मैंने हंसते हुए कहा कि आप दोनो बुड्ढो ने दो लड़कों की नौकरी खा रखी थी। वे मैनेज करेंगे तो बेटू अपने हैल्पर रखेगा। आप कुछ दिन के लिए घूम आओ। आपके बिना दोनों किसी तरह मैनेज करेगें और आपकी चिंता भी दूर हो जायेगी कि आपके बिना इनका क्या होगा?’’उस दिन सरोज ने मुझे बिठाये रखा। हमने खूब बातें की। अब जब वे दोनों कहीं घूमने जाते तो सोशल मीडिया पर पोस्ट लगाते। मैं खुशी से कमेंट लिखती। एक दिन बुरी खबर मिली कि संजीव को र्हाट अटैक पड़ा, हॉस्पिटल के रास्ते में ही दम तोड़ दिया। सब संस्कार निपट गए। रिश्तेदार चले गए। तेहरवीं के बाद मैं भी व्यस्त हो गई लेकिन फोन पर बात होती। पर हफ्ते में एक दिन हम दोनो जरुर मिल बैठती थीं। सरोज एक बात हमेशा कहती कि संजीव जब जीने की कला सीखे तो उपर से बुलावा आ गया। सरोज की बेटी तो थी नहीं, पोती को वह जान से ज्यादा प्यार करती थी। दोनो साथ साथ रहतीं पर चीनू रात को उसे उपर ही सुलाती। सरोज नीचे अकेली सोती। टी. वी. देखती या मोबाइल पर लगी रहती जब तक नींद न आती। कुछ दिन बाद अच्छे भले ग्राउण्ड फ्लोर में चीनू ने रिनोवेशन करवाना शुरु कर दिया और सरोज से बोली,’’मम्मी जी जब तक काम चल रहा है आप ऊपर आ जाओ न।’’सरोज ने उसे जवाब दिया,’’बेटी संजीव यहां से गए हैं। मैं यहीं एक कमरे से दूसरे में शिफ्ट करती रहूंगी।’’काम तो शुरु हो ही चुका था। मैंने सरोज से पूछा कि यहां उखड़े फर्श और ठक ठक में बैठी रहती हो, कुछ दिन ऊपर क्यों नहीं रह ली? सरोज ने जवाब दिया,’’नीचे घर खुला रहता हैं। ब्लॉक की कोई भी महिला मेरे पास आकर बैठ जाती है। र्गाड राउण्ड लगाने आता है। अगर चाय बनाने जा रही होती हूं तो उसे कह देती हूं तेरी भी चाय बना रहीं हूं। लौटते समय ले जाना वो चाय ले जाते समय भी दो चार बातें करके जाता है। जब कप लौटाने आता है तो भी बतियाता है। ऊपर कौन बतियाने आयेगा? ऐसा भी तो हो सकता है कि इनका नीचे रहने का मन बन जाए फिर मैं नीचे कैसे आऊंगी? ऊपर मेरा तो एकदम एकांतवास हो जाएगा न।" दो महीने काम चलता रहा। किचन में काम शुरु हुआ, इन दिनों भी सरोज नीचे ही रही। सरोज को बरसों से सुबह जल्दी उठने की आदत थी। बैड टी संजीव या सरोज जो भी पहले उठता बना लेता। चीनू के आने पर भी यही नियम था। बेटू और चीनू जब उठते तब बना कर पीते। अब चाय सुबह सरोज अपने लिए बना कर पी लेती। कहीं जाना हो तो कैब मंगा कर, पोती लेकर चल देती। डेंगू के सीजन में सरोज को भी बुखार हो गया। चीनू तुरंत सरोज को डिस्पेंसरी लेकर गई। समय पर दवा दी, रात की डोज देकर पास में पानी रख कर, कह कर गई कि जरुरत हो तो फोन करना। और ऊपर चली गई। सुबह दवा देने के लिए नीचे आई। तो सरोज बैड पर नहीं थी। टॉयलेट में थी। चीनू ने चाय भी बना ली। सूजी की खीर भी बना ली कि दवा खाली पेट नहीं देनी है। पर सरोज बाहर नहीं आई। अब उसने टॉयलेट के बाहर खड़े होकर आवाजें लगाईं। कोई जवाब नहीं!! उसने हल्का सा दरवाजे को धक्का दिया, दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। दरवाजा खुला, सामने वैस्टर्न टॉयलेट सीट पर सरोज बैठी हुई थी। चीनू ने बांह पकड़ कर उठाते हुए पूछा,’’क्या हुआ मम्मी जी? सरोज का शरीर ठंडा और अकड़ा पड़ा देख, चीनू जोर जोर से मम्मी जी, मम्मी जी चिल्लाई, वह पता नहीं कब से मरी हुई थी। बेटू पड़ोसी दौड़े, मुझे भी किसी ने फोन किया। मैं भी पहुंच गई। स्लिम तो थी, पता नहीं बुखार में किस तरह बैठी की सीट में फंस गई। कोशिश तो उठने की, की होगी। कोई उठाता या कुछ पकड़ने को होता, जिसके सहारे बुखार में निढाल अवस्था में भी वह उठ जाती। आज रमा के घर में बने टॉयलेट को देखकर, मुझे सरोज कि ये आदत बार बार याद आ रही थी। हम जब भी बतियातीं मैं सोफे पर या बैड पर लेट जाती वो मेरे सामने कुर्सी रख कर बैठती। मैं हंस कर पूछती,’’ऑफिस में बैठी हो!!’’वो ये कहती हुई कि नौ से पांच ऑफिस में फिर शॉप पर चेयर पर बैठने की आदत बन चुकी है और यह कहते हुए मेरे पास आकर लेट जाती। और दुनिया से गई भी तो ...... सीट पर बैठी!!.समाप्त
4 comments:
Very Nice 👌👌
हार्दिक धन्यवाद
सीट से जाना, एक सुंदर और रोचक कथा है। यह आत्म कथा शैली में एक ख़ास सहेली का पूरे दिन सीट पर बैठना अपितु अंत समय भी सीट नसीब हुई। सचमुच मार्मिक कथा। आभार और साधुवाद। ओम सपरा, दिल्ली, 9818180932
हार्दिक धन्यवाद
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