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Friday 9 October 2020

पल पल का संर्घष, मुझसे शादी करोगी!! नीलम भागी भाग 4 Pal Pal Ka Sangharsh Mujh Se Shadi Karogi Neelam Bhagi Part 4



 मैंने देखा कि चाचा सुबह आते थे और रात को ही घर जाते थे। दोपहर में कारीगर खाना बनाते थे, वही खाना चाचा भी खाते थे। हम और चाचा तो शहर बसने की शुरुवात से थे इसलिए हमारे और उनके परिवार का आपस में सुख दुख का साथ था। मुझे उनकी दोपहर की सब्ज़ी चखने को जरुर मिलती। चखना शब्द इसलिए कि पहले दिन मैं अपनी पुस्तक उठा कर शॉप पर आई, उन्होंने कहा,’’कुड़िए रोटी खा।’’ मैंने कहा,’’मैं लंच करके आई हूं।’’चाचा बोले,’’अच्छा खाके सब्जी का स्वाद बता।’’अब मैंने चख के बताई। तो मुझे रोज लाजवाब सब्जी़ या दाल चख कर, उसकी कमी बताने को कहा जाता था जो कभी होती ही नहीं थी। रक्षाबंधन से पहले एक और कारीगर आ गया। अब मिठाई बननी शुरु हो गई। एक खूबसूरत शो केस बना। उसमें थोड़ी मात्रा में कई वैराइटी की मिठाइयां सजाई गईं। समोसों की तरह मिठाई भी मशहूर होने लगी। दुकान की किश्त और किराये के मकान के कारण कोई भी मिठाई ज्यादा नहीं बनाते थे ताकि बासी बेच कर दुकान का नाम न खराब हो। माल की जरा भी बरबादी ये अर्फोड नहीं करते थे। रक्षाबंधन पर मिठाई कम पड़ गई, ग्राहक लौटे पर इनको मोटीवेट कर गये|        

   आजकल चाचा दोपहर में कभी कभी गायब रहते तो आंटी आकर बैठ जाती। खोया आदि मिठाई का सामान जो लाना होता था। हमारा वरांडा एक ही था। बस दोनों दुकानों के बीच में एक दीवार ही थी। बनाने का काम बरांडे में होता था। मेरा मुंह हमेशा उनकी दुकान की तरफ होता था। अगर आंटी आती थीं तो वो मेरे सामने बैठतीं। हम दोनों बतियातीं। शुरु में मैं जो भी मिठाई बनते देखती, उसे घर पर जरुर बना कर देखती। जब मुझे तसल्ली हो जाती तब मैं चाचा के लिए लेकर जाती। उनके पास करने पर मैं बहुत खुश होती थी। मैं खाली ही बैठी होती थी, किताब पढ़ने को लाती जरुर थी पर पढ़ने का मौका कभी कभी मिलता था। क्योंकि चाचा हमेशा ऐसे बोलते थे जैसे कोई घोषणा कर रहें हों और सुनने वाले बहरे हों। वे कोई न कोई किस्सा सुनाते रहते थे और कारीगर हूंगारा भरते रहते थे। इनकी बाते मीठे, नमकीन और हलवाइयों के बारे में होती थीं। कोई ग्राहक कहता चाचा चाय भी रखो न, समोसा खाने का मजा आ जाये। सुन कर चाचा कोई जवाब नहीं देते थे। एक दिन यही प्रश्न मैंने उनसे किया तो वे बोले,’’मुझे झुग्गी में सबक मिल गया था। वहां बड़ा प्लाट था समोसा खाकर तशरीहें करते रहते। टाइम पास का अड्डा बन गया था। फिर चाय पीने वालों की बातें ही चलती रहती हैं। जिसे टोको वो बुरा मान जाता है। सिगरेट मैं पीने नहीं देता] कोई पिएगा फिर कहा सुनी होगी। चाचा मेवा कतरते रहते थे। मैंने उनसे मेवा कतरना सीख लिया। मेरे और चाचा के कतरे पिस्ते में कोई फर्क नहीं रह गया था। एक दिन मैं बर्फी बनाकर उस पर वैसे ही पिस्ता लगाकर ले गई। उसका मुआयना करके मुंह में डालते ही पूछा,’’ये कौन से हलवाई की बर्फी है?’’ हलवाई सुनते ही कारीगर भी उठ कर आ गया। उसने भी एक पीस खाया। जब मैंने कहा कि मैंने बनाई है। दोनो ने हंसते हुए कहा कि पिस्ता हलवाई की तरह लगा है, मीठा सही है इसलिए घर की बनाई नहीं लगी। दिवाली से दस दिन पहले चार कारीगर और आ गए। अब दिवाली की तैयारी शुरु हो गई थी। हमारी टू साइड ओपन दुकानों के पीछे भठ्ठियां जल गई।  लेकिन फीकी, मीठी, नमकीन मंदी आंच में तसल्ली से सिंकीं मठरियां ज्यादा बन रहीें थीं। साथ ही मैदा और बेसन की मिठाइयां बन रहीं थीं। पहले करवाचौथ आई। दूर दूर से ग्राहक आये। उनके साथ ही मार्किट चल निकली। अब जोर शोर से दिवाली की तैयारी शुरु हो गई। दिवाली से तीन दिन पहले समोसे बनने बंद और खोये की मिठाइयां बननी शुरु। समोसे खरीदने वाले नमकपारे और नमकीन मठ्ठी लेकर जा रहे थे। चाचा एक ही वाक्य बोलते,’’जो पैसा उधारी का लगाया है, पहले वो निकल जाये।’’  क्रमशः


2 comments:

Monika Tewari said...

Super

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद