था। मुझे उनकी दोपहर की सब्ज़ी चखने को जरुर मिलती। चखना शब्द इसलिए कि पहले दिन मैं अपनी पुस्तक उठा कर शॉप पर आई, उन्होंने कहा,’’कुड़िए रोटी खा।’’ मैंने कहा,’’मैं लंच करके आई हूं।’’चाचा बोले,’’अच्छा खाके सब्जी का स्वाद बता।’’अब मैंने चख के बताई। तो मुझे रोज लाजवाब सब्जी़ या दाल चख कर, उसकी कमी बताने को कहा जाता था जो कभी होती ही नहीं थी। रक्षाबंधन से पहले एक और कारीगर आ गया। अब मिठाई बननी शुरु हो गई। एक खूबसूरत शो केस बना। उसमें थोड़ी मात्रा में कई वैराइटी की मिठाइयां सजाई गईं। समोसों की तरह मिठाई भी मशहूर होने लगी। दुकान की किश्त और किराये के मकान के कारण कोई भी मिठाई ज्यादा नहीं बनाते थे ताकि बासी बेच कर दुकान का नाम न खराब हो। माल की जरा भी बरबादी ये अर्फोड नहीं करते थे। रक्षाबंधन पर मिठाई कम पड़ गई, ग्राहक लौटे पर इनको मोटीवेट कर गये|        

   आजकल चाचा दोपहर में कभी कभी गायब रहते तो आंटी आकर बैठ जाती। खोया आदि मिठाई का सामान जो लाना होता था। हमारा वरांडा एक ही था। बस दोनों दुकानों के बीच में एक दीवार ही थी। बनाने का काम बरांडे में होता था। मेरा मुंह हमेशा उनकी दुकान की तरफ होता था। अगर आंटी आती थीं तो वो मेरे सामने बैठतीं। हम दोनों बतियातीं। शुरु में मैं जो भी मिठाई बनते देखती, उसे घर पर जरुर बना कर देखती। जब मुझे तसल्ली हो जाती तब मैं चाचा के लिए लेकर जाती। उनके पास करने पर मैं बहुत खुश होती थी। मैं खाली ही बैठी होती थी, किताब पढ़ने को लाती जरुर थी पर पढ़ने का मौका कभी कभी मिलता था। क्योंकि चाचा हमेशा ऐसे बोलते थे जैसे कोई घोषणा कर रहें हों और सुनने वाले बहरे हों। वे कोई न कोई किस्सा सुनाते रहते थे और कारीगर हूंगारा भरते रहते थे। इनकी बाते मीठे, नमकीन और हलवाइयों के बारे में होती थीं। कोई ग्राहक कहता चाचा चाय भी रखो न, समोसा खाने का मजा आ जाये। सुन कर चाचा कोई जवाब नहीं देते थे। एक दिन यही प्रश्न मैंने उनसे किया तो वे बोले,’’मुझे झुग्गी में सबक मिल गया था। वहां बड़ा प्लाट था समोसा खाकर तशरीहें करते रहते। टाइम पास का अड्डा बन गया था। फिर चाय पीने वालों की बातें ही चलती रहती हैं। जिसे टोको वो बुरा मान जाता है। सिगरेट मैं पीने नहीं देता] कोई पिएगा फिर कहा सुनी होगी। चाचा मेवा कतरते रहते थे। मैंने उनसे मेवा कतरना सीख लिया। मेरे और चाचा के कतरे पिस्ते में कोई फर्क नहीं रह गया था। एक दिन मैं बर्फी बनाकर उस पर वैसे ही पिस्ता लगाकर ले गई। उसका मुआयना करके मुंह में डालते ही पूछा,’’ये कौन से हलवाई की बर्फी है?’’ हलवाई सुनते ही कारीगर भी उठ कर आ गया। उसने भी एक पीस खाया। जब मैंने कहा कि मैंने बनाई है। दोनो ने हंसते हुए कहा कि पिस्ता हलवाई की तरह लगा है, मीठा सही है इसलिए घर की बनाई नहीं लगी। दिवाली से दस दिन पहले चार कारीगर और आ गए। अब दिवाली की तैयारी शुरु हो गई थी। हमारी टू साइड ओपन दुकानों के पीछे भठ्ठियां जल गई।  लेकिन फीकी, मीठी, नमकीन मंदी आंच में तसल्ली से सिंकीं मठरियां ज्यादा बन रहीें थीं। साथ ही मैदा और बेसन की मिठाइयां बन रहीं थीं। पहले करवाचौथ आई। दूर दूर से ग्राहक आये। उनके साथ ही मार्किट चल निकली। अब जोर शोर से दिवाली की तैयारी शुरु हो गई। दिवाली से तीन दिन पहले समोसे बनने बंद और खोये की मिठाइयां बननी शुरु। समोसे खरीदने वाले नमकपारे और नमकीन मठ्ठी लेकर जा रहे थे। चाचा एक ही वाक्य बोलते,’’जो पैसा उधारी का लगाया है, पहले वो निकल जाये।’’  क्रमशः


Thursday, 8 October 2020

छप्पर से कमर्शियल एरिया की राह, मुझसे शादी करोगी!! भाग 3 नीलम भागी Mujhe se Shadi Karogee Neelam Bhagi

   


ख़ैर चाचा ने दुकान भरी। पांच हजार रु का ड्राफ्ट साथ में जमा हो रहा था। अगर शॉप निकलती है तो ये रूपये किश्त में एडजस्ट हो जायेंगे और यदि टैण्डर इनके नाम का नहीं खुला तो ये पैसे वापिस नहीं मिलेंगे यानि पांच हजार समोसे का नुकसान था! तब एक रुपये का एक समोसा बिकता था। इस चिंता में चाचा को सारी रात नींद नहीं आई। जिस दिन टैण्डर खुलना था, समय से पहले वह जाकर एर्थोटी ऑफिस में बैठ गए। जब उनकी भरी दुकान का टैण्डर खुला तो चाचा के दिल की धड़कन रुकने को हो रही थी। कुछ रुपयों से उनकी भरी कीमत ज्यादा थी इसलिए उनकी दुकान निकल आई। दुकान के पोजैशन वगैहरा मिलने में तो समय लगता है। चाचा ने झोंपड़ी हटा कर, अपनी बंद दुकान के बरांडे में समोसे बनाने शुरु कर दिए। समोसो का स्वाद दूर दूर से ग्राहकों को खींच कर ला रहा था। और प्रोपर्टी डीलर भी रोज उनकी दुकान के लिए ग्राहक ला रहे थे क्योंकि शहर का विकास तेजी से हो रहा था। अब चाचा ने ठान लिया कि दुकान को रखना ही है। तब तो पैसा ही पैसा चाहिए था। पहले एलॉटमैंट, रजीस्ट्री, पोजैश्न फिर पांच साल तक छिमाही किश्त, एक भी किश्त देने में देर हुई तो पैनल्टी साथ में दो। सबसे पहले तो उन्होंने अपनी मदद के लिए अपने पुराने कारीगर राधे को बुलाया ताकि अर्थोटी के चक्कर काटने में दुकानदारी का नुक्सान न हो। वह चाचा की तरह ही समोसा बनाता था। कई दिन तक उसका बनाया पहला समोसा चाचा ने खुद खाया। फिर उसको भट्टी पर तलने को बिठाया लेकिन मसाले पर छौंका खुद ही लगाया। स्वाद के कारण उन्हें यह दुकान मिली थी इसलिये स्वाद से वह कोई समझौता नहीं करते थे| माम्जस्ते में हाथ से मसाले कूटे जाते। रथ या डालडा का एक किलो घी का पैकेट कड़ाही में डाला जाता। खत्म होने पर अगला डलता। आलू और हरी मिर्च, हरा धनिया वे खुद खरीदने जाते थे। चाचा बिल्कुल भी पढ़े लिखे नहीं थे। सब कुछ अपने अनुभव से करते थे, जिसका परिणाम लाजवाब समोसा था। दुकान का पोजैशन और रजीस्ट्री करवाने में मकान बेच कर किराये के घर में आ गए। पर चाचा बहुत खुश थे कि कमर्शियल जगह अपनी हो रही है। पहले दुकान की किश्ते चुका दें ताकि दुकान अपनी हो जाए फिर अपना घर भी हो जायेगा। दूसरे रामू कारीगर के आने पर चाचा ने उसे समोसे भरने और बेलने पर लगा दिया, साथ ही समोसे का रेट भी बढ़ा दिया। कुछ दिन लोग बोलते रहे,’’इससे अच्छा तो चाचा झुग्गी में था, यही समोसा सस्ता था। दुकान में आते ही समोसा मंहगा कर दिया है। पर कोई यह नहीं कह पाता कि ’ऊंची दुकान फीका पकवान।’ दो दुकानदारों की समय पर किश्त की पेमेंट न होने के कारण मार्किट की वे दुकाने कैंसल हो गईं। उनका टैण्डर निकला, एक हमने भरी हमारी निकल आई और हम चाचा के पड़ोसी बन गए। सभी दुकानदार बड़ी मेहनत से दुकानदारी करते हुए परिवार चला रहे थे और किश्त चुका रहे थे। यहां ज्यादातर लोग नौकरीपेशा थे इसलिए शाम को और शनिवार रविवार को खूब ग्राहक होता था। दोपहर में दुकानदार माल लेने या आराम करने घर चले जाते थे। दुकान खुली रहे इसलिए उनके घर की महिलाएं भी बैठ जातीं थी। मैं भी अपनी किताब उठा कर आ जाती थी। क्रमशः          


Wednesday, 7 October 2020

बदलाव, मुझसे शादी करोगी भाग 2 नीलम भागी Badlave, Mujhe Se Shadi karogi Part 2


   

एक दिन मैं स्कूल से लौटी तो गजराज की झोपड़ी गायब थी। मैं घर जाने से पहले चाचा से पूछने गई। चाचा ने बहुत दुख से बताया कि उस प्लाट का मालिक आया था। कल उसने भूमि पूजन करना है। कोठी बना कर यहां रहने आयेगा। शुक्र है मेरी झोपड़ी इस प्लाट से दस मीटर दूर है। उस समय मैंने गजराज की भट्टी देख कर दूरी रखी थी कि इसका धुंआ आयेगा। गर्मी में भट्टी से और गर्म हो जायेगा तो फल खराब होंगे। देखो हमारे प्लॉट वाला कब बनाता है! उसके बाद दो दिन में सब फल बेच कर, अगले दिन सुबह चाचा झोपड़ी में कुछ फेर बदल कर रहे थे। मेरी बस आ रही थी, मैं स्कूल चली गई। लौटते में फल विहीन चाचा की झोपड़ी आंखों के आगे आ रही थी और चिंता सता रही थी। बस से उतर कर यह देखते ही मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि चाचा एक तख्त पर अपनी उजली सफेद पोशाक में आलती पालथी मारे बैठे, छोटी सी कढ़ाही में समोसे तल रहें हैं। बराबर में सफेद मलमल के कपड़े से ढके तलने के लिए तैयार समोसे रखे हैं। सब कुछ बहुत कम मात्रा में लेकिन बनाने का सामान रखा था। सोनू हैल्पर की तरह काम में लगा था। मैंने चार समोसे देने को कहा। चाचा बड़ी लगन से उन्हें धीरे धीरे तल रहे थे। दो ग्राहक खाने के लिए इंतजार कर रहे थे। चाचा उनसे बोले,’’ए साडी कुड़ी(ये हमारी लड़की) सुबह की गई, अब बच्चे पढ़ा कर लौटी है। कहो तो इसे पहले दे दूं क्योंकि आज पहला दिन है।’’दोनों ने कोरस में जवाब दिया,’’कोई बात नहीं दे दो। हम तो लाइनमैन के इंतजार में बैठे हैं। बिजली लगे तो हम शिफ्ट करें।’’मैं समोसे लेकर आई। चाय चढ़ा कर पड़ोसन को बुलाया। समोसा लाजवाब, कवर पतला मठरी जैसा, अंदर मसाला गज़ब। उसने समोसे की तुलना करोल बाग दिल्ली की किसी मशहूर दुकान से की और मैंने मेरठ के समोसों से की। वह चाय, मीठा कुछ नहीं सिर्फ समोसा ही बेचता था। जब भी जाओ चाहे एक समोसा लो, आपको गर्म ही मिलेगा। परिवार शिफ्ट होते जा रहे थे। चाचा का समोसा भी मशहूर होता जा रहा था, साथ ही कड़ाही का साइज भी बढ़ता जा रहा था। एक दिन सड़क पार सामने के मैदान में नाप जोंक हुई और साथ ही मैदान में डम्पर के डम्पर बिल्डिंग मैटिरियल के पलटे जाने लगे। बच्चे स्कूल से आकर रेत, बजरी, रोड़ी में खेलते। कुछ ही दिनों में वहां एक शानदार मार्किट बन गई। अब चाचा को चिंता होने लगी कि अगर मार्किट में हलवाई की दुकान खुल गई तो!! या जिस प्लाट पर उनकी झोपड़ी है, उसका मालिक कोठी बनवाएगा तो!! ये तो!! उसे बहुत परेशान करने लगी। पर उसके समोसों के स्वाद ने लोगों को समोसे खरीदनेे को मजबूर कर रखा था। एक दिन किसी ग्राहक ने उसके समोसो की बहुत तारीफ की। चाचा ने धन्यवाद के बदले उन्हें अपनी दोनो तो!! और तो!! चिंता बता दी। तीन चार ग्राहकों ने भी सुना। तभी मार्किट की कुछ दुकानों के टैण्डर निकले। एक ग्राहक जिसने उस दिन चाचा की तो!! और तो!!समस्या सुनी थी। वह अखबार लेकर चाचा के पास आया। उसने चाचा से दुकान का टैण्डर भरने को कहा। और भरवाया क्योंकि दुकाने बहुत बड़ी थीं इसलिए मंहगीं थीं। चाचा ने बहुत डरते हुए ये सोच कर भरी कि अगर मिल गई तो बेच देंगे इतनी भारी किश्त देना उनके बस का नहीं है। कमर्शियल जगह है निकलने पर फायदा ही होगा।  क्रमशः


आने पर खुशी, मुझसे शादी करोगी!! भाग 1 नीलम भागी Ane ke khushi Mujhse shadi Karogi Part 1 Neelam Bhagi

 


जब हम अपने घर में शिफ्ट हुए तो इस सेक्टर में हमारा पांचवा घर था। अभी तो इस घर में लाइट भी नहीं थी। ये सोच कर रहने चले गए कि वहीं रह कर काम करवा लेंगे। हमें देखते ही, हमसे चार घर छोड़ कर पड़ोसन इतना खुश हुई कि मैं लिख नहीं सकती। वे तुरंत हमारे लिए ठण्डा पानी और हाथ का पंखा लेकर आईं, जिसकी उस समय हमें सख्त जरूरत थी। हमारे कहने से पहले ही उनके पति लाइन मैन और सीवर खोलने वालों को और लौहार को लेकर आ गए। दोनो काम करवा कर, आंगन पर भारी जाल और मजबूत लोहे के जाली वाले मुख्य दरवाजे का अर्जेंट आर्डर भी उसे दिलवाया। यहां नये कंकरीट के बने जंगल में हमारा आना मजबूरी था। इस घर की किश्त और दिल्ली के घर का मोटा किराया, हम दे नहीं सकते थे। बस बचत के कारण हम आ गए। बस स्टैण्ड घर के पास ही था। सुबह स्कूल के लिए निकली तो देखा। वहां एक पेड़ के नीचे गजराज की झोंपड़ी थी। उसने मुझे देखते ही बैठने को स्टूल देते हुए कहा,’’बैठ कर बस का इंतज़ार करो, बस यहीं से दिख जाएगी। मैं बैठ गई। वह ब्रैड पकोड़े बनाने में लग गया। सुबह वह एक ही बार बनाता था और बड़े से थाल में उन्हें सजा देता था। आपको ताजे खाने हैं तो सुबह खरीद लो। एक बार बनाने के बाद वह कभी दोबारा नहीं बनाता। ये हमारी किस्मत है कि अगर हमारा शाम को ब्रैड पकोड़ा खाने का मन है तो उसके थाल पर दिन भर की धूल मिट्टी फांकता हुआ, वह पकौड़ा अगर बचा होगा तो मिलेगा पर वह कभी गर्म करके भी नहीं देता था। चाय उसकी बिकती रहती थी। वो साथ के साथ बनती रहती थी। गजराज की एक बहुत बड़ी विशेषता थी कि अगर कोई फल या सब्जी वाला सड़क से गुजर जाता तो उसे ब्लॉक के अंदर घरों के नम्बर देकर भेजता, जहां परिवार रह रहे थे। मैं दोपहर को स्कूल से आती तो कोई न कोई पड़ोसी मेरी भी खरीदारी कर लेता। आज जो बातें मामूली लगती हैं। उस समय हमारे लिए उनका बहुत महत्व था क्योंकि तब कोई मार्किट तो थी नहीं। जब भी कोई नया परिवार रहने आता, सब बहुत खुश होते। कुछ दिन बाद गजराज की झोपड़ी के पास एक और छप्पर बन गया। उसमें बहुत अच्छी क्वालिटी के फल बिकने लगे। फल विक्रेता को सब चाचा कहते थे, उनके सारे बाल सफेद थे। वे एक दम साफ सफेद रंग की कमीज, पजामा पहनते और ज्यादा पंजाबी बोलते थे। उनकी तीन बेटियां और दो बेटे थे। दोनो बड़ी बेटियां नौकरी करतीं थीं। बड़ा बेटा सोनू पिता के साथ काम में मदद करता था। छोटा बेटा लवली और बेटी स्वीटी स्कूल जाते थे। चाचा बहुत नियम कायदे वाले इनसान थे। एक दाम की उनकी दुकान थी। किसी को फल छूने नहीं देते थे। आपने कहा कि एक किलो सेब। वे आप ही निकाल कर एक किलो सेब आपको देंगे। अब आप उसमें कोई कमी निकाल सकते हो। पर कोई कमी ही नहीें होती थी। जरा से भी नुक्स वाले फल को वे अलग रखते जाते थे। जिसको चाहिए कम दामों पर ले जाओ। बेकार ग्राहक अटैण्ड ही नहीं करते थे। घर खुलते जा रहे थे। चाचा का छप्पर फलों की वैराइटी से सजता जा रहा था। गजराज के ब्रैड पकोडों की संख्या भी खूब बढ़ गई पर वे बनते सुबह एक ही बार थे। दोबारा उसने कभी नहीं बनाए। क्रमशः


Tuesday, 6 October 2020

सीट से जाना, जीने की कला भाग 3 नीलम भागी Art Of Living Neelam Bhagi


मैंने हंसते हुए कहा कि आप दोनो बुड्ढो ने दो लड़कों की नौकरी खा रखी थी। वे मैनेज करेंगे तो बेटू अपने हैल्पर रखेगा। आप कुछ दिन के लिए घूम आओ। आपके बिना दोनों किसी तरह मैनेज करेगें और आपकी चिंता भी दूर हो जायेगी कि आपके बिना इनका क्या होगा?’’उस दिन सरोज ने मुझे बिठाये रखा। हमने खूब बातें की। अब जब वे दोनों कहीं घूमने जाते तो सोशल मीडिया पर पोस्ट लगाते। मैं खुशी से कमेंट लिखती। एक दिन बुरी खबर मिली कि संजीव को र्हाट अटैक पड़ा, हॉस्पिटल के रास्ते में ही दम तोड़ दिया। सब संस्कार निपट गए। रिश्तेदार चले गए। तेहरवीं के बाद मैं भी व्यस्त हो गई लेकिन फोन पर बात होती। पर हफ्ते में एक दिन हम दोनो जरुर मिल बैठती थीं। सरोज एक बात हमेशा कहती कि संजीव जब जीने की कला सीखे तो उपर से बुलावा आ गया। सरोज की बेटी तो थी नहीं, पोती को वह जान से ज्यादा प्यार करती थी। दोनो साथ साथ रहतीं पर चीनू रात को उसे उपर ही सुलाती। सरोज नीचे अकेली सोती। टी. वी. देखती या मोबाइल पर लगी रहती जब तक नींद न आती। कुछ दिन बाद अच्छे भले ग्राउण्ड फ्लोर में चीनू ने रिनोवेशन करवाना शुरु कर दिया और सरोज से बोली,’’मम्मी जी जब तक काम चल रहा है आप ऊपर आ जाओ न।’’सरोज ने  उसे जवाब दिया,’’बेटी संजीव यहां से गए हैं। मैं यहीं एक कमरे से दूसरे में शिफ्ट करती रहूंगी।’’काम तो शुरु हो ही चुका था। मैंने सरोज से पूछा कि यहां उखड़े फर्श और ठक ठक में बैठी रहती हो, कुछ दिन ऊपर क्यों नहीं रह ली? सरोज ने जवाब दिया,’’नीचे घर खुला रहता हैं। ब्लॉक की कोई भी महिला मेरे पास आकर बैठ जाती है। र्गाड राउण्ड लगाने आता है। अगर चाय बनाने जा रही होती हूं तो उसे कह देती हूं तेरी भी चाय बना रहीं हूं। लौटते समय ले जाना वो चाय ले जाते समय भी दो चार बातें करके जाता है। जब कप लौटाने आता है तो भी बतियाता है। ऊपर कौन बतियाने आयेगा? ऐसा भी तो हो सकता है कि इनका नीचे रहने का मन बन जाए फिर मैं नीचे कैसे आऊंगी? ऊपर मेरा तो एकदम एकांतवास हो जाएगा न।" दो महीने काम  चलता रहा। किचन में काम शुरु हुआ, इन दिनों भी सरोज नीचे ही रही। सरोज को बरसों से सुबह जल्दी उठने की आदत थी। बैड टी संजीव या सरोज जो भी पहले उठता बना लेता। चीनू के आने पर भी यही नियम था। बेटू और चीनू जब उठते तब बना कर पीते। अब चाय सुबह सरोज अपने लिए बना कर पी लेती। कहीं जाना हो तो कैब मंगा कर, पोती लेकर चल देती। डेंगू के सीजन में सरोज को भी बुखार हो गया। चीनू तुरंत सरोज को डिस्पेंसरी लेकर गई। समय पर दवा दी, रात की डोज देकर पास में पानी रख कर, कह कर गई कि जरुरत हो तो फोन करना। और ऊपर चली गई। सुबह दवा देने के लिए नीचे आई। तो सरोज बैड पर नहीं थी। टॉयलेट में थी। चीनू ने चाय भी बना ली। सूजी की खीर भी बना ली कि दवा खाली पेट नहीं देनी है। पर सरोज बाहर नहीं आई। अब उसने टॉयलेट के बाहर खड़े होकर आवाजें लगाईं। कोई जवाब नहीं!! उसने हल्का सा दरवाजे को धक्का दिया, दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। दरवाजा खुला, सामने वैस्टर्न टॉयलेट सीट पर सरोज बैठी हुई थी। चीनू ने बांह पकड़ कर उठाते हुए पूछा,’’क्या हुआ मम्मी जी? सरोज का शरीर ठंडा और अकड़ा पड़ा देख, चीनू जोर जोर से मम्मी जी, मम्मी जी चिल्लाई, वह पता नहीं कब से मरी हुई थी। बेटू पड़ोसी दौड़े, मुझे भी किसी ने फोन किया। मैं भी पहुंच गई। स्लिम तो थी, पता नहीं बुखार में किस तरह बैठी की सीट में फंस गई। कोशिश तो उठने की, की होगी। कोई उठाता या कुछ पकड़ने को होता, जिसके सहारे बुखार में निढाल अवस्था में  भी वह उठ जाती। आज रमा के घर में बने टॉयलेट को देखकर, मुझे सरोज कि ये आदत बार बार याद आ रही थी। हम जब भी बतियातीं मैं सोफे पर या बैड पर लेट जाती वो मेरे सामने कुर्सी रख कर बैठती। मैं हंस कर पूछती,’’ऑफिस में बैठी हो!!’’वो ये कहती हुई कि नौ से पांच ऑफिस में फिर शॉप पर चेयर पर बैठने की आदत बन चुकी है और यह कहते हुए मेरे पास आकर लेट जाती। और दुनिया से गई भी तो ...... सीट पर बैठी!!.समाप्त      




Monday, 5 October 2020

सब मैनेज हो जाता है! जीने की कला भाग 2 नीलम भागी The Art Of Living Neelam Bhagi


 चीनू वहीं सोती बैठती, बहुत ही आज्ञाकारी है, सरोज के बुलाने पर तुरंत नीचे आती। अब शाम को संजीव दुकान पर जाते तभी बेटू चीनू को घुमाने ले जा पाता। संजीव रिटायर हो गए। उन्हें तो समय से ऑफिस जाने की आदत है। अब वे दुकान समय से खोलते हैं। सरोज को बाइयों से काम लेने की आदत है, वही  उनसे काम लेती। चीनू ने भी उन्हें पोता पोती दिए। सरोज भी रिटायर हो चुकी थी। उसे भी 9 से 5 सीट पर बैठने की आदत थी। चीनू ने उनकी आदत नहीं बिगड़ने दी। पहले दिन ही सरोज को कहा कि मम्मी जी आपको दोपहर में कोई काम तो होता नहीं हैं। आप शॉप पर चले जाया करो तो पापा जी घर में रैस्ट कर जाया करेंगें। सरोज चली गई। संजीव आ गए। शाम को संजीव चाय पी कर जाने लगे तो चीनू ने संजीव को चाय और इवनिंग स्नैक्स देते हुए कहा,’’पापा जी, मम्मा जी को जाते ही गर्म गर्म खिला पिला देना।’’संजीव ने जाते ही सरोज को चाय नाश्ता दिया। सरोज लौटी नहीं कि दोनों साथ जायेंगे।  अब बेटू किसी काम से जाए तो लौटने की उसे कोई जल्दी नहीं होती थी। उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य चीनू और बच्चों को समय देना होता था। अब सरोज और संजीव दुकान बढ़ा कर ही रात को आते। दोनों बच्चे पोता पोती रात को उपर ही सोते थे। अब यही उनकी दिनचर्या हो गई थी। मंगल की छुट्टी होती है। उस दिन वे घर पर आराम करते थे। एक दिन मंगल को फैमली लंच कर रही थी। संजीव किसी बात पर वैसे ही बोले,’’कभी कभी मैं सोचता हूं कि अगर हम दोनो को कुछ हो गया तो बेटू अकेला सब कैसे संभालेगा!!’’सरोज सोच रही थी कि दोनो चिल्लायेंगे पापा नहीं, ऐसे नहीं बोलो। पर चीनू तुरंत बोली,’’सब मैनेज हो जाता है।’’ इस जवाब के बाद दोनो ने चुपचाप खाना निगला। पर कहीं दोनो बुरी तरह आहत हुए। लंच के बाद बेटू परिवार को लेकर बाहर चल दिए और जाते हुए बोल गए कि वे डिनर बाहर करके आयेंगे। उनके जाते ही सरोजा ने मुझे फोन किया कि तुरंत आ। मेरे घर से  उसके घर का पांच मिनट पैदल का रास्ता है। मैं पहुंची सरोज ने मुझे ये बात बताई। सुन कर क्या जवाब देती!!अब तक ये दीन दुनिया से अलग बेटू की गृहस्थी संभालने में खुश थे। आज ये सकते में हैं। मैंने पूछा,’’आप कहते थे, न  कि हमारा देश बहुत सुन्दर है, जितना एल.टी.सी. नौकरी में घूमा जायेगा, घूम लेंगे बाकि बचा रिटायरमेंट के बाद देखेंगे। तब छुट्टियों की भी चिंता नहीं होगी।’’दोनों कोरस में बोले,’’कहां हमें तो फुरसत ही नहीं मिली।!’’ मैंने समझाया कि व्यस्त रहो, मस्त रहो, अच्छी बात है पर कुछ समय अपने लिए भी जियो। 35 साल समयबद्ध नौकरी की है न। अब अपने इस समयबद्ध रिटायरमैंट कार्यक्रम से थोड़ा बाहर आओ। बेटू के बिजनेस में बैठने जाओ पर अपनी इच्छा से। वेे आपके बाद मैनेज करेंगे। थोड़ा उन्हें अभी मैनेज करने दो। कभी पैकेज पर, टूर पर जाओ। दोनों को पेंशन मिलती है। आज से शुरुवात करो। घर में सहयोग दो, घर का महौल अपनी तरफ से अच्छा रखो। पिक्चर देखने जाया करो।’’ अब दोनों बतियाने लगे कि हमारे कितने शौक थे जो हमने रिटायरमेंट के बाद पूरे करने थे। कुछ याद ही नहीं रहा था। मैंने कहा,’’चीनू का धन्यवाद करो जिसने आज आपको रास्ता दिखाया। क्रमशः


Saturday, 3 October 2020

जीने की कला भाग 1 नीलम भागी Art Of Living Part 1 Neelam Bhagi

रमा ने मुझे लंच पर बुलाया था। तीन घण्टे उनके साथ बिताये। खूब बातें कीं। जरा सी सुस्ती आते ही उसके पति रवि कॉफी़ बना लाते। इनके दोनो बच्चे विदेश में हैं। पहले ऊपर का फ्लोर बंद रहता था कि जब बच्चे इण्डिया विजिट करने आएं तो उनकी प्राइवेसी में कमी न रह जाए। धीरे धीरे उनकी विजिट कम होने लगी। इन्होंने भी अपने मित्रों और पेड़ पौधों के साथ समय बिताना शुरु कर दिया। जब बच्चों का फ्लोर भाड़े पर उठाया तो रमा ने मुझे कहा कि साल में कुल एक महीना बच्चा लोग रहने आते हैं। ग्यारह महीने इसकी मुझे सफाई करवानी पड़ती है। जब आते हैं तो हम ऊपर जाएं या जब उनका मन हो तो वो नीचे आएं। लगता है मेहमान घर आएं हैं। अब आते हैं तो हमारे साथ रहते हैं। सब बनाना खाना सामने रहता हैं। अब बच्चों के आने पर बहुत खुशी होती है और जाने पर कुछ दिन उदासी रहती है। पहले लगता था घर जैसे गैस्ट हाउस है और ये यहां से खुश जाएं और बार बार आएं। अब एक आवाज लगाओ किरायेदार उसी समय पूछने आता है। हम यात्रा पर जाते हैं। तो पौधों को पानी लगाते हैं। बच्चे हमें अपने पास रहने को बुलाते हैं पर हमने तो सोच लिया है कि दोनों अपने घर में ही रहेंगे। आखिर में तो एक को अकेले रहना है। अकेला भी जब तक शरीर साथ देगा, वह मैनेज़ करेगा। बाद की बाद में देखी जायेगी।  उसे सोच कर अपना आज क्यों खराब करें? शायद सोच बदलने के कारण ही रवि हर काम में हाथ बटा रहे थे। ये सोच कर कि यदि वे अकेले रह गए तो!! उनका दुख और न बढ़े इसलिए घर के काम करना अपनी आदत में शामिल कर रहे थे।। लौटने से पहले मैं उनके टॉयलेट में गई सीट के साथ हैण्डिल देख कर सरोज बहुत याद आई और मैं उदास हो गई।


 किसी तरह अपनी उदासी छिपा कर  हंसते हुुए उन्हें बाय करके लौटी। रास्ते भर मैं सोचती रही अगर सरोज भी इस तरह टॉयलेट बना लेती तो ...। सरोज मुझसे तीन साल बड़ी थी हमारा स्कूल कॉलिज एक ही था इसलिए दोनो साथ जातीं। उसकी सरकारी नौकरी लगी थी। पति संजीव भी सरकारी नौकरी में थे। शाम को छ बजे पति  पत्नी साथ ही घर लौटते। पहला बेटा पैदा हुआ। दूसरे का चांस नहीं लिया कि अगर लड़की हो गई तो! दोनों सारा दिन घर से बाहर रहते हैं। लड़की की बड़ी जिम्मेवारी होती है। दोनो के परिवार दूर थे। बिना किसी मदद के बेटा पाला। खूब पैसा जोड़ा और सम्पत्ति बनाई। बेटू को बिजनेस लगा कर दिया कि बेटू आंखों के सामने रहेगा। संजीव भी शाम को ऑफिस से आकर बेटेू के बिजनेस में बैठ जाते। बेटू का पहला ही रिश्ता आया। इन्हें होम मेकर लड़की चाहिए थी। पैसा की कमी नहीं थी बिजनेस भी चल निकला था। बेटू को लड़की दिखाई बेटू को पसंद आ गई। बेटू के सभी दोस्तों में सबसे पहले बेटू की चीनू से शादी हो गई। सरोज ने दहेज के लिए बहुत मना किया। क्योंकि उसके तीन बेडरुम के घर में सब कुछ था। संजीव सरोज तो दिन भर घर से बाहर ही रहते हैं और बेटू शॉप पर रहता है। पहली मंजिल शादी में मेहमानों के कारण खाली रखी थी। चीनू के घर वालों ने सरोज की बात का सम्मान रखते हुए कुछ भी नहीं दिया  पर पहली मंजिल में सोफा और डबल बैड रख दिया। क्रमश